Wednesday, January 5, 2011

तू रहे या न रहे तेरी शहादत आबाद रहेगी

दो भाई देश की रक्षा के लिए तैनात और घर से दूर नौकरी कर रहे तीसरे भाई की गैर मौजूदगी में मासूम सतनाम सिंह का बचपन माता पिता के प्यार में बड़े सुखद व मस्ती से गुजर रहा था। लेकिन कारगिल वार में देश की रक्षा करते हुए सीने पर गोली खाने वाले आर्मी जवान बलविंदर सिंह की शहादत ने सतनाम का जीवन बदलकर रख दिया। भाई की शहादत याद आने भर से सतनाम की आंखे छलक जाती है पर सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है।

चार जून 1979 को गांव साबूआना निवासी जीत सिंह के घर जन्मे बलविंदर सिंह 23 अप्रैल 1997 में फौज में भर्ती हुआ था। करीब डेढ़ साल देश की सरहद की निगेहबानी करने के दौरान छिड़े कारगिल युद्ध में बलविंदर सिंह पांच जनवरी 1999 को देश के दुश्मनों के साथ लोहा लेते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ। तब बलविंदर का एक भाई दिल्ली में एनएसजी कमांडो और एक भाई बूटा सिंह दूरसंचार विभाग में कार्यरत था। ऐसे में माता पिता के पास रहकर उन्हें सहारा व हौसला देने की सारी जिम्मेवारी आन पड़ी 15 वर्षीय मासूम सतनाम सिंह पर। सतनाम ने अपने भाई की शहादत को माता पिता के लिए गमों का पहाड़ नहीं बल्कि उनका सहारा बन उन्हें अपने शहीद बेटे पर गर्व करने का अहसास भरा।

सरकार व फौज ने भी शहीद बलविंदर सिंह के परिवार को बनता मान सम्मान दिया। फौज की तरफ से ज्यादातर लाभ शहीद के परिवार को दे दिए गए हैं। राज्य सरकार ने शहीद की शहादत को सलामी देते हुए गांव साबूआना के सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल का नाम शहीद बलविंदर सिंह के नाम पर रख दिया। बाद में गांव से शहर आकर बसे शहीद के परिवार वाले क्षेत्र को शहीद बलविंदर सिंह नगर का नाम दिया गया। यही नहीं शहीद के छोटे भाई सतनाम सिंह जिसने कि अपने पिता के साथ मिलकर अपने बड़े भाई की चिता को अग्नि दी थी, को गांव करणीखेड़ा के सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल में नौकरी प्रदान की गई है।

सतनाम सिंह ने कहा कि जब भी कारगिल विजय दिवस आता है और गांव में उसके शहीद भाई के नाम से चल रहे स्कूल में शहीदों के लिए कोई समागम आयोजित होता है, तो उसका व पूरे परिवार का सीना चौड़ा हो जाता है। शहीद का बड़ा भाई बूटा सिंह जोकि अब माता पिता के साथ ही रहता है, को भी महज 20 वर्ष की उम्र में वीरगति प्राप्त करने वाले बलविंदर पर नाज है

No comments: