Laxman Dost,14 December 2010,Dainik Bhaskar, Fazilka
रक्त से रंजित रेत, खून से भी गहरा नहर का पानी, कई किलोमीटर तक बिखरे सैनिकों के शव। भारत—पाक अंतराष्ट्रीय सीमा पर बेरीवाला से लेकर पक्का चिश्ती, नूरन, पीरबक्श, छोटा मुबेकी, बड़ा मुबेकी गांवों का यह दृश्य बता रहा था कि भारत—पाक के बीच चल रहे युद्ध में पिछले दस दिनों में कितनी तबाही हुई। भारत ने दसवें दिन एक तरह से युद्ध पर विजय प्राप्त कर ली थी। अब तक पाकिस्तानी अपनी नाक बचाने के लिए उल्टे सीधे निशाने लगा रहे थे। हालांकि गोलीबारी 16 दिसंबर तक जारी रही। अब समय था पाक रेंजरों से खाली करवाए गए क्षेत्र से भारतीय सैनिकों के शवों की तलाश करना। गांव नूरन के बगू सिंह, बेरीवाला की बागा बाई, बसावा राम और जिंदा बाई ने बताया कि जहां भारतीय सैनिक शवों को संभाल रहे वहीं वे पाक रेंजरों की फायरिंग का भी माकूल जवाब दे रहे थे। ले. कर्नल आरके सूरी के नेतृत्व में भारतीय जवानों ने जमीनी स्तर पर तो युद्ध जीत लिया था। भारतीय सैनिक अब पाक रेंजरों को गांवों से भी पीछे धकेल रहे थे। भारतीय सेना साबुना नहर को पहले ही पार कर चुकी थी और गांवों में प्रवेश कर गई थी। सबसे पहले उन्होंने बेरीवाला को आजाद करवाया। इसके बाद अन्य गांवों में भी भारतीय विजय की पताका फहरानी आरंभ कर दी।
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