Sunday, February 19, 2012

डेयरी उद्योग से उकताने लगे श्वेत क्रांति के वाहक

अमृत सचदेवा, फाजिल्का

सहकारी दुग्ध खरीद संस्थाओं व कंपनियों को दूध बेचने वाले ग्रामीण क्षेत्रों के डेयरी फार्मरों को उनके दूध का वाजिब भाव न मिलने से क्षेत्र में डेयरी फार्म उद्योग नुकसान का सबब बन रहा है। इसके चलते पशु पालक अपने मवेशियों का दूध खपाने को लेकर चिंता में हैं। अधिकांश डेयरी फार्मर तो अब इस धंधे से उकताने भी लगे हैं।

उल्लेखनीय है कि फाजिल्का में ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों ने डेयरी फार्मिग को सहायक धंधे के रूप में अपनाते हुए बड़े बड़े डेयरी फार्म स्थापित किए हैं। सरकार ने भी इन डेयरी फार्मो को प्रोत्साहन देने के लिए लोन व सब्सिडी का प्रबंध कर रखा है, लेकिन उसके बावजूद यह धंधा ग्रामीण क्षेत्रों में प्रफुल्लित नहीं हो पा रहा। इसका प्रमुख कारण इन डेयरी फार्मो के दूध को खपाने की चिंता है क्योंकि प्रदेश में काम कर रही वेरका जैसी कुछेक सहकारी दुग्ध संस्थाएं या नेस्ले जैसी निजी कंपनियां ही इन डेयरी फार्मो का दूध खपाने का प्रमुख जरिया हैं, लेकिन वर्तमान में खुले बाजार में दूध का 28 से 30 रुपये प्रति किलो जो भाव मिल रहा है, उनके मुकाबले उक्त सहकारी संस्थाएं व कंपनियां अधिकतम 21 से 22 रुपये रुपये प्रति किलो का भाव फैट, ग्रेविटी व अन्य शर्तो के अनुसार देती हैं। इलाके के डेयरी फार्मरों संदीप कुमार व लवजीत सिंह ने शनिवार को इस पत्रकार से कहा कि किसानी के धंधे के साथ डेयरी का काम कर रहा व्यक्ति खुद मार्केटिंग में असमर्थ होने के चलते मजबूरन बाजार भाव के उलट उक्त कंपनियों के मनमर्जी के भावों पर दूध बेचने को मजबूर हैं। इसके चलते डेयरी फार्मरों के पशु आहार, पशुओं की देखभाल करने वाली लेबर, दवाओं व डेयरी फार्म के रखरखाव के खर्च भी पूरे नहीं हो पा रहे हैं।

इस बारे में पूछे जाने पर डेयरी विभाग के डिप्टी डायरेक्टर वीर प्रताप गिल ने बताया कि डेयरी फार्मरों को बाजार के अनुसार उक्त कंपनियां कभी दाम नहीं दे सकतीं, क्योंकि उन्होंने फैट और ग्रेविटी के अनुसार भाव तय कर रखा है और उन्होंने निर्धारित भाव ही देना होता है।

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