Sunday, November 2, 2008

127 सरहदी गांवों में नहीं जलते दीवाली के चिराग

फाजिल्का-वह गांव, कस्बा या शहर ही क्या जहां कोई व्यक्ति न रहता हो। यह हकीकत है कि प्रदेश में ऐसे 127 गांवों है, जिनमें कोई व्यक्ति नहीं रहता। इन गांवों की अपनी जमीन है, पानी की बारी है। यहां तक कि राजस्व रिकार्ड में भी इन गांवों के नाम व हदबंदी दर्ज है।

दरअसल राज्य के सरहदी जिलों फिरोजपुर, अमृतसर व गुरदासपुर के इन गांवों का आबादी वाला हिस्सा विभाजन के बाद तो पाकिस्तान के हिस्से चला गया और भारत के हिस्से सिर्फ कृषि योग्य जमीन ही आई।

आजादी से पहले सभी खुशहाल गांव थे। विभाजन ने उन्हे ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा किया कि वहां आज तक दीवाली पर दीये नहीं जलाए गए और न ही कोई दूसरा त्योहार ही मना।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के रिटायर्ड प्रो. भूपेंद्र सिंह के अनुसार, विभाजन से पहले इन गांवों में काफी आबादी थी। वहां रक्षाबंधन, होली, दीवाली के साथ कई मेले भी लगते थे। विभाजन के बाद इन गांवों में दीये तो क्या, जलने के लिए लोगों के दिल भी नहीं है। भारत में इन गांवों को बेचिराग गांव कहा जाता है। इनमें फिरोजपुर के 39, अमृतसर के 13 और गुरदासपुर के 75 गांव शामिल हैं।

प्रो. सिंह ने बताया कि जब भारत-पाकिस्तान के विभाजन में हदबंदी करने के लिए रेड क्लिफ पहंचे तो हदबंदी के दौरान जनसंख्या वाले गांव पाकिस्तान में चले गए और कृषियोग्य जमीन भारत के हिस्से आ गई। यहां 1887 में अंग्रेजों द्वारा बनाया गया हदबस्त नंबर आज भी लागू है।

बेचिराग गांवों में फिरोजपुर जिले के खोखर, कंदर के, जीवनपुरा, मोहम्मद उस्मान, मोहम्मद इस्मान, गुलशाह, लक्खे हसली, लक्खे के हिठाड़, किल्ली, दोना सिकंदरी, बहक हस्ता हिठाड़, झंगड़ गज बख्सानी गांव इत्यादि शामिल है जो फाजिल्का सीमा में आते है।

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