18th April 2010
फिरोजपुर-इसे पर्यावरण को बचाने की मुहिम की सफलता कहें या तूड़ी (भूसा) के दाम बढ़ने की आशंका। इसे देखते हुए किसानों ने इस बार नाड़ में आग न लगाने का संकल्प किया है। किसानों के इस प्रयास से जहां प्रदूषित हो रहे वातारण को बचाने में मदद मिलेगी वहीं मित्र कीट की जान की भी रक्षा हो सकेगी। जानकारी के मुताबिक पशु चारे के लगातार बढ़ते दाम से चिंतित किसानों ने पशुओं के लिए चारा एकत्र करने के लिए तूड़ी खरीदने का मन बनाया है। छोटे किसान इसके लिए अधिक जमीन वाले किसानों से संपर्क कर रहे हैं और उनके खेत में बची नाड़ से तूड़ी बनाने के एवज में छह सौ रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से धनराशि दे रहे हैं। बड़े किसानों के पास रिपर नामक मशीन है जो प्रति एकड़ छह सौ रुपये तूड़ी बनाने के लिए लेती है। जहां छोटे किसानों के तूड़ी मिल जाएगी वहीं बड़े किसानों के जेब से कंबाइन मशीन को चलाने के लिए प्रति एकड़ गेहूं के फसल काटने के लिए आठ सौ रुपये के एवज में मात्र दो सौ ही अपने पास से देना होगा। गांव गिलदू किलचा के रहने वाले किसान प्रसनजीत सिंह ने बताया कि उनकी चालीस एकड़ जमीन है जिस पर छोटे किसान तूड़ी बनाना चाहते हैं। इसके एवज में वह पैसे दे रहे हैं तो भला उन्हें क्या आपत्ति। गांव हजारा सिंह वाला के रहने वाले कुलवंत सिंह, धर्मपाल सिंह, गमदूर सिंह ने बताया कि इसके कारण बड़े और छोटे किसान खेत में आग लगाने से बच रहे हैं। किसानों का कहना है कि इससे जहां पर्यावरण को फायदा पहुंचेगा वहीं किसानों को पशु चारा आसानी से मिल जाएगा। इन किसानों का कहना है कि वर्तमान में जो हालात हैं उससे साफ जाहिर है कि तूड़ी के दाम और बढ़ने जा रहे हैं। जानकार बताते हैं कि इसके अलावा ईंट बनाने वाले भंट्ठे के लोग भी ईंट पकाने के लिए कोयले के इस्तेमाल की जगह तूड़ी का ही उपयोग कर रहे हैं, जिसके कारण तूड़ी के दाम लगातार आसमान छू रहे हैं। उन्होंने बताया कि कोयले में बनी ईंट हालांकि ज्यादा मजबूत होती है, परन्तु अधिकांश भंट्ठा मालिक कोयला मंहगा होने के कारण विकल्प के रूप में इसका इस्तेमाल धड़ल्ले से कर रहे हैं। बीते वर्ष कई कंपनियों ने किसानों से रिपर मशीन खरीदने के लिए कहा था, लेकिन अभी तक इन कंपनियों के नुमाइंदे नहीं पहुंचे। वहीं पर्यावरण के प्रति मुहिम चला रहे सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल के प्रोफेसर सतिंदर सिंह का कहना है कि तूड़ी के बहाने ही यदि पर्यावरण में सुधार आता है तो बड़ी राहत मिल सकती है। उन्होंने कहा कि लगातार वृक्ष कटने से वातारण में तेजी से बदलाव आ रहा है। उन्होंने कहा कि इसका असर पूरे विश्व में साफ नजर आ रहा है। कहीं सूखा कहीं बाढ़ और तूफान आम जनजीवन को प्रभावित कर रहा है। ऐसे में यदि खेतों में आग नहीं लगती है तो जहां तापमान पर भी बेहतर असर पड़ेगा वहीं पर्यावरण में मौजूद मित्र कीटों की भी रक्षा हो सकेगी। उन्होंने कहा कि जरूरत है इस बात को और लोगों तक पहुंचाने की और अभी तक इस दिशा में जागरण लगातार प्रयास कर रहा है। फिलहाल, तूड़ी के बहाने ही यदि पर्यावरण की हिफाजत होती है तो इसे एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जा सकता है।
Saturday, April 24, 2010
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