Wednesday, April 22, 2009

फाजिल्का में कृषि विज्ञान केंद्र की पक्षधर है पीएयू

फाजिल्का-फाजिल्का जैसे खेतीबाड़ी के मामले में लगातार पिछड़ रहे इलाके की खुशहाली के लिए कृषि संबंधी समस्याएं दूर करने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) सरीखी संस्था का यहां होना जरूरी है। यह उद्गार पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी (पीएयू) ंके वाइस चांसलर डा. मंजीत सिंह कंग ने अपने फाजिल्का आगमन के दौरान 'दैनिक जागरण' के साथ बातचीत में प्रकट किए।
डा. कंग ने फाजिल्का फार्मर्स आर्गेनाइजेशन आफ एग्रीकल्चर डेवलपमेंट द्वारा आयोजित किसान मेले से पहले संगठन द्वारा स्थापित किसान सेवा केंद्र का उद्घाटन करने के बाद बातचीत में कहा कि पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी हर क्षेत्र की खास फसल के बारे में समय-समय पर रिसर्च कार्यक्रम चलाती रहती है। साथ ही यूनिवर्सिटी का प्रयास रहता है कि उस इलाके के किसानों को फसल संबंधी कोई समस्या न आए।
डा. कंग ने कहा कि वह तीसरी दफा फाजिल्का आए है और जानते है कि फाजिल्का में धान खासकर बासमती और नरमा की फसल काफी अच्छी गुणवत्ता वाली होती है। संगठन के चेयरमैन सुरेद्र आहूजा से पता चला है कि यहां खराब जमीनी पानी, अपर्याप्त नहरी पानी, दिनोंदिन बिगड़ रहे वातावरण के चलते दोनों परंपरागत फसलों को काफी नुकसान हो रहा है। इसलिए संगठन ने ही उन्हे सुझाव दिया है कि उपमंडल के गांव मौजम में कृषि विभाग की 22 एकड़ भूमि खाली पड़ी है, जिस पर केवीके सरीखे संस्थान का निर्माण किया जा सकता है।
डा. कंग ने कहा कि वह यूनिवर्सिटी की ओर से सरकार से मौजम में रिसर्च सेंटर बनाने की सिफारिश करेगे। राज्य सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद कृषि विभिन्नता के प्रयास सफल न होने का कारण पूछने पर वीसी डा. कंग ने कहा कि अकेले राज्य सरकार के प्रयासों से कुछ नहीं होता जब तक केंद्र सरकार परंपरागत फसलों गेहूं व धान के प्रति अपनी नीति नहीं बदलती। आर्गेनिक खेती बाबत पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी के रवैये बाबत पूछने पर वीसी डा. कंग ने कहा कि पीएयू आर्गेनिक खेती के खिलाफ नहीं है, लेकिन जिस प्रकार हम खेतीबाड़ी में रासायनों के आदी हो चुके है उससे एकदम से रासायनों का प्रयोग बंद कर देना मुमकिन नहीं है। स्पष्ट शब्दों में कहे तो वर्तमान में रासायनों के बिना खेतीबाड़ी की कल्पना भी नहीं की जा सकती। आर्गेनिक खेती से गिरे उत्पादन के बारे में पूछने पर डा. कंग ने कहा कि आर्गेनिक खेती का रुझान बढ़ रहा है, यह अच्छी बात है लेकिन इसका उत्पादन पर जो असर पड़ रहा है उसकी पूर्ति नई वैरायटियों से की जा सकती है। इस मौके पर डा. कंग के साथ प्रगतिशील किसान सुरेद्र आहूजा, प्रेम बब्बर, इंजीनियर संजीव नागपाल, डा. अशोक धवन, डा. कपित त्रिखा आदि मौजूद थे।
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/punjab/4_2_4859960.html

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