Monday, December 3, 2007

भारत-पाक के बीच सबसे बड़ा युद्ध हुआ था फाजिल्का सेक्टर में

Dainik Jagran, 2nd December, 2007
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/punjab/4_2_3955165.html
भारत-पाक सीमा पर बसे फाजिल्का ने आजादी के बाद जहां एशिया में प्रसिद्ध ऊन मंडी व ड्राइपोर्ट होने का गौरव खोया है, वहीं सरहदी इलाका होने के कारण हमेशा भारत के खिलाफ साजिश रचने वाले पाकिस्तान के हमलों को भी झेला है। ठीक 37 साल पहले तीन दिसंबर 1971 में आज के ही दिन नापाक इरादों के साथ भारत पर हमला करने वाली पाकिस्तानी सेना ने सीमा के अन्य स्थानों के साथ फाजिल्का पर भी जोरदार हमला बोला था, लेकिन भारत के मुट्ठी भर जियाले सैनिकों ने फाजिल्का की सरजमीं पर दुश्मन के नापाक कदम नहीं पड़ने दिए। तब दोनों देशों की सेनाओं में सबसे बड़ा युद्ध फाजिल्का सेक्टर में ही हुआ था।
वैसे तो फाजिल्का ने 1975 में भी पाकिस्तान का हमला झेला था, लेकिन भारतीय सेना से टकराने की पाकिस्तानी भूल की निर्णायक जंग 1971 में ही हुई। तीन दिसंबर 1971 के हमले में दुश्मन के सैकड़ों जवानो ने भारत के काफी इलाके पर कब्जा कर लिया, लेकिन भारतीय सेना की चार जाट बटालियन के कुछेक जांबाज सैनिकों ने दुश्मन को फाजिल्का की तरफ नहीं बढ़ने दिया। बल्कि दुश्मन को अपनी वीरता से नानी याद दिला उनके घर में घुसकर शेरमन टैक, गिलगिट जीप, छह पाउंडर गन भी छीन लाए थे।
हमले के साथ ही दुश्मनों ने गांव बेरीवाला के पुल पर कब्जा कर लिया और फाजिल्का की तरफ बढ़ने लगे, लेकिन चार जाट बटालियन के जवानों ने दुश्मन पर जबरदस्त हमला कर उन्हे वापस भागने पर मजबूर कर दिया मगर बेरीवाला तक दुश्मन का कब्जा बरकरार रहा। दुश्मनों की संख्या बढ़ती गई और उन्होंने सबूना बांध पर कब्जा कर लिया। पाकिस्तान ने छीने गए इलाके में लगभग 15 सौ जवान, 20 टैक व कई भारी तोपों से लैस ब्रिगेडियर तैनात कर दी। पाकिस्तान न गांव पक्का पर कब्जा कर लिया था। उसके बाद आई भारतीय सेना की पंद्रह राजपूत बटालियन ने फाजिल्का का बचाव किया। गांव राजी के समीप राजपूत और जाट बटालियन ने सबसे पहले दुश्मन को आगे बढ़ने से रोकने के लिए बेरीवाला पुल को बमों से उड़ाकर दुश्मन के लिए फाजिल्का पर कब्जे का रास्ता बंद कर दिया। आखिरकार जीत भारतीय सेना की ही हुई सात दिसंबर रात को युद्धबंदी की घोषणा के बाद आठ दिसंबर सुबह युद्ध में शहीद हुए 84 जवानों के शव गांव आसफवाला में एकत्रित किए गए वहां नौ फुट लंबी और 81 फुट चौड़ी चिता बनाकर शहीदों का संयुक्त अंतिम संस्कार किया गया।

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