फाजिल्का (पंजाब).भारत-पाक सीमा की जीरो लाइन पर तारबंदी के पास भारतीय क्षेत्र में बनी मजार पीर बाबा रहमत शाह में दोनों देशों के बाशिंदों की आस्था है। हर साल जून महीने में यहां मेला लगता है। इस बार भी मेला लगा है। भारत की ओर से हजारों श्रद्धालु माथा टेकने तो आते ही हैं, हजारों पाकिस्तानी भी यहां सजदा करने आते हैं। ऐसे टेक कर चले जाते हैं माथा...
- शनिवार को पाकिस्तान की ओर से कुछ श्रद्धालु ट्रैक्टर पर पाक रेंजरों के सख्त पहरे के बीच पीर बाबा रहमत शाह की मजार पर माथा टेकने आए।
- लेकिन दो देश की सरहदों की मजबूरी के चलते उन्हें दूर से ही पाक क्षेत्र की जमीन पर खड़े होकर माथा टेकने की इजाजत मिली।
- श्रद्धालु यहां कुछ देर रहे और दूर से ही माथा टेककर अपने क्षेत्र रवाना हो गए।
69 साल से है आस्था का केंद्र
- मजार पर माथा टेकने आए सुखदेव सिंह व गुरविंदर सिंह का कहना है कि उनके पिता व दादा बताते थे कि बंटवारे से पहले सीमा के दोनों ओर बसे लोगों में पीर के प्रति काफी आस्था थी।
- लोगों का यह मानना था कि मजार पर सिर झुकाने वाले हर श्रद्धालु की मुराद पूरी होती है।
- इसीके चलते बंटवारे के 69 साल बाद भी भारत-पाक के श्रद्धालुओं की इस मजार के प्रति आस्था कम नहीं हुई है।
- भले ही दोनों देशों के बीच सरहद के रूप में सीमा हो। पर आज भी बाशिंदों की आस्था सरहद पर भारी है।
- शनिवार को पाकिस्तान की ओर से कुछ श्रद्धालु ट्रैक्टर पर पाक रेंजरों के सख्त पहरे के बीच पीर बाबा रहमत शाह की मजार पर माथा टेकने आए।
- लेकिन दो देश की सरहदों की मजबूरी के चलते उन्हें दूर से ही पाक क्षेत्र की जमीन पर खड़े होकर माथा टेकने की इजाजत मिली।
- श्रद्धालु यहां कुछ देर रहे और दूर से ही माथा टेककर अपने क्षेत्र रवाना हो गए।
69 साल से है आस्था का केंद्र
- मजार पर माथा टेकने आए सुखदेव सिंह व गुरविंदर सिंह का कहना है कि उनके पिता व दादा बताते थे कि बंटवारे से पहले सीमा के दोनों ओर बसे लोगों में पीर के प्रति काफी आस्था थी।
- लोगों का यह मानना था कि मजार पर सिर झुकाने वाले हर श्रद्धालु की मुराद पूरी होती है।
- इसीके चलते बंटवारे के 69 साल बाद भी भारत-पाक के श्रद्धालुओं की इस मजार के प्रति आस्था कम नहीं हुई है।
- भले ही दोनों देशों के बीच सरहद के रूप में सीमा हो। पर आज भी बाशिंदों की आस्था सरहद पर भारी है।