Tuesday, August 21, 2007

Poor condition of martyrs’ graves-Fazilka

Anilehs Mahajan TNN

Asafwala Sadqi Indo-Pak Border (Ferozepur): The country has entered the sixty first year of its freedom, but after seeing the condition of the graveyard in village Sainia it seems that the nation has forgotten those who laid their lives for its security. Most of them Christians belonging to north east and a few Muslims from south India, these heroes lost their lives in 1965 and 71 wars.

The condition is so bad that TOI with the help of a social activist Roshan Lal Jain had to clear up the tablets which read the epitaph of the buried. Graves were littered with mud and cow dungs and were covered with grass. Only three soldiers belonging to 3 Assam Rifles could be identified, rest eight were impossible to be identified. A few kilometres away the memorial for Hindu and Sikh soldiers along with four Muslims of the Horse Riders Regiment (Ashvarohi) is well kept and is one of the tourist attractions. The three tablets identify Sepoy Jong Bhadur, Naik K Talawara and F Hrangziki. They were killed in 1971 war. This unconcern is also creating unrest in the Army as in Punjab most of the families have ties with defence forces and have a major presence in the Indian Army. Meanwhile, Major General (retired) Amarjit Singh Kahlon said it’s time that we should undo the damage done to the national pride. The regiment of these personnel should come up and act, he added. According to the records, in this sector 4 Jat lost 69 soldiers, 15 Rajput lost 70, 3 Assam lost 39 and others 28, out of them names of 10 martyrs are missing. These are the graves of those soldiers.

A few years back local social activists tried to raise the issue but the administration did not encourage them. ‘‘We informed the district administration but nothing has been done yet,’’ said Jain. Former Army Chief General (retired) VP Malik said this is a matter of national shame. “It does not matter where soldier died and what’s his background, citizens of the country should act responsibly and maintain the graves,’’ said the General. In British era there was a war grave commission, but now there is no such provision, Malik added. “It is the responsibility of local administration to maintain the graveyard,” he added.


1 comment:

Navdeep Asija said...

जर्जर हालत में शहीदों की कब्रें
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/punjab/4_2_3961394.html
Dec 04, 2007 11:21 pm

फाजिल्का -जो कौम अपने शहीदों को भूल जाती है, वह ज्यादा देर जिंदा नहीं रहतीं। लगता है प्रशासन व इलाके के लोगों को इस बात का अहसास नहीं रहा। यही कारण है कि भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए हिंदु सैनिकों का दाह संस्कार तो कर दिया गया, लेकिन मुस्लिम व ईसाई समुदाय के शहीद सैनिकों को जहां दफनाया गया, उन जगहों को नजरंदाज कर दिया गया है। सरहदी गांव घड़ुमी व सैनियां के निकट उन शहीदों की कब्रों के प्रति शुरूआत में तो लोगों का काफी जोश रहा, लेकिन अब उन्हे भुला दिया लगता है।

भारत-पाकिस्तान के बीच 1965 व 1971 में हुए युद्ध के शहीदों की जर्जर चिताएं देखनी हो तो फाजिल्का के गांव घड़ुमी व सैनियां के निकट देखी जा सकती है। 1971 में फाजिल्का को पाकिस्तान के कब्जे में जाने से बचाने के लिए तीन असम बटालियन के 39 जवानों ने अपनी कुर्बानी दी थी। उनकी शहादत से नई पीढ़ी प्रेरणा लेती रहे। इसके लिए तत्कालीन सरकार और देशभक्त जनता ने शहीद स्मारक बनवा दिया था। स्मारक पर कुछ समय तक तो श्रद्धा के फूल चढ़ाने के लिए लोगों का आना जाना लगा रहा और शहादत दिवस पर मेले लगाए जाते रहे, लेकिन अब वही स्मारक व सैनियां के निकट बनीं असम बटालियन के शहीदों की कब्रें जर्जर हालत में अपनी दशा पर आंसू बहा रही है। तीन दिसंबर 1971 की शाम सवा छह बजे से लेकर 17 सितंबर की रात सात बजे तक बार्डर पर मोर्चा संभालने वाले तीन असम बटालियन के 39 शहीद यहां दफन है।

उल्लेखनीय है कि आसफवाला स्थित शहीदों की समाधि से इस स्मारक की दूरी मात्र तीन किलोमीटर है। गांव के नंबरदार सोहन लाल द्वारा दान दी गई भूमि में हिंदु और ईसाई जवानों की समाधि बनाई गई है। इसके अलावा फाजिल्का से सैनियां की ओर जाते हुए सुख धाम कुष्ट आश्रम के निकट बने कब्रिस्तान में भी भारतीय सेना के 17 शहीद दफन है। उनमें से अधिकांश शहीद दक्षिण भारतीय थे, जिन्हे भारतीय सेना के अधिकारी वहां दफना गए थे। इस कब्रिस्तान में दफन शहीदों की गवाही एक टूटा हुआ कब्र का पत्थर देता है जिसपर अब सिर्फ असम लिखा नजर आता है, जिससे पता चलता है कि यह असम रेजीमेंट के जवान की समाधि है।