Saturday, December 29, 2007

A celebration of folk


Manoj Tripathi, 25th December, 2007, Hindustan Times, The Buzz
The one-day Lal Chand Yamala Jatt Yadgari Mela ended at Fazilka on a colourful note this Sun day, with live performances by various Punjabi folk singers, including Mukhtiar Singh Yamla, Shawinder Mahi and Kawalpreet. The rhythm reverberated by tumbi and dhol cast a spell on the crowd of about 10,000 that thronged the border town. Folk lyrics, rooted deep in the state, dominated the Mela.
The Mela began with tributes being paid to the great Tumbi maestro Lal Chand Yamla Jatt by president of Punjabi Sabhyacharak Manch, Rajesh Aneja, chairman Daljit Singh Sarbha and patron Gammdoor Singh, who were the organisers of this event.
Lovepreet Bhullar, Rani Randeep and Gurbhej presented songs depicting lifestyle of rural Punjab. Enthusiastic youngsters dancing to songs like 'Tere ne kararan mannu pattia, Heer kali and Manke tutde jande ne.
Yamla Jatt's most famous songs were rendered here. The main feature of the Mela were performances by Bhajna Amli and Santi who made the crowd break loose with their rib-tickling jokes.
Among those present were Jagdev Singh Jassowal, president of Vishav Punjabi Sabhyachark Manch, former MP Gurdas Badal, MLA Surjit Jayani Gurtej Singh and Shar Singh.
Though 'master of laughter' M.P Navjot Singh Sidhu could not make it to the Mela due to Gujarat election, his 10-minute message was enough to keep the audiences thrilled. Jagdev Singh Jassowal expressed happiness over the successful organisation of the Mela and thanked people for cooperation, hoping such cultural events would be fruitful in streamlining youngsters, who were ruining their lives by going into drugs. Nineteen persons, working to bring about a difference in different fields, were also given mementos for their efforts.
http://epaper.hindustantimes.com/artMailDisp.aspx?article=25_12_2007_134_005&typ=1&pub=722

Friday, December 28, 2007

अमिट यादें छोड़ गया यमला जट यादगारी मेला

Dec 23, 09:16 pm
फाजिल्का-टीवी चैनलों पर भले ही तथाकथित मनोरंजक कार्यक्रमों की कितनी भी भरमार हो, लेकिन आज भी पंजाब के शहरों व गांवों में पंजाबी सभ्याचार से जुड़े मेलों के प्रति लोगों का क्रेज ज्यों का त्यों बना हुआ है। रविवार को फाजिल्का में पंजाबी सभ्याचारक मंच की ओर से पंजाबी गायकी के स्तंभ यमला जट की याद में एक विशाल मेले में जुटी बहुत भारी भीड़ ने इसकी पुष्टि कर दी। पिछले 12 बरसों से लगातार आयोजित किए जा रहे इस मेले में इस बार श्रोताओं की संख्या जहां रिकार्ड तोड़ रही वहीं कलाकारों के स्तर व गिनती के अलावा मेले में शामिल नेताओं का स्तर व गिनती का भी कोई मुकाबला नहीं था। मेले के मुख्यातिथि पूर्व सांसद एवं मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के भाई गुरदास सिंह बादल थे। मेले में पंजाब के प्रसिद्ध गायक गायिकाओं ने अपनी कला का जादू बिखेरा वहीं प्रसिद्ध कामेडियन भजना अमली ने भी लोगों को खूब हंसाया।
मेले में गुरदास बादल के अलावा विधायक सुरजीत ज्याणी, एसजीपीसी सदस्य गुरपाल सिंह ग्रेवाल, सूबा सिंह, डीएसपी रछपाल सिंह, डीएसपी जेल दलजीत सिंह भट्टी बतौर विशिष्ट अतिथि कार्यक्रम में शामिल हुए। मेले में प्रसिद्ध गायिका रानी रणदीप, मुहम्मद सदीक, गायक असलम खां, सुखजीत सुक्खी सहित अनेक कलाकारों ने अपनी गायकी के जलवे बिखेरे। इसके अलावा स्थानीय कलाकारों पप्पी पारस, सुरिंदर ननड़ा, बाल गायक गुरनाम सिंह भुल्लर, राहुल वर्मा ने भी गीत पेश किए। कामेडी कलाकार भजना अमली व उनकी जोड़ीदार बीबी संतो (सुमन) ने लोगों को हंसा हंसाकर लोटपोट किया। मेले में मुख्यातिथि बादल ने फाजिल्का के युवा इंजीनियर नवदीप असीजा को फाजिल्का गौरव, सुबोध वर्मा, मुनीष भठेजा को पत्रकार सम्मान, शगन लाल सचदेवा को समाज सेवा सम्मान, प्रो. सीपी कंबोज को आधुनिक तकनीक सम्मान से सम्मानित किया।
इस मौके उन्होंने गायक जस वीर की नई कैसेट चन्न जिहा मुखड़ा व संगीतकार एवं गायक मनजिंदर तनेजा की वंगा छनका के रिलीज भी की। बादल ने प्रिंसिपल गुरमीत सिंह द्वारा लिखित हास्य पुस्तिका लापरवाही जिंदाबाद का विमोचन भी किया। उन्होंने मंच द्वारा पंजाबी संस्कृति के विकास के लिए पंजाबी सभ्याचारक मंच के अध्यक्ष राजेश अनेजा व उनकी टीम द्वारा आयोजित मेले की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। मेले का आयोजन प्योर फूड्स लिमिटेड के आरडी गर्ग के सहयोग से किया गया था। मंच संचालन पंकज धमीजा ने किया।

मोबाइल के जरिये मुखातिब हुए सिद्धू
फाजिल्का : पंजाबी सभ्याचारक मंच की तरफ से मेले में सांसद व लाफ्टर गुरु नवजोत सिद्धू को भी बतौर विशेष मेहमान बुलाया गया था, लेकिन विभिन्न टीवी चैनलों पर गुजरात चुनाव संबंधी कार्यक्रमों व पार्टी के बुलावे पर दिल्ली में होने के चलते सिद्धू समारोह में नहीं पहुंच पाए। उन्होंने मोबाइल के जरिये मेले में मौजूद हजारों श्रोताओं को अपना संदेश प्रसारित किया। सिद्धू ने अपने संदेश में कहा कि गुजरात चुनाव के परिणाम के चलते उन्हे दिल्ली आना पड़ा था। इसलिए वह फाजिल्कावासियों के समक्ष हाजिर नहीं हो पा रहे। उन्होंने इसके लिए जनता से माफी मांगी। अपने संदेश के अंत में चिरपरिचित अंदाज में सिद्धू ने जब 'अपने वल्ल देखां तां कुझ नई पल्ले, फाजिल्का वासियां दे प्यार वल वेखां तां सिद्धू दी बल्ले ही बल्ले' कहा तो पूरा समारोह तालियों सं गूंज उठा।
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/punjab/4_2_4016596.html

Thursday, December 27, 2007

मुद्दा एशिया की सबसे बड़ी ऊन मंडी फाजिल्का की दुर्दशा

फाजिल्का-कभी एशिया की सबसे बड़ी ऊन मंडी का गौरव प्राप्त करने वाली फाजिल्का ऊन मंडी वर्तमान में सरकारी अनदेखी के चलते दुर्दशा की शिकार होकर रह गई है। एक वक्त था जब इस मंडी में राजस्थान व हरियाणा तक और पाकपटन जो अब पाकिस्तान में है, की ऊन बिकने यहां आया करती थी। तब ऊन की खरीद फरोख्त के लिए ऊन बाजार बनाया गया था जो है तो आज भी लेकिन अब वहां ऊन का नामोनिशां तक नहीं है। इस मंडी के पतन का मुख्य कारण भेड़ पालकों को प्रोत्साहन न मिलना है।
उल्लेखनीय है कि फाजिल्का ऊन मंडी कभी एशिया की सबसे बड़ी ऊन मंडी हुआ करती थी। आजादी से पहले यहां बिकने वाली ऊन अंग्रेजों द्वारा एशिया में व्यापार के लिए बनाए गोल्डन रेल ट्रैक के जरिये अन्य एशियाई देशों में निर्यात होती थी। यही कारण था कि हर राज्य के ऊन व्यापारी फाजिल्का मंडी को ही पहल दिया करते थे। ऊन के विशाल व्यवसाय के चलते यहां ऊन की साफ सफाई व कताई के लिए कई प्रेस फैक्ट्रियां भी लग गई थीं। प्रेस फैक्ट्रियां लगाने की शुरुआत भी अंग्रेजों ने ही की थी। अंग्रेजों की प्रेस फैक्ट्री के अलावा यहां राम प्रेस, ओम प्रेस, अशोका काटन फैक्ट्री में भी ऊन की साफ सफाई व कताई का कार्य चलता था जो आजकल बंद हो चुकी है। आज आलम यह है कि कभी ऊन के लिए विख्यात फाजिल्का मंडी में ही आज ऊन अपनी पहचान के लिए मोहताज है। इस ऊन मंडी की इतनी दुर्दशा हुई है कि ऊन के व्यापार के लिए बने यहां के ऊन बाजार में आज ऊन की एक भी दुकान नहीं है। हालांकि एक वृद्ध ऊन व्यापारी आज भी ऊन बाजार में अपनी दुकान पर बैठा नजर आता है, लेकिन वह ऊन की बिक्री की बजाए ऊन के व्यापार के सुनहरी दिनों को ही याद करता है।
फाजिल्का ऊन मंडी की दुर्दशा का प्रमुख कारण सरकार द्वारा भेड़ पालकों को सुविधाएं न देना है। कभी अपनी भेड़ों से पैदा ऊन के जरिये फाजिल्का मंडी को एशिया में नंबर वन बनाने वाले भेड़ पालक आज रोटी के लिए मोहताज है। लेकिन जब यह व्यवसाय अपने सुनहरी दौर में था, तब बड़े बड़े जमींदार भी खेतीबाड़ी के सहायक धंधे के तौर पर भेड़े पाला करते थे, लेकिन आज भेड़ों को चराने के लिए चरागाहों की कमी हो गई है। इसके चलते जमींदारों ने तो भेड़ें पालना छोड़ ही दिया और गरीब चरवाहे जिन्होंने अपनी भेड़े बना रखी है, वह सौ, पचास भेड़ों से साल भर में होने वाली तीन से चार हजार रुपये की आमदनी से अपने परिवार का गुजारा चलाने में असमर्थ है और दिहाड़ी करने पर मजबूर है। उन्हे सबसे बड़ी परेशानी सरकारी सहायता न मिलने की है। अगर सरकार अन्य कृषि कर्जो की तर्ज पर ऊन उत्पादन करने वालों को कर्ज व भेड़ों की चिकित्सा जैसी सुविधाएं दे तो ऊन का व्यवसाय फिर से फाजिल्का को एशिया के नक्शे पर विशिष्ट पहचान दिला सकता है।
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/punjab/4_2_4001730.html

Tuesday, December 18, 2007

सरकार इस बार भी नाकाम रही संस्कृति के उत्थान में

16th दिसम्बर, 2007
फाजिलका -साल 2007 में सांस्कृतिक गतिविधियों के उत्थान के मामले में सरकार व प्रशासन नाकाम रहा है। इस साल भी सांस्कृतिक गतिविधियों के आयोजन का सेहरा विभिन्न निजी स्कूलों और समाज सेवी संस्थाओं के सिर ही बंधा है, जबकि न तो सरकारी स्कूलों और न ही प्रशासन ने संस्कृति के प्रति लगाव में दिलचस्पी नहीं दिखाई।
उल्लेखनीय है कि पंजाब की पहचान उसकी धनी संस्कृति ही है। स्कूल स्तर से शुरू कर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले सांस्कृतिक मुकाबलों में भाग लेकर पंजाब के कलाकार अपना और राज्य का नाम रोशन करते आए है। हालांकि साल 2007 में फाजिल्का में सांस्कृतिक गतिविधियां काफी हुई हैं, लेकिन निजी स्कूलों और समाजसेवी संगठनों ने भावी कलाकारों में जल रही अपनी संस्कृति के प्रसार की लौ लगाए रखा।
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/punjab/4_2_3996727.html
ऐसा नहीं है कि सरकार ने इस दिशा में कोई प्रयास नहीं किया, लेकिन सरकारी स्कूलों में करवाई प्राइमरी से लेकर सीनियर सेकेंडरी स्तर की सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं में फाजिल्का के होनहार विद्यार्थियों को उससे आगे अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने का मौका नहीं मिल पाया। स्थानीय प्रशासन ने भी राष्ट्रीय दिवस 26 जनवरी व 15 अगस्त व एकाध अन्य मौके पर सांस्कृतिक गतिविधियां तो जरूर आयोजित कीं, लेकिन वह आयोजन महज खानापूर्ति भर बनकर रह गए। मगर उन आयोजनों में प्रदर्शन करने वाले विद्यार्थियों ने जहां भी मौका मिला उन्होंने अपनी प्रतिभा का खुलकर प्रदर्शन किया। सबसे बेहतरीन मंच विद्यार्थियों को निजी स्कूलों ने मुहैया करवाया। आत्म वल्लभ स्कूल, सर्वहितकारी विद्या मंदिरा, डीएवी सीनियर सेकेंडरी स्कूल, केडी हाई स्कूल, रेनबो-डे बोर्डिग स्कूल, सेक्रेड हार्ट स्कूल, सरस्वती विद्या मंदिर, चाणक्य माडर्न, डीसी माडल, आर्मी स्कूल व अन्य निजी स्कूलों ने विद्यार्थियों की कला निखारने के लिए जहां सांस्कृतिक मुकाबलों में अवसर प्रदान किए वहीं स्कूलों के वार्षिकोत्सवों में भी विद्यार्थियों ने अपनी कला की धूम मचाई। इसके अलावा समाजसेवा में अग्रणी लायंस क्लब, सेवा भारती, भारत विकास परिषद आदि ने भी लोहड़ी, दीवाली, होली व अन्य तीज त्यौहारों पर सांस्कृतिक समारोह आयोजित कर लोगों को पंजाब की धनी संस्कृति से जोड़े रखा।

EW VISION FOR MALWA\'S COTTON-BELT

Punjabi farmers say Dabb ke wah te raj ke kha - plow deep and eat splendidly. Now along comes a progressive farmer who says Akal nal wah te raj ke kha. MANOJ TRIPATHI UNTIL RECENTLY SPINNING ERI SILK YARN WAS A HIGHLY LABORIOUS UNDERTAK- ING. RADITIONALLY, ERI COCOONS WERE SPUN BY PULLING THE FIBER AND SIMULTANE- OUSLY IMPARTING A TWIST TO IT TO FORM THE YARN. BETTER MACHINES HAVE MADE IT POSSIBLE TO SPIN MORE YARN QUICKER AND IN FINER COUNTS THAN WAS EVER POSSIBLE BY HAND. N FREE-RANGE POULTRY IS AN ENTERPRISE THAT INTEGRATES WELL WITH COTTON-HYOLA- CASTOR COMBINATION. THE CASTOR PLANT "TRAPS" BUGS AND THE BUGS THEN BECOME A MAJOR PART OF THE CHICKENS' DIET.
Sunday Region, P.no-587, 16-12-2007, Hindustan Times

ENGINEER and progressive farmer Sanjeev Nagpal of Fazilka, district Ferozepur, wants farmers to cultivate new habits. And new crops too. Nagpal is the man behind Fazilka-based NASA Agro Industries Ltd. Punjab Agro has stake in NASA while the Central Silk Board and NABARD are also backing the NASA project.
Nagpal's fields show-case a new strategy evolved in collaboration with Punjab Agriculture University. It's not just Nagpal's farm. Experiments are being conducted on hundred acres in ten villages in Ferozepur district Nagpal explains: "Punjab farmers have no trouble imagining a threecrop mix but when the crops are castor, cotton and hyola mustard they stand back and scratch their heads. At the same time, they are well aware that the present cropping pattern can't go on."
There's no need to explain 'cotton' to a Fazilka farmer and hyola is no mystery either. As a variety, hyola is new but it's very similar to the ordinary variety of sarson that is a standard crop. Hyola is a hybrid rapeseed-mustard that requires much less water than wheat and matures in about 145 days during winter. The best thing about Hyola is that it is resistant to frost and is highly tolerant to white rust so expenditure on crop protection chemicals falls dramatically.
But castor? They know what it is, alright. A non-edible oil is pressed from castor seed; the oil has industrial uses, is made into bio-diesel and much of it is exported. The crop flourishes in dry conditions. But where do they sell it? How greatly does the price fluctuate? Is it worth the risk? Nagpal and PAU says plant it.
It turns out that castor plants have some unexpected plus-points. It's a "trap crop". The farmer plants five rows of cotton and then one row of castor. Castor attracts pests away from main crops.
But here's the BIG plus-point: castor leaves are what the muga-silk moth (Antheraea assama) needs. It lays its eggs on castor leaf, the larvae mature and spin their silky cocoons. The silk is harvested, spun and woven into eri silk. Five distribution and collection centres for the silk will be set up in district Ferozepur. Silk-farmers also get worm excreta which when mixed with castor cake, dry leaves and cow dung forms organic fertilizer.
What comes out of a castor crop? Castor seeds yield oil. Castor leaves feed silk-worms and the worm cocoons yield silk and larve go into poultry feed. The castor plants attract insects which are eaten by chickens. All this means that a castor crop can bring in money in several ways.
After four years of field trials, Nagpal has concluded that castor pulls in good profit, even on a small holding and it works fine in combination with cotton and hyola. PAU experts say that cotton-hyola-castor mix will provide stability, reduce use of chemical pesticides and fertilizers, allow the groundwater table to recharge and create much needed employment opportunities. The aim is to create at least 60000 jobs in rural areas over the next five years. PAU now refers to this triple crop as an agro ecosystem of cultivation and has take up the project for valuation, promotion and farmers training.
But the cotton-hyola-castor plan won't work unless farmers get backup and necessary inputs. That is why NASA is going in for "service complexes" that will include nurseries growing quality seeds and seedlings, hatcheries for the right kind of chicks, materials needed for rearing silk-moth larvae and necessary infrastructure for post harvest processing. Says Nagpal: "My idea is to bring together a cluster of industries around Fazilka and have a common packaging facility with a common brand in order to achieve maximum value addition.
To maintain farmer's interest to produce more it is important to link farmers to most remunerative market.
The target is 20,000 hectares spread over three districts in Punjab's cotton belt under castor. The farmers will have the services of agro parks where all necessary inputs will be provided and which will also function like mandis, handiling crops and linking farmers to buyers. Says Nagpal: "Production by masses should have all the advantages of mass production."
The idea is generating a lot of interest in high places. Last week Financial Commissioner (Development) R.S. Sandhu along with director agriculture B.S. Sidhu visited the NASA's experimental farm and appreciated the work.
COTTON-BELT CRISIS During the early nineties the boll weevil and bad weather brought cotton farners to rockbottom. Farmers switched to wheat and paddy. But both wheat and paddy are waterguzzlers. The water table has gone down from 30 feet to 300 feet. Excessive use of agrochemicals has poisoned both water and soil and led to major health hazards. As the water table fell the level of fluoride in the water rose - another serious health hazard. People in this region are suffering from many diseases. With cotton crops wiped out, industries dependant on cotton were wiped out too. Yarn and oilseed units had to either close down or scale down. Today cotton-based industries in he region are working for four months in a year and practically the entire population is unemployed for most of the time. Water gets more and more scarce. That means goodbye to paddy. Farmers are going back to cotton - BT cotton. Farmers fear that it is only a matter of time before pests develop a taste for BT. Non-BT cotton means the inevitable high applications of pesticides and insects soon become resistant to pesticide too. How long before it becomes impossible to raise any crop in this region? Obviously new techniques of cultivation are needed that will manage development of immunity and control pest growth. That's where the "trap crop", also called the "refuge crop", comes in. But most farmers are cultivating very small holdings - in many cases less than 2.5 hectare. So a "trap crop" has to generate income as well. Castor meets the need. The proposed cropping pattern meets two needs: It provides:
Pest management for sustainable crops. Utilisation in several money-earning ways

Monday, December 17, 2007

वतन पर मरने वालों का बाकी यही निशां होगा

Dec 16, 11:31 pm
फाजिल्का

-1971 की भारत-पाक जंग में शहीद हुए भारतीय सैनिकों को 16 दिसंबर (विजय दिवस) के मौके पर श्रद्धांजलि देने के लिए शहीदों को समर्पित आसफवाला समाधि पर विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्रीगंगानगर सेक्टर के मेजर जनरल डीएस दौलता, विशिष्ट अतिथि एसडीएम राजीव पराशर थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता फाजिल्का सेक्टर के ब्रिगेडियर आरके भूटानी ने की।
शहीद यादगार कमेटी, इंडो पाक सुलेमानकी इंटरनेशनल ट्रेड फ्रंट व सेना द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित श्रद्धांजलि कार्यक्रम की शुरुआत मुख्य अतिथि द्वारा शहीदों के स्मारक पर सलामी देने के बाद हुई। मुख्य अतिथि मेजर जनरल दौलता ने कहा कि वीर शहीदों की बदौलत ही आज देश का सिर ऊंचा है और उनकी बदौलत ही देश को दुश्मन के हाथों से बचाया जा सका है। खासकर फाजिल्का को पाकिस्तान के कब्जे में जाने से बचाने के लिए सैकड़ों पाकिस्तानी सैनिकों का सामना कर शहादत का जाम पीने वाले 84 जियाले सैनिकों की बदौलत ही आज फाजिल्का भारत का अभिन्न अंग बना हुआ है।
शहीद यादगार कमेटी की ओर से मुख्य अतिथि मेजर जनरल दौलता को स्मृति चिह्न भेंट किया गया। आर्मी स्कूल फाजिल्का के राष्ट्रीय गीत पेश किया। इस मौके पर शहीद यादगार कमेटी के रतन लाल ठकराल, प्रफुल्ल नागपाल, सेठ राजा राम नागपाल, नासा एग्रो के एमडी संजीव नागपाल, उद्योगपति विक्रम आहूजा, रूड़की आईआईटी के सेवानिवृत्त प्रोफेसर भूपिंदर सिंह, तेजपाल सिंह सेखों, एडवोकेट मनोज त्रिपाठी, प्रगतिशील किसान नरपिंदर झींझा, आर्य समाज के अध्यक्ष सुशील वर्मा, पुरोहित राजेश कुमार आदि मौजूद थे।
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पाकिस्तान ने किया था सबसे बड़ा आत्मसमर्पण
फाजिल्का : भारत-पाक जंग 1971 में पाकिस्तान द्वारा किया आत्मसमर्पण द्वितीय विश्व युद्ध के बाद किया गया सबसे बड़ा आत्मसमर्पण था। इस युद्ध में भारतीय सेना की थल, जल व एयर फोर्स ने शौर्य गाथा लिखते हुए पाकिस्तान को भारत पर हमला करने के दुस्साहस का मजा चखाया था। इस युद्ध में सेना की विभिन्न यूनिटों के असंख्य अधिकारी व जवान शहीद हुए थे उनमें 15 राजपूत के छह अफसर, दो जेसीओ, 62 जवान, चार जाट रेजीमेंट का एक अफसर, चार जेसीओ, 64 जवान, तीन असम रेजीमेंट के चार अफसर, तीन जेसीओ, 32 जवान, अन्य रेजीमेंटों का एक जेसीओ, 27 जवान शामिल है। कुल मिलाकर 206 सैनिकों ने शहादत का जाम पिया था।
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http://in.jagran.yahoo.com/news/local/punjab/4_2_3996719.html

Thursday, December 13, 2007

Meera Chadha Borwankar : First female IPS Officer in Maharashtra Cadre from Fazilka

Another reason to feel proud for the entire community of this India’s smallest big town Fazilka. Daughter of Fazilka, Meera Chadha Borwankar, for becoming the first ever woman to be posted as Commissioner of Mumbai Crime Branch in its 150-year-long history. To be a woman police officer in a force that has barely one or two per cent women is unique in itself; but to head an investigative force of 300 police officers is definitely a first. At present she is working as Special Inspector General of Police, CID State Crime Branch, stationed at Pune.

Mumbai's Crime Branch is known as the premier department of the city's police force, handling the investigation of organized and white-collar crime, and law enforcement in the mega-polis. While it didn't exactly cover itself with glory during the Mumbai riots in the early 1990s, it has had to deal with the operations of rival underworld gangs remote controlled by Dawood Ibrahim, Chhota Rajan and even the don-turned-politician Arun Gawli. It has had to grapple with criminal cases against big film financiers like Bharat Shah, the ignominious Prevention of Terrorist Act (POTA) case against Mohammad Afroz and myriad encounters against gangsters by trigger-happy cops who call themselves `encounter specialists'.
Born and brought up in Fazilka, studies till matriculation from D.C Model School Fazilka. Her father, Mr. O P Chadha, was with the Border Security Force and Posted in Fazilka region till 1971 war. Later she completed her Master's in English Literature from Lyallpur Khalsa College and did her post-graduation from DAV College in Jalandhar, Punjab. She was, by all accounts, a very good student and became head girl of her college. Later, she also studied Policy Analysis in Law Enforcement at the University of Minnesota, USA, was awarded the President's Medal for meritorious service in 1997, apart from the police medal and the Director General’s insignia for meritorious service and Hubert Humphrey Fellowship (2001-2) in three decades of her policing career. During her stint with the state Crime Investigation Department from 1993-95, one of the important cases she investigated was the Jalgaon sex scandal
While answering to a question about choosing IPS as her career, she said “I was good at studies too, participating in plays, debates, etc. I was also in the Punjab Cricket Team”. So, in general I grew up with no future thoughts, but I was sure I did not want my life to end with marriage. When I was in college, during '71-'72, Kiran Bedi had just joined the IPS and was creating waves. That is when, one day, my teachers called me and told me that they saw within me the potential for the IPS and that I should consider it as a career option. I completed my M.A. In English Literature, cleared my UPSC examinations and did my basic police training at SVP National Police Academy, Hyderabad. She asserts that women are much more patient, resourceful and capable than men. All they need to do is throw away the yoke of selfdoubt and their own insecurities
In 1981, she became an IPS officer of the Maharashtra cadre, served as Deputy Commissioner of Police at Mumbai between 1987-91, held independent charge of Aurangabad as District Superintendent of Police (and later of Satara in 1996-99) and was posted at the state CID crime branch in 1993-95. She worked with the Economic Offences Wing of the Central Bureau of Investigation (CBI) in Mumbai and was DIG of the Anti-Corruption Bureau of the CBI in New Delhi.
She is married to Mr. Abhay Borwankar, who quit the Indian Administrative Service to start a food-processing business. She has two children and they presently live in Pune with family.Her immediate ongoing tasks are the extradition case of gangsters like Abu Salem and his partner Monica Bedi from Portugal, Iqbal Mirchi and Tariq Parvin from Dubai and Sharmila Shanbhag from Germany.
Entire Fazilka is proud on her achievements. It is wonderful to have such police officers in our country. We wish Fazilite Meera a bright and further satisfying career ahead. She would be a source of motivation to thousands of young girls in the country. We all know this upright and down-to earth and no-nonsense officer will achieve greater heights and fulfill her mission for the good of the nation! May God Bless Her in All Her Endeavors and Godspeed!

All Proud Fazilite Community
http://www.lovefazilka.esmartweb.com/

Tuesday, December 11, 2007

Accidents in Amritsar most severe: Study

Anilesh S Mahajan TNN
11th December, 2007
Chandigarh: The streets of Amritsar, which give the city an almost medieval feel are the most dangerous in Punjab when it comes to severity of accidental deaths. As per the analysis by TRRIP, IIT Delhi, 863 people die for every 1,000 accidents in the city. Meanwhile, on crash ratio value, six districts of Punjab are above the state’s average of 11.4 crashes per year for 10,000 registered vehicles. Jalandhar (5.9), Amritsar (5.5) and Ferozepur (8.5) follow Faridkot (4.1). Worse among all districts are Fathegarh Sahib (38.5) and Rupnagar (36.3). “This means there is a problem of infrastructure more than anything else,” said Navdeep Asija, scientist at IIT Delhi, who conducted the analysis with the help of Harpreet Kahlon, who runs an NGO here. When it comes to severity of the accidents in the state, Amritsar is followed by Jalandhar (759), Gurdaspur (736) and Mukatsar (731). The study also showed that although their were more accidents in Ludhiana, the severity there was less. “Ludhiana has more vehicles and hence the high number of accidents, but the severity is low,” added Asija. The 2006 accident figures in Punjab were taken into account for the study. It was found that as per the crime records bureau figures, Punjab has the lowest number of accident cases but when it came to severity it was third among all states in the country. Speaking to TOI, Punjab’s IG Traffic HS Dhillon said he is aware of the situation, and doing his bit to improve it. “Most of the accidents in the state take place because of drunk driving and speeding,” he said. “We have finalized the speed graphs for all the roads in the state and would be displaying them soon. Chief secretary has cleared the file for that,” he said. He said that the matter of constituting the Punjab safety council was pending with the government. Scientists recommend The scientists have recommended that the state should have its own online road crash database management system, where scientifically collected traffic and road crash data at the level of various administrative units is available. Punjab government should also ensure the implementation of road safety audits on all upcoming and existing roads in the state. There should be special focus on improving road safety measures and increasing traffic awareness among drivers. Also there should be better medical facilities in case accidents do take place. Cranes and ambulances should be easily available. Special steps should be taken to decrease the speed of vehicles in districts with high crash severity like Amritsar, Jalandhar, Kapurthala, Gurdaspur and Muktsar.

Fatehgarh Sahib, Ropar roads most unsafe -

http://www.tribuneindia.com/2007/20071211/cth3.htm#11
Megha Mann
Tribune News Service

Kharar, December 10
Fatehgarh Sahib, Ropar and Patiala are the worst districts in terms of road safety and traffic management in Punjab.
According to an analysis done by Navdeep Asija, scientist with Transportation Research and Injury Prevention Programme (TRIPP), on road safety in Punjab for 2006, these districts have been found to have an alarmingly high rate of accidents.
Fatehgarh Sahib and Ropar have the highest crash ratio and lowest vehicle density.
In 2006, when Mohali was part of Ropar district, maximum number of accidents took place on the Kharar-Kurali stretch leading up to Ropar.
The stretch handles the entire traffic of Punjab towards Chandigarh.
The district-wise breakup in terms of fatal accidents puts Ludhiana on top, followed by Amritsar and Jalandhar.
However, detailed road safety diagnosis on all districts based on severity index, crash ratio, total road length and vehicle density shows a different picture, as Ropar and Fatehgarh Sahib districts come under high alert category. These are followed by Patiala, Mansa, Moga, Muktsar and Nawan Shahr districts.
“Detailed analysis on this parameter reflects the problem of traffic mismanagement in these districts. Every year, insurance companies give away Rs 1,200 crore in form of motor vehicle claims in the state. Even if 10 per cent of this money is spent on research and development on preventive measures and introducing new road technologies, things will be much better,” Navdeep added.
He has sent this analysis with a set of recommendations to DIG, SSP and DCs of all districts of the state.
He has also recommended that safety should be prime concern of every contractor undertaking any road project. “Safety concern is nobody’s baby. When the state government is not committed towards safeguarding lives of pedestrians, cyclists and other commuters, why will private contractors be?” he added.

Monday, December 10, 2007

Punjab Road Safety Analysis for the year 2006

Special Thanks to Mr. Harman Sidhu, President, ArriveSafe, Chandigarh Based NGO, working in the area of road safety for helping me to perform this analysis. http://www.arrivesafe.org/

Faridkot and Firozpur districts are the best and Fatehgarh Sahib, Patiala and Roopnagar districts are the worse districts in terms of overall Road safety and Management in the district
Statistical analysis was performed on the Punjab Statistical Abstract for the year 2006, Section XXI, Transport and Communications. Even single road crash and fatality is a loss of nation, family and society. These road safety analyses are performed to highlight the safety situation in Punjab and the comparison of road safety situation amongst various districts of Punjab, so that suitable countermeasures at individual/institutional/NGO and government level shall be taken up to save the precious life of people. Basically these are broad road safety analysis; further these analyses at district/tehsil/village level shall perform to enhance the overall road safety situation in the state. As the more number of high speed corridors are coming up in the state resulting increased road fatalities; in last year road crash fatalities increased by 8.26%, whilst vehicle population increased by 6.75%. Details are discussed below;

Abstract
In the year 2006 total 4599 road crash occurred on 63102[1] km long road network in state which includes 1729 km of National Highways in 17 districts of the state. Registration of total 4030914 motor vehicles was reported in the year 2006 with an annual growth of 6.75% in comparison to last year growth of 7%.

Methodology
Detailed statistical analysis was performed on the district wise road crash and road length data of Punjab state. Followings are the key indicators considered for the analysis purpose:-
Severity Index


Severity Index
It indicates that severity of the road crash in the district depends upon many factors, like average vehicle speed in the district, number of vehicles, percentage of National Highways or High Speed corridors in the state etc. Severity Index of the Punjab state was found to be 60.7%, which means 60.7% of the total road crashes occurred in the state are turned out to be Fatal.

Crash Ratio
It indicates the number of road crashes occurred per 10000 registered motor vehicles in the district. Crash ratio of the Punjab state was found to be 11.4 .Only 6 districts were found to be having crash ratio below state’s average value

Vehicle Density (Vehicle per Kilometer)
Vehicle density was calculated as mentioned above. It indicates the number of vehicles per kilometer of road length in the district. Vehicle density for the Punjab state in the year 2006 was 63.9 vehicles/per kilometer of road length.
Observations:
Considering, the number of fatal accidents district wise then probably Ludhiana, Amritsar and Jalandhar are the most unsafe districts in terms of Road Safety, but detailed road safety diagnosis on all the districts based upon the severity index, crash ratio, total road length and vehicle density in the district, resulted in altogether different trends. Whereas Faridkot district shows an excellent road safety and management record followed by district Ferozpur. Fathegarh Sahib, Rupnagar and Patiala were found out to be worse Hit. Based upon the vehicle density and severity Index Amritsar district is on alarming stage, in 86.3% of the total road crashes people died.

6 districts are below the state’s average crash ratio value 11.4, Faridkot is lowest amongst all followed by Jalandhar, Amritsar and Ferozpur. Worse amongst all districts is Fathegarh Sahib and Rupnagar with highest crash ratio and lowest vehicle density.

Generally, as the vehicle density (vehicle per km) goes up, the average speed goes down and that reduces the road crashes. Delhi also followed the same trend, during Asian games (1981) in Delhi; new roads were constructed and widened which resulted in an increased road traffic speed causes highest number of road fatalities in the same year in comparison to previous years. At present in Delhi it road crash fatalities has started going down because of the more number of the vehicles on road and this causing reduction in average speed. Last year total road fatalities in Delhi were reported below 2000.

Coming to Punjab State, reversal is happening in Fatehgarh Sahib and Rupnagar District. Crash ratio of Fatehgarh Sahib and Rupnagar districts is 38.5 and 36.3 respectively; this simply reflects the poor traffic management system, deteriorated road condition and minimum speed control by the local administration and district traffic police. However it is important to note that Fatehgarh Sahib and Rupnagar districts have 0.8% and 2.8% of National Highways in their total road length, still causing more fatal road crashes in comparison to Ferozpur and Faridkot district which has 5.1% and 3.8% of National Highways Length in their total road length. Interestingly Ferozpur and Faridkot has got lowest crash ratio in the state. On all India basis 70% of the total road crashes occurs only on National Highways and length of National Highways is 2% of the total road length of India. Ferozpur and Faridkot districts having maximum road length of National Highways shows significant low crash ratio, which is a good indication of overall Traffic Management and Safety in the district.

If we take number of fatal accidents per 1000 km of the road length in the districts then Patiala, Fatehgarh Sahib and Rupnagar falls into same category. These districts were having 50% high fatalities rate per 1000 km of the road length in comparison to the state’s average which is 44.3.

Talking about Amritsar alone, despite of this fact that crash ratio is 5.5 but Severity Index is 86.3%, which means high average speed in the district, more vulnerable victims like cyclist or pedestrians and more heavy vehicles involved in the road crashes turning 86.3% of all the road crashes into fatal. This needs immediate attention from the authorities.
District Rupnagar and Fathegarh sahib are on high alert followed by Patiala, Mansa, Moga, Muktsar and Nawanshahar districts. Government and local administration should take immediate steps to improve the road safety and management scenario in these districts to save the valuable lives of road users.
Recommendations
State’s own online road crash database management system, where scientifically collected traffic and road crash data at village/block/tehsil/road/district wise can be update regularly by various concern agencies. This will help to access the overall road safety conditions in the state.
As per Ministry of Road Surface and Transportation, government of India, Punjab government shall also ensure the implementation of Road safety audits on all upcoming and existing roads in the state. Upcoming BOT roads shall be taken on priority to check overall road safety conditions, specifically in view of heterogeneous nature of traffic in the state like slow and fast moving traffic on the same road.
Special focus by the government on the pre-crash treatments like road safety audits, safety awareness amongst road users, drivers training along with focusing specifically on Post crash conditions like providing Ambulances and Cranes and First Aid. Pre-crash treatments.
Strong enforcement to control the speed preferably by installing traffic calming devices specially in the districts where severity index is very high like Amritsar, Jalandhar, Kapurthala, Gurdaspur and Muktsar.
Special and strong policies to control land use and parking pattern in the state to discourage the use of more motorised vehicles in the state.

[1] Maintained by P.W.D. (B&R), Punjab, Chief Conservator of Forest, Punjab Commander Works Engineer, Patiala, Punjab State Electricity Board, Central Public works department, Madhopur division and local bodies Govt., Punjab. it does not include the length of small rural roads under different agencies like Panchayat, Irrigation department and private people
Statistical Abstract of Punjab, Section XXI, TRANSPORT AND COMMUNICATIONS, Page 574

Friday, December 7, 2007

फिरोजपुर से भी दिल्ली के लिए चलेगी शताब्दी

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/punjab/4_2_3958112.html
3, december, 2007, Dainik Jagran
-रेल मंत्रालय द्वारा यात्रियों को सभी बड़े छोटे रेलवे स्टेशनों पर ट्रेनों की सभी सुविधाऐं प्रदान करने के लिए कई योजनाएं बनाई गई है, जिसके तहत अब जल्द ही फिरोजपुर से दिल्ली के लिए शताब्दी एक्सप्रेस यात्री ट्रेन चलाने की योजना का पता चला है। सूत्रों के मुताबिक रेल मंत्रालय द्वारा फिरोजपुर से दिल्ली, मुंबई को प्रात: चार बजकर 40 मिनट पर जाने वाली जनता एक्सप्रेस की तरह से ही शताब्दी नाम की एक अन्य यात्री ट्रेन चलाए जाने की योजना पर सर्वे शुरू कर दिया गया है, जिसके पूरा होने में थोड़ा वक्त तो लगेगा ही, परन्तु यह ट्रेन फिरोजपुर से दिल्ली तक का सफर मात्र छह घंटों में पूरा कर लेगी। सूत्रों का कहना है की शताब्दी नाम की यह ट्रेन फिरोजपुर से दिल्ली तक पड़ने वाले सभी मुख्य स्टेशनों पर ही रुका करेगी, जबकि इस समय चलने वाली जनता एक्सप्रेस दिल्ली तक पड़ने वाले सभी छोटे स्टेशनों पर रुकती हुई जाती है, परन्तु रेलवे की योजना के मुताबिक शताब्दी केवल कुछ चुनिंदा स्टेशनों पर ही रुका करेगी।
सूत्रों का कहना है की फिरोजपुर से चलाई जाने वाली शताब्दी को चलाने में अभी करीब तीन से चार महीनों का समय लग सकता है, क्योंकि इसको चलाने के लिए विभाग को ट्रेन में तैनात करने के लिए स्टाफ का भी प्रबंध करना होगा इसके अलावा कई अन्य तैयारियां भी करनी होगी। फिरोजपुर से शताब्दी चलाए जाने की पुष्टि फिरोजपुर मंडल के एक बड़े अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर की है।

फाजिल्का ग्लोबल वार्मिग के खिलाफ संघर्षरत प्रथम शहर

Dec 04, 11:21 pm
फाजिल्का -प्रदूषण की समस्या विश्व के सभी देशों में बड़ी तीव्रता से फैल रही है। इस समस्या से मानव जाति ही नहीं, बल्कि वनस्पति, पशुधन व प्राकृतिक साधनों पर भी गहरा प्रभाव पड़ रहा है। इसका मुख्य कारण वाहनों से निकलने वाला धुआं अधिक है जो ग्लोबल वार्मिग का कारण बनता है। व‌र्ल्ड कार फ्री नेटवर्क कम्यूनिटी ने प्रदूषण की समस्या के समाधान के लिए अपने प्रयास जारी रखे है। सोसायटी ने एशिया महाद्वीप में पंजाब के फाजिल्का को ग्लोबल वार्मिग के खिलाफ संघर्षरत प्रथम शहर घोषित किया है।
समुदाय ने अपनी मैगजीन कारबस्टर के 32वें संस्करण में फाजिल्का द्वारा ग्लोबल वार्मिग के खिलाफ ट्रांसपोर्टेशनमें ऊर्जा बचत करने में प्रथम घोषित किया है। चेक गणराज्य से पंजीकृत यह समुदाय फाजिल्का की ग्रेजुएट वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा ग्लोबल वार्मिग के खिलाफ किए जा रहे प्रयासों से बेहद प्रभावित है, क्योंकि एसोसिएशन भी उक्त समुदाय की तर्ज पर ग्लोबल वार्मिग के खतरे से लोगों को जागरूक कर रही है। एसोसिएशन की स्थापना फाजिल्का के ही मूल निवासी व रूड़की इंजीनियरिंग कालेज के सेवानिवृत्त प्रो. एवं उत्तराखंड में ऊर्जा पुरुष के खिताब से नवाजे गए डा. भूपिंदर सिंह ने की है। एसोसिएशन ने फाजिल्का को प्रदूषण रहित व हरा-भरा बनाने का संकल्प ले रखा है। इसी संकल्प के तहत सोसायटी ने 22 अप्रैल 2007 को शहर में एक साइकिल रैली निकालकर लोगों को प्रेरणा दी थी कि वे स्कूटर कारे आदि छोड़कर साइकिल का प्रयोग करे। अधिक से अधिक पैदल चलने का भी अभ्यास करे। इससे प्रदूषण की समस्या कुछ हद तक हल हो जाएगी। सोसायटी ने हाल ही में संपन्न शहर के 160वें स्थापना दिवस पर आयोजित फाजिल्का महोत्सव में लोगों को अधिक ऊर्जा खपत वाले बल्बों की बजाए सीफएल के प्रयोग के लिए भी प्रेरित किया है। इतना ही नहीं, एसोसिएशन फाजिल्का में स्वच्छ वातावरण पैदा करने के लिए एसडीएम कोर्ट रोड पर रेलवे के सहयोग से हरा भरा बाग व कभी फाजिल्का की शान हुआ करती प्राचीन बाधा झील (जो अब सूख चुकी है) को फिर से उन्नत करने के लिए भी जुटी हुई है।
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/punjab/4_2_3961392.html

Thursday, December 6, 2007

Fazilka: Asia’s first energy-saver town

http://www.tribuneindia.com/2007/20071206/bathinda.htm#9
Fazilka, December 5
The Czech Republic Magazine Carbuster in its 32nd issue, focusing on the theme ‘faith and environment” has selected Fazilka as the first Asian town for adopting the best energy saving practices to fight against global warming in transportation.
Fazilka has set the best example to reduce the effect of global warming. Using religion and world car free network, the city has been successful in bringing together organisations and individuals dedicated to promoting alternatives to car dependence at the local level and working to reduce the human impact on natural environment while improving the quality of life for all.
The campaign was started by the Patron of Graduates Welfare Association Fazilka (GWAF), Bhupinder Singh, on April 22 on the occasion of ‘Earth Day’ by organising a cycle rally for senior citizens followed by installing hoardings of holy messages from Shri Guru Granth Sahib by Guru Nanak Dev Ji on ‘Dharti Tapan’ (global warming) in Fazilka.
The campaign got an impetus this year when global warming became the theme of the “Fazilka Heritage Festival-2007.”
According to a survey conducted by Bhupinder Singh, at present, Fazilka generates 17.5 tons of solid waste every day. Residents have been called upon to stop the use of plastic ware and use CFL lamps instead of the conventional electric bulbs to conserve energy.
Singh maintains that Fazilka is the safest town as no pedestrian and cyclist’s death has been reported in road mishaps within the city zone for a long time.
It is primarily because of 160-year-old narrow residential streets design by the erstwhile East India Company.
To protect the environment, a slogan “Ganga Maiyaa Hum Tere Apradhi, Prayshchit Karenge Cycle Chala Kar, Ped Laga Kar” has been chosen due to the alarming situation arising out of the shrinking of Sunderban delta every year.
One thousand tree samplings have been planted along the Freedom Fighter road in the last five years. This stretch of road and its surrounding areas has been successfully converted into a zero-pollution zone.
The Indian Army has planted more than 9,000 tree samplings in and around Fazilka to bring more land under a green cover. 500 tree samplings have been planted and maintained by progressive farmers at different places.
This year, more than 3000 ‘sheesham’ samplings were gifted and planted by the progressive farmers.
Sub-divisional magistrate of Fazilka Rajiv Prashar has also taken up an initiative to check environmental pollution by imposing a ban on all school children up to the age of 18 years from going to school on automobiles.

Monday, December 3, 2007

भारत-पाक के बीच सबसे बड़ा युद्ध हुआ था फाजिल्का सेक्टर में

Dainik Jagran, 2nd December, 2007
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/punjab/4_2_3955165.html
भारत-पाक सीमा पर बसे फाजिल्का ने आजादी के बाद जहां एशिया में प्रसिद्ध ऊन मंडी व ड्राइपोर्ट होने का गौरव खोया है, वहीं सरहदी इलाका होने के कारण हमेशा भारत के खिलाफ साजिश रचने वाले पाकिस्तान के हमलों को भी झेला है। ठीक 37 साल पहले तीन दिसंबर 1971 में आज के ही दिन नापाक इरादों के साथ भारत पर हमला करने वाली पाकिस्तानी सेना ने सीमा के अन्य स्थानों के साथ फाजिल्का पर भी जोरदार हमला बोला था, लेकिन भारत के मुट्ठी भर जियाले सैनिकों ने फाजिल्का की सरजमीं पर दुश्मन के नापाक कदम नहीं पड़ने दिए। तब दोनों देशों की सेनाओं में सबसे बड़ा युद्ध फाजिल्का सेक्टर में ही हुआ था।
वैसे तो फाजिल्का ने 1975 में भी पाकिस्तान का हमला झेला था, लेकिन भारतीय सेना से टकराने की पाकिस्तानी भूल की निर्णायक जंग 1971 में ही हुई। तीन दिसंबर 1971 के हमले में दुश्मन के सैकड़ों जवानो ने भारत के काफी इलाके पर कब्जा कर लिया, लेकिन भारतीय सेना की चार जाट बटालियन के कुछेक जांबाज सैनिकों ने दुश्मन को फाजिल्का की तरफ नहीं बढ़ने दिया। बल्कि दुश्मन को अपनी वीरता से नानी याद दिला उनके घर में घुसकर शेरमन टैक, गिलगिट जीप, छह पाउंडर गन भी छीन लाए थे।
हमले के साथ ही दुश्मनों ने गांव बेरीवाला के पुल पर कब्जा कर लिया और फाजिल्का की तरफ बढ़ने लगे, लेकिन चार जाट बटालियन के जवानों ने दुश्मन पर जबरदस्त हमला कर उन्हे वापस भागने पर मजबूर कर दिया मगर बेरीवाला तक दुश्मन का कब्जा बरकरार रहा। दुश्मनों की संख्या बढ़ती गई और उन्होंने सबूना बांध पर कब्जा कर लिया। पाकिस्तान ने छीने गए इलाके में लगभग 15 सौ जवान, 20 टैक व कई भारी तोपों से लैस ब्रिगेडियर तैनात कर दी। पाकिस्तान न गांव पक्का पर कब्जा कर लिया था। उसके बाद आई भारतीय सेना की पंद्रह राजपूत बटालियन ने फाजिल्का का बचाव किया। गांव राजी के समीप राजपूत और जाट बटालियन ने सबसे पहले दुश्मन को आगे बढ़ने से रोकने के लिए बेरीवाला पुल को बमों से उड़ाकर दुश्मन के लिए फाजिल्का पर कब्जे का रास्ता बंद कर दिया। आखिरकार जीत भारतीय सेना की ही हुई सात दिसंबर रात को युद्धबंदी की घोषणा के बाद आठ दिसंबर सुबह युद्ध में शहीद हुए 84 जवानों के शव गांव आसफवाला में एकत्रित किए गए वहां नौ फुट लंबी और 81 फुट चौड़ी चिता बनाकर शहीदों का संयुक्त अंतिम संस्कार किया गया।

ऐतिहासिक धरोहर घंटाघर के दुश्मन बने दुकानदार

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/punjab/4_2_3955161.html
फाजिल्का -जहां एक तरफ फाजिल्का के बाशिंदों ने शहर के स्थापना दिवस पर यहां स्थित घंटाघर को रंगबिरंगी लाइटों से दुल्हन की तरह सजाकर व उसके परिसर में तीन दिन तक डीजे म्यूजिक का प्रबंध कर उसे शहर की शान होने की संज्ञा दी, वहीं अब जबकि स्थापना दिवस समारोह संपन्न हो चुका है, घंटाघर के आसपास के दुकानदार ही उसकी खूबसूरती को बिगाड़ने लगे है। दुकानदार फाजिल्का की इस ऐतिहासिक धरोहर के एक द्वार को कूड़ाघर बनाकर, दूसरे को अपने दोपहिया वाहनों का पार्किग स्थल बनाकर, तीसरे व चौथे पर अवैध अतिक्रमण करवाकर घंटाघर की खूबसूरती को बिगाड़ा जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि इस ऐतिहासिक धरोहर की देखभाल करने की जिम्मेवार नगर परिषद ने तो पहले ही इसे अनदेखा कर रखा है, वहीं इसके आसपास के दुकानदारों ने भी इस धरोहर के प्रति अपनी जिम्मेवारी से मुंह फेर लिया लगता है। यही कारण है कि फाजिल्का महोत्सव में छाए रहे घंटाघर के इर्द गिर्द आज गंदगी का आलम है। घंटाघर का एक द्वार दुकानदारों के दोपहिया वाहन संभाल रहा है तो अन्य दो द्वारों पर छोले भटूरे व अन्य रेहड़ियां लगाने वालों ने अतिक्रमण कर लिया है।
जानकारी के अनुसार इस ऐतिहासिक धरोहर का स्वरूप बिगाड़ने का दुकानदारों द्वारा फेंका गया कूड़ा तो बनता ही है, साथ ही आसपास के अधिकांश दुकानदारों द्वारा अपनी दुकानों के आगे नगर परिषद की जगह पर प्रतिदिन के हिसाब से किराया लेकर खड़े किए गए चाट, फ्रूट, गोलगप्पे व अन्य सामान की रेहड़ियों वाले भी घंटाघर परिसर को कूड़ा फेंककर गंदा करते है। हालांकि दुकानदारों द्वारा परिषद की जगह पर रेहड़ियां खड़ा करवाना व उनसे पैसे लेना अवैध है, लेकिन वह ऐसा करने के बावजूद हजारों रुपये महीना कमाने वाले दुकानदार सांझे तौर पर कुछेक सौ रुपया इकट्ठा कर घंटाघर की सफाई का प्रबंध नहीं कर रहे। बल्कि घंटाघर परिसर में या तो कूड़ा खुद फेंक रहे है या फेंकने वालों को मूक दर्शक बने देख रहे है।