Monday, August 19, 2019

अलविदा खय्याम साहिब

अलविदा खय्याम साहिब
आज हिंदी सिनेमा और संगीत ने अपना एक और बेशकीमती हीरा खो दिया 
पर्बतो के पेड़ों पर शाम का बसेरा है, यह क्या जगह है दोस्तों,  बहारों मेरा जीवन भी सांवरो , जाने क्या ढूंढ़ती रहती है यह आँखें मुझमे, कहीं एक मासूम नाजुक सी लड़की , कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है, दिखाई दिए यूं , "कभी किसी को मुक़म्मल जहाँ नहीं मिलता" और न जाने कितने हे बेमिसाल गीत अपने दिए | राहों (नवांशहर) के ख़य्याम और लुधियाना के साहिर साहिर की जोड़ी ने बेमिसाल गीत हिंदी फिल्म सिनेमा को दिए | पिछली तीन पीढ़ियों ने आपके संगीत को को सुना सराहा और प्यार किया | थोड़े दिन पहले ही में श्रीनगर के ग्रैंड होटल के उस हाल में खड़ा था जहाँ आपका "कभी-कभी" फिल्म का मशहूर गीत " में पल दो पल का शायर हूँ " फिल्माया गया था तब यह शायद अंदाज़ा ही न था की आप हमसे इतने दूर चले जायेंगे 
फुटपाथ, फिर सुबह होगी, शंकर हुसैन, कभी कभी,‌ उमराव जान, थोड़ी सी बेवफाई, बाजार, नूरी, दर्द, रजिया सुल्तान, पर्वत के उस पार, त्रिशूल और न नाज़े कितनी फिल्मे जो कभी उतनी हिट न हो पाती अगर उनमे आपका संगीत न होगा आपका संगीत मौसिक़ी को प्यार करने वाले के दिल में हमेशा बस्ता रहेगा मेरी प्लेलिस्ट और हिंदी सिनेमा के म्यूजिक को प्यार करने वाले हर उस व्यक्ति की प्लेलिस्ट आपके संगीत के बिना अधूरी है | 

"देख लो आज हमको जी भर के.. कोई आता नहीं है फिर मर के... " 

खुदा हाफ़िज़  जी 

नवदीप