http://in.jagran.yahoo.com/news/local/punjab/4_2_3955161.html
फाजिल्का -जहां एक तरफ फाजिल्का के बाशिंदों ने शहर के स्थापना दिवस पर यहां स्थित घंटाघर को रंगबिरंगी लाइटों से दुल्हन की तरह सजाकर व उसके परिसर में तीन दिन तक डीजे म्यूजिक का प्रबंध कर उसे शहर की शान होने की संज्ञा दी, वहीं अब जबकि स्थापना दिवस समारोह संपन्न हो चुका है, घंटाघर के आसपास के दुकानदार ही उसकी खूबसूरती को बिगाड़ने लगे है। दुकानदार फाजिल्का की इस ऐतिहासिक धरोहर के एक द्वार को कूड़ाघर बनाकर, दूसरे को अपने दोपहिया वाहनों का पार्किग स्थल बनाकर, तीसरे व चौथे पर अवैध अतिक्रमण करवाकर घंटाघर की खूबसूरती को बिगाड़ा जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि इस ऐतिहासिक धरोहर की देखभाल करने की जिम्मेवार नगर परिषद ने तो पहले ही इसे अनदेखा कर रखा है, वहीं इसके आसपास के दुकानदारों ने भी इस धरोहर के प्रति अपनी जिम्मेवारी से मुंह फेर लिया लगता है। यही कारण है कि फाजिल्का महोत्सव में छाए रहे घंटाघर के इर्द गिर्द आज गंदगी का आलम है। घंटाघर का एक द्वार दुकानदारों के दोपहिया वाहन संभाल रहा है तो अन्य दो द्वारों पर छोले भटूरे व अन्य रेहड़ियां लगाने वालों ने अतिक्रमण कर लिया है।
जानकारी के अनुसार इस ऐतिहासिक धरोहर का स्वरूप बिगाड़ने का दुकानदारों द्वारा फेंका गया कूड़ा तो बनता ही है, साथ ही आसपास के अधिकांश दुकानदारों द्वारा अपनी दुकानों के आगे नगर परिषद की जगह पर प्रतिदिन के हिसाब से किराया लेकर खड़े किए गए चाट, फ्रूट, गोलगप्पे व अन्य सामान की रेहड़ियों वाले भी घंटाघर परिसर को कूड़ा फेंककर गंदा करते है। हालांकि दुकानदारों द्वारा परिषद की जगह पर रेहड़ियां खड़ा करवाना व उनसे पैसे लेना अवैध है, लेकिन वह ऐसा करने के बावजूद हजारों रुपये महीना कमाने वाले दुकानदार सांझे तौर पर कुछेक सौ रुपया इकट्ठा कर घंटाघर की सफाई का प्रबंध नहीं कर रहे। बल्कि घंटाघर परिसर में या तो कूड़ा खुद फेंक रहे है या फेंकने वालों को मूक दर्शक बने देख रहे है।
Monday, December 3, 2007
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