Saturday, February 26, 2011

Rail Budget : Abohar-Fazilka rail link perks up border towns

Chander Parkash/ TNS
Abohar/Fazilka, February 25

The residents of Abohar and Fazilka, border towns in Ferozepur district and various villages falling under their respective jurisdiction, had a reason to cheer today as the Union Railway Minister Mamata Banerjee has given an effective hint in connection with the commissioning of the much awaited Abohar-Fazilka rail link for the passengers in the current year. In her railway budget speech delivered in Parliament today, Mamata has sanctioned a new train for the Abohar-Fazilka track, which is likely to be operational by March this year.

Vishwesh Chobey, Divisional Railway Manager (DRM), Ferozepur, said Banerjee had sanctioned a new train for the Abohar-Fazilka link. Hence, it had become certain that the rail link would start its operation on a commercial basis, this year.

The residents of Abohar and Fazilka regions of Punjab and the adjoining Sriganganagar district of Rajasthan have been waiting for commencing of train service on the Abohar-Fazilka section for the last eight years.

The establishment of the rail link has been delayed and hence, its cost of construction has gone up to Rs 210 crores from the original estimate of Rs 88 crores, which was worked out for it in the initial stage. This important rail link was sanctioned in 2003 by the Ministry of Railways on the consistent demand of people and politicians of these regions. The foundation stone was laid down by the then Union Railway Minister Nitish Kumar in 2004.

The rail link was supposed to be operational in 2007. However, the physical work was almost completed in the recent past and trial run was expected to start any time. The rail link, when becomes operational, will set up direct train connectivity between Ferozepur border district of Punjab and Sriganganagar border district of Rajasthan.

Besides, it would open new rail routes for Abohar and Fazilka. The trade activities in these border towns are also expected to pick up with the commencement of the new rail link.

Raj Sadosh adds: Sweets were distributed in the old grain market area here today after the Railway Minister announced the much-awaited Abohar-Fazilka passenger train. However, Hanuman Dass Goyal, vice-president, Railway Passengers Association, regretted that the minister had not accepted other demands even when scores of memorandums seeking more facilities for the commuters had been sent to her.

सीमांत किसान हुए उम्मीदवान

पाकिस्तान की ओर से होने वाली हथियारों और नशे की तस्करी के अलावा घुसपैठ पर नकेल कसने के लिए भारत सरकार की ओर से भारत पाक अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर 90 के दशक में लगाई गई तारबंदी के पार के किसानों को उम्मीद है कि सरकार की ओर से पेश होने वाले बजट में उन्हें मुआवजे के तौर पर स्पेशल फंड दिया जाएगा। 

यह मुआवजा किसानों को पिछले 14 साल से नहीं मिल रहा। बार्डर एरिया संघर्ष कमेटी के नेता कामरेड शक्ति, बार्डर एरिया विकास फ्रंट के अध्यक्ष बलजिन्द्र सिंह और सचिव लीलाधर शर्मा ने बताया कि 1989 में सरकार द्वारा सरहदी जिलों फिरोजपुर, अमृतसर, गुरदासपुर और तरनतारन में कोबरा तार लगाई गई थी। जिस कारण हजारों किसानों की कृषि योग्य भूमि तारबंदी के पार आ गई। जिससे किसानों की परेशानियां बढ़ गई। उन्होंने बताया कि किसान जहां 24 घंटे अपने खेतों की रखवाली करते थे, तारबंदी के बाद वे मात्र आठ घंटे ही अपने खेत की रखवाली कर पाते हैं। इसके चलते उनके खेत असुरक्षित हो गए। उन्होंने बताया कि इस कारण कृषि कम होने लगी। इससे किसानों को काफी नुकसान हो रहा है। उस समय मुख्य सियासी सचिव एमएल कपूर की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया। जिसने फैसला दिया कि तारबंदी के पार किसानों को 2500 रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवजा दिया जाएगा। 

गांव मुहार जमशेर के पूर्व सरपंच हरबंस सिंह ने बताया कि उन्हें सिर्फ दो तीन साल ही मुआवजा दिया गया। इसके बाद 1997 से लेकर आज तक मुआवजा नहीं मिला। जिससे किसानों की हालत बदतर हो गई। कामरेड शक्ति ने बताया कि किसानों को मुआवजा देने की मांग को लेकर उनका संगठन संसद भवन का घेराव कर चुका है और इस बारे में गृह सचिव व सुरक्षा विभाग को भी मांग पत्र  दिया गया है। अब उन्हें उम्मीद है कि अगले बजट में किसानों के लिए स्पेशल फंड पास किया जाएगा। उन्होंने यह मांग भी की है कि किसानों का मुआवजा 5000 रुपए किया जाए। इससे किसानों की हालत में कुछ सुधार होगा।

गोल्डन टै्रक को लंबे समय से एक्सप्रेस ट्रेन की बाट

रेलवे की ओर से देश भर मेें एक कोने से दूसरे कोने तक जोडऩे के लिए रेल लाइनों का जाल बिछाया गया है और उन पर तेज दौड़ती गाडिय़ां मिनटों में ही दूसरे शहर तक पहुंच जाती हैं, लेकिन गोल्डन ट्रैक के नाम से मशहूर फाजिल्का का रेलवे स्टेशन एक्सप्रेस की इंतजार में एक सदी बिता चुका है। बार बार मांग करने के बावजूद यहां से कोई एक्सप्रेस रेल नहीं चली। 

इस बार क्षेत्र के लोगों को उम्मीद है कि अगले बजट में फाजिल्का को एक्सप्रेस रेल जरूर मिलेगी। गौर हो कि फाजिल्का में 1886 में रेलगाड़ी आ गई थी। पहले यहां सेे पैसेंजर गाडियां चलती थी, मगर करीब एक दशक पूर्व से यहां से डीएमयू रेल चलाई जा रही है, लेकिन उसके साथ डिब्बों की कमी तो खटकती ही है, साथ ही यात्रियों के लिए सबसे बड़ी मुसीबत यह है कि गाड़ी में शौचालय तक नहीं बनाया गया। यात्री प्रदीप कुमार ने बताया कि वह बठिंडा से अपने बच्चों के साथ फाजिल्का पहुंचा है, लेकिन डीएमयू गाड़ी में शौचालय की सुविधा नहीं होने के कारण उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। फिरोजपुर तक का रोजाना सफर करने वाले सोहन लाल ने बताया कि डिब्बों और शौचालय की कमी के कारण यात्री बहुत परेशान हैं। उन्होंने बताया कि यहां से पैसेंजर गाड़ी सिर्फ रेवाड़ी के लिए ही चलती है। अन्य शहरों में एक्सप्रेस रेल गाडिय़ां चलाई जा रही हैं, लेकिन फाजिल्का अभी तक डीएमयू गाड़ी तक ही अटका हुआ है। 

राजधानी और धार्मिक स्थानों से जोड़ों रेल : नॉर्दर्न रेलवे पेसेंजर समिति के अध्यक्ष डा. अमर लाल बाघला ने बताया कि 1990 से पूर्व फाजिल्का से मीटर गेज गाड़ी चलती थी। इसके बाद यह रेल बंद कर दी गई। इस कारण फाजिल्का से मुक्तसर के रेल रास्ते में आने वाले सभी स्टेशन नीचे रह गए हैं। उन्होंने इन्हें ऊंचा करवाने की मांग की है। उन्होंने बताया कि फाजिल्का से कोटकपूरा तक 4एफके सुबह तीन बजे फाजिल्का से रवाना होती है। वह गाड़ी सुबह पंजाब मेल गाड़ी से यात्रियों का मेल नहीं करवाती। इस कारण यात्रियों को परेशानी होती है। 

इसके बाद सुबह 8:30 बजे रेलगाड़ी रवाना होती है। इस कारण खासकर मुलाजिमों को भारी परेशानी होती है और वे समय पर अपने कार्यालयों में नहीं पहुंच सकते। उन्होंने बताया कि मुक्तसर तक कोई सीधा मार्ग नहीं है, जहां से यात्री बसों में सफर कर सकें, इसलिए उन्हें रेल में ही सफर करना पड़ता है। 

समिति की ओर से यह भी मांग की गई है कि श्रीगंगानगर से दिल्ली, चंडीगढ़, हरिद्वार और अमृतसर तक भी सीधी रेलगाड़ी चलाई जाए जो वाया अबोहर फाजिल्का से होकर चले। इस बारे में वह डीआरएम, नॉर्दर्न रेलवे के जनरल मेनेजर और चेयरमैन को इस बारे में मिल चुके हैं

Tuesday, February 22, 2011

Toxicity victims await promised RO systems in villages Read more: Toxicity victims await promised RO systems in villages

FEROZEPUR: The fate of residents of Teja Rohela and Dona Nanka villages in Fazilka subdivision of Ferozepur district, hit by health problems, including neurologically impaired children, cancer cases, kidney ailments and infertility, as a result of multiple environmental toxicity, has not changed even as the local administration had promised better health facilities and installation of RO systems for supply of clean potable water. 

In June last year, TOI had prominently raised the issue of increasing cases of neurological disorders, cancer, arthritis and skeletal fluorosis among villagers, including those of Teja Rohela, Dona Nanka, Gatti No. 3 and Khubban. 

TOI report had highlighted how Teja Rohela and Dona Nanka have turned into villages of the diseased, with a large number of residents suffering from stunted growth. More alarming were cases of children and adults suffering from neurological disorders like cerebral palsy, mental retardation, autism, attention deficit and hyperactivity disorder (ADHD), learning disabilities and various other forms of undefined neuromuscular manifestations. 

Following TOI report, Kamal Kishor Yadav, deputy commissioner, Ferozepur, had visited the village along with a team of medical experts in June 2010 and promised to get RO systems installed to meet the potable water needs of the residents. He had also promised regular medical camps. Ironically, even after so many months, nothing has been done and residents of these villages continue to consume polluted water. 

"Even after the government had detected that multiple environment toxicity was adversely affecting us, nothing substantial has been done to improve our quality of lives. We are still forced to drink underground water as we do not have any other alternative," rued Raj Bakash, a local resident. 

"All the promises have turned out to be false," said Malkit Singh of Teja Rohela village. Raj Singh, another villager, told TOI that it was learnt that the administration had called tenders for installing RO system about four months ago. However, as the village did not have its own panchayat land to install it, the proposal was pending. It is only now that a local resident has offered a small piece of land for installing the plant. 

When contacted, Yadav repeated his previous promise that nearly 100 other villages in the district, where the drinking water is not fit for human consumption, are shortly getting RO Systems.

Read more: Toxicity victims await promised RO systems in villages - The Times of India http://timesofindia.indiatimes.com/india/Toxicity-victims-await-promised-RO-systems-in-villages/articleshow/7543839.cms#ixzz1EeazlR2A

Monday, February 21, 2011

धूम्रपान हड्डियों व नाड़ियों को कर रहा कमजोर

जागरण संवाददाता, फाजिल्का

देखने में भले चंगे लगने वाले लोग एक बिस्तर पर पड़े मरीज से भी ज्यादा बीमार हैं, इसका पता उम्र के 40 बसंत देखने के बाद से चलने लगता है। चालीस साल उम्र में ही बढ़ रहे हृदय रोगियों, हड्डी व जोड़ों के रोगियों और अनेक प्रकार की बीमारियों के शिकार लोग न केवल जल्द बूढ़े हो रहे हैं बल्कि 60-65 बरस की उम्र में मृत्यु का शिकार भी हो रहे हैं। इसका मुख्य कारण लोगों का बिगड़ चुका रहन-सहन है। यह उद्गार डा. स्वामी भागेश्वर ने रविवार को बीकानेरी रोड पर एक नि:शुल्क हड्डी व जोड़ जांच शिविर के बाद 'दैनिक जागरण' के साथ बातचीत में प्रकट किए।

डा. भागेश्वर ने बताया कि उनके द्वारा जांचे 200 सौ मरीजों में से 180 से अधिक मरीज किसी न किसी हड्डी व जोड़ों के रोग से पीड़ित पाए गए हैं। उनमें यूरिक एसिड की समस्या वाले मरीजों की संख्या भी खासी है। उन्होंने कहा कि जिस तरह रोजाना टूथ ब्रश करना व नहाना जरूरी है, उसी तरह रोजाना व्यायाम करना व खान पान और रहन-सहन में संयम बरतना भी बहुत जरूरी है। लेकिन आज के जमाने में लोग काम पर ज्यादा और अपनी सेहत की ओर कम ध्यान देते हैं। सही समय पर सोना नहीं, सुबह जल्द उठना नहीं और जिस समय जो भी सही गलत मिला, अपनी जीभ के स्वाद के लिए उसे खा लेना आजकल लोगों की दिनचर्या में शामिल हो गया है। तली वस्तुएं खाने से लोग यूरिक एसिड की समस्या के शिकार हो रहे हैं। धूम्रपान जहां लोगों के फेफड़ों को नुकसान पहुंचा रहा है वहीं हड्डियों व नाड़ियों को भी कमजोर बना रहा है। सबसे ज्यादा प्रभावित रासायनिक खादों और स्प्रे से तैयार फसलें इंसान का शरीर खोखला कर रही हैं। रही सही कसर इंसान खुद खान-पान, रहन सहन में संयम न बरत कर और व्यायाम से दूर होकर पूरी कर रहा है। रात को भोजन के बाद और सुबह उठकर सैर व व्यायाम करने की आदत लोगों को कई बीमारियों से बचा सकती है।

Marked as males till last year, this transgender family to be finally counted in Census 2011

Fazilka, Sukhdeep Kaur

Once lecturer now spiritual guru, Puneet Mahant did it all for right to dignity

Ten years ago, Census 2001 had marked them as males. Again last year, this husband and wife were asked to fill in the forms as males during a survey for Punjab government jobs. Now, Census 2011, for the first time, has given Puneet Mahant and Poonam Mahant the right to mark their identity as what they are — transgenders. But this family's fight for right to dignity started many years before, through education.

Puneet was in Class XII when he realised that he was not like the 'others'. "I had no idea that I was a transgender as my mother, a transgender herself, never made me dance or sing at weddings; there was no clapping at home and she just told me to earn respect through education," says 34-year-old Puneet, who went on to complete his Master's in English and did a BEd and MPhil to become a guest lecturer at the Government College, Fazilka.

Wednesday, February 16, 2011

पर्यटकों को रिट्रीट सेरेमनी देखना पड़ता है महंगा - Fazilka Retreat Ceremony

अमृत सचदेवा, फाजिल्का

पंजाब हेरीटेज एंड टूरिज्म प्रमोशन बोर्ड की सूची में शामिल होने के बावजूद फाजिल्का में पर्यटन स्थलों को विकसित करने की ओर सरकार द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा। इसका एक बड़ा उदाहरण भारत-पाक सीमा की रिट्रीट सेरेमनी बनी हुई है, जिसे देखना हो तो बाहर से आने वाले पर्यटकों व शहरवासियों को अपने निजी वाहन पर जाना पड़ता है। रोडवेज द्वारा यहां की सादकी चौकी व रास्ते में पड़ते भारत-पाक युद्ध के शहीदों की समाधि के लिए कोई बस नहीं चलाई गई। यहां तक कि सरहदी क्षेत्र के लिए कोई रोडवेज बस सेवा ही नहीं है।

उल्लेखनीय है कि पूरे देश में भारत-पाक सीमा पर सिर्फ तीन जगह ही रिट्रीट सेरेमनी (दोनों देशों के सैनिकों द्वारा शून्य रेखा पर झंडा चढ़ाने व उतारने की रस्म) अदा की जाती है। उनमें से एक अमृतसर का बाघा बार्डर, दूसरा फिरोजपुर का हुसैनीवाला बार्डर व तीसरी जगह फाजिल्का की सादकी चौकी है। ग्रेजुएट वेलफेयर एसोसिएशन फाजिल्का के पदाधिकारियों ने प्रयास करके फाजिल्का की सादकी चौकी, भारत-पाक युद्ध में शहीद वीर भारतीय सैनिकों की संयुक्त आसफवाला समाधि और अन्य कुछ स्थलों को पंजाब हेरीटेज एंड टूरिज्म प्रमोशन बोर्ड की सूची में शामिल करवा लिया है, लेकिन उसके बावजूद फिरोजपुर जिले की सरकारी वेबसाइट में जिले के दर्शनीय स्थलों में फाजिल्का के पर्यटन स्थलों का कोई जिक्र नहीं किया गया। बीएसएफ के विजिटर रजिस्टर से मिली जानकारी के अनुसार प्रतिमाह सादकी चौकी पर करीब छह हजार पर्यटक पहुंचते हैं। यह संख्या दोगुनी से तिगुनी हो सकती है, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि न तो सादकी चौकी और न ही आसपास के करीब एक दर्जन सरहदी गांवों के लिए रोडवेज की बस सुविधा है। जबकि इस मार्ग पर शहीदों की आसफवाला समाधि, तीन असम बटालियन के जवानों की समाधि, पाकिस्तान का हमला विफल करने के लिए बमों से उड़ाया गया बेरी वाला पुल आदि अनेक दर्शनीय स्थल हैं, जिसे देखने के लिए पर्यटक व शहरवासी जाना पसंद करते हैं। लेकिन बस सुविधा न होने के कारण या तो महंगी दरों पर अपने वाहन का प्रबंध करना पड़ता है या फिर अपना कार्यक्रम रद करना पड़ता है। बस सेवा के अलावा सादकी चौकी तक जाने के लिए वाहन रुकने के बाद पैदल के करीब एक किलोमीटर रास्ते के लिए रिक्शा या बैटरी रिक्शा, चौकी के इतिहास की जानकारी देने के लिए कोई पत्रिका या टीवी स्क्रीन, चौकी व आसफवाला समाधि पर कैंटीन आदि का प्रबंध करने की जरूरत है।

इस महत्वपूर्ण रूट पर कोई रोडवेज बस न होने के बारे में पूछने पर रोडवेज के अड्डा इंचार्ज जीवन सिंह ने बताया कि करीब दो दशक पहले सादकी चौकी के लिए बस सुविधा थी, लेकिन अब रोडवेज में बसों व कर्मचारियों की कमी के चलते सादकी सहित कई अन्य रूट बंद पड़े हैं।

Monday, February 14, 2011

वरदान साबित हो रहा है टैक्नालाजी मिशन आन काटन

अमृत सचदेवा, फाजिल्का

नरमा फसल की गुणवत्ता सुधार में टेक्नोलाजी मिशन आन काटन (टीएमसी) की लैब अहम भूमिका निभा रही है। फाजिल्का के काटन यार्ड में स्थित करोड़ों रुपये की लागत से तैयार यह लैब नरमे की गुणवत्ता सुधार किसानों को उसका अच्छा मूल्य दिला रही है। नतीजतन नरमा यहां पूरे देश की मंडियों से सर्वाधिक कीमत पर बिक रहा है।

उल्लेखनीय है कि टेक्नोलाजी मिशन आन काटन की ओर से फाजिल्का में करीब सवा करोड़ रुपये की लागत से काटन यार्ड का निर्माण किया गया है, ताकि मंडी में उड़ने वाली धूल से नरमे की गुणवत्ता प्रभावित न हो। साथ ही करीब 2 करोड़ रुपये की लागत से लैब में स्थापित मशीनरी नरमे की गुणवत्ता बढ़ाने में किसानों को पूर्ण सहयोग कर रही है। काटन यार्ड व लैब स्थापित होने से पहले अनाज मंडी में बिकने आने वाले नरमे के भाव व्यापारी ही गुणवत्ता के आधार पर तय करते थे। अब लैब में नरमे की हर क्वालिटी के प्रत्येक रेशे की जांच कर उसकी गुणवत्ता बताई जाती है। इससे किसान हक से नरमे का अधिक रेट व्यापारी से मांगता है और व्यापारी भी लैब रिपोर्ट के आधार पर अच्छा भाव देता है। हालांकि इस साल पाकिस्तान, चीन व पड़ोसी राज्य हरियाणा में नरमे की फसल नष्ट होने के कारण किसानों को भाव अधिक मिल रहा है, लेकिन गुणवत्ता के मुताबिक उचित मूल्य दिलाने में फाजिल्का की टीएमसी लैब भी पीछे नहीं है।

लैब प्रभारी रोशन लाल शर्मा ने बताया कि लैब में 60-60 लाख कीमत की 3 हाई वाल्यूम टेस्टिंग मशीनें स्थापित की गई हैं। इनमें डाले गए नरमे के सैंपल से नरमे के रेशे की लंबाई का पता चलता है। हाई वाल्यूम टेस्टिंग मशीन के आपरेटर सुखदेव कंबोज ने बताया कि रेशे के अनुसार ही नरमे का उच्चतम भाव तय किया जाता है। लैब के किसान सूचना केंद्र के इंचार्ज रविंद्र कुमार ने बताया कि लैब में एक टच स्क्रीन मशीन भी स्थापित की गई है। इसे मिशन द्वारा इंटरनेट के जरिए समय-समय पर अपडेट किया जाता है। इस मशीन से किसान मौसम के बदलाव, नरमे को लगने वाली बीमारियों, उसके कीड़ों की रोकथाम आदि की जानकारी खुद ही अंग्रेजी, पंजाबी व हिंदी भाषा में आसानी से प्राप्त कर सकता है।

एआईईईई की तर्ज पर मोक टेस्ट आज

Feb 14, 2011
जागरण संवाद केंद्र, फाजिल्का

नान मेडिकल ग्रुप के विद्यार्थियों के लिए एक मोक टेस्ट का आयोजन स्थानीय डीसी डीएवी पब्लिक स्कूल में किया गया। यह टेस्ट एआईईईई 2011 की तर्ज पर लिया गया। इस टेस्ट में फाजिल्का के अलावा अबोहर, मलोट, जलालाबाद, गुरुहरसहाय व फिरोजपुर के सैकड़ों विद्यार्थियों ने भाग लिया।

पंजाब के प्रसिद्ध रयात बाहरा ग्रुप द्वारा ग्रेजुएट वेलफेयर एसोसिएशन फाजिल्का के सहयोग से आयोजित इस टेस्ट में विद्यार्थियों को लाने और वापस ले जाने का खर्च भी ग्रुप द्वारा वहन किया गया। इस टेस्ट में अव्वल रहे विद्यार्थियों को रयात बाहरा ग्रुप की ओर से छात्रवृत्ति के अलावा 11 हजार, 51 सौ व 31 सौ रुपये नकद पुरस्कार क्रमश: पहले, दूसरे व तीसरे स्थान के लिए दिए जाएंगे। स्कूल प्रिंसिपल ऋतु मैनराओ ने कहा कि ग्रुप व एसोसिएशन द्वारा किया गया यह प्रयास सराहनीय है। एसोसिएशन के सचिव नवदीप असीजा ने कहा कि ग्रुप के इस प्रयास से विद्यार्थियों को एआईईईई 2011 की तैयारी में काफी मददगार मिलेगी। इस मौके पर स्कूल स्टाफ के अलावा एसोसिएशन के संरक्षक डा. भूपेंद्र सिंह, डा. रजनीश कामरा, पंकज धमीजा, रवि खुराना, जलालाबाद से प्रोफेसर चुघ, मलोट से रोहित कालड़ा, इंजीनियर संजीव कालड़ा, फाजिल्का के कैप्टन एमएस बेदी, विकास शर्मा, वरुण खन्ना आदि मौजूद थे।

Sunday, February 13, 2011

सफेद सोने ने फाजिल्का में तोड़े देश के सारे रिकार्ड

संवाद सूत्र, फाजिल्का

सफेद सोने के नाम से विख्यात इलाके की प्रमुख फसल नरमे ने शनिवार को अधिकतम भाव पर बिकने के सभी रिकार्ड तोड़ दिए। देश की सभी मंडियों में से फाजिल्का मंडी में नरमा 7085 रुपये प्रति क्विंटल बिका। उल्लेखनीय है कि शुक्रवार को ही नरमा फाजिल्का मंडी में सात हजार रुपये प्रति क्विंटल हो गया था। अधिकारिक तौर पर मंडी में शुक्रवार को नरमा 6999 रुपये खरीदा गया था और निजी व्यापारियों ने सात हजार तक का भाव दिया था। फाजिल्का के काटन यार्ड स्थित टेक्नोलाजी मिशन आन काटन के इंचार्ज रोशन लाल शर्मा ने बताया कि यहां के नरमे की गुणवत्ता और इंटरनेशनल मार्केट में बढ़ी मांग के चलते शनिवार को नरमा 7085 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिका।

राजनीतिक इच्छा शक्ति से सुधरेगी बाधा

अमृत सचदेवा, फाजिल्का

कौन कहता है कि आसमां में छेद नहीं होता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो, कहावत सूख चुकी बाधा झील को सजीव करने के प्रयास में सही साबित हो सकती है। बशर्ते इस कार्य के लिए जुटे सामाजिक संगठनों को राजनीतिक इच्छा शक्ति का सहारा मिल जाए। अगर स्थानीय विधायक प्रयास करें तो झील को फिर से आबाद करने के लिए न केवल गांव की पंचायत से जमीन मिल सकती है बल्कि उसे रिचार्ज करने के लिए पानी भी गंग कैनाल की एस्केप से मिल सकता है।

उल्लेखनीय है कि पर्यटन स्थल एवं पिकनिक स्पाट के रूप में विकसित होने की क्षमता वाली बाधा झील को फिर से सजीव करने के लिए सिर्फ गांव की पंचायत द्वारा झील के तल पर कृषि बंद करवाना और झील के पानी की बारी नियमित रूप से पानी मिलना जरूरी है। अगर स्थानीय विधायक सुरजीत ज्याणी चाहें तो पंचायत से जमीन ले सकते हैं। पंचायत को सिर्फ एक साल के ठेका का त्याग करना होगा जो महज एक लाख 20 हजार रुपये आता है। एक साल बाद उस झील में मछली पालन के ठेका राशि से दोगुनी आय होने लगेगी। वहीं विधायक ज्याणी ही सिंचाई विभाग द्वारा इस झील के लिए मंजूर पानी, जोकि बंद कर दिया गया है, फिर से शुरू करवा सकते हैं। इरीगेशन विभाग के एसई भगवंत सिंह वैरड़ ने कहा कि बाधा झील को भरने के लिए उसकी पानी की बारी व कुछ समय के लिए विशेष रूप से अलग-अलग नहरों के एस्केप से पानी लेना काफी है।

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विधायक से मिलेगा एनजीओ का शिष्टमंडल

फाजिल्का : बाधा झील को सजीव करने के लिए प्रयासरत ग्रेजुएट वेलफेयर एसोसिएशन के संरक्षक भूपेंद्र सिंह व सचिव नवदीप असीजा ने बताया कि बाधा झील को पंचायत से लेकर उसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए एसोसिएशन मछली पालन का काम शुरू होने तक पंचायत को ठेका राशि अपने पल्ले से देने को भी तैयार है। इसके अलावा सजराना में सेमग्रस्त इलाके के पानी में मछली पालन के लिए तैयार होने वाली मछलियों की ब्रीड जोकि अब तक दूसरे राज्यों से मंगवानी पड़ती है, का उत्पादन बाधा झील में करने की सुविधा मिल जाएगी।

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बाधा झील का विकास जरूर करवाएंगे : विधायक

फाजिल्का: इस बारे में विधायक सुरजीत ज्याणी से बात की गई तो उन्होंने कहा कि अगर फाजिल्का में पर्यटन के विकास के लिए बाधा झील को सजीव किया जाना जरूरी है तो वह एनजीओ का हर कदम पर साथ देंगे। पंचायत से जमीन लेने से लेकर झील को रिचार्ज करने के लिए पानी का प्रबंध करने में वह हर सहयोग करेंगे।

Saturday, February 12, 2011

अवैध निर्माण निगल रहे बाधा झील की प्राकृतिक सुंदरता

भाग-3

अव्यवस्था

-झील क्षेत्र से गायब हुए राष्ट्रीय फूल व पक्षी

-पुडा कर चुकी है अवैध कालोनाइजरों को नोटिस जारी

अमृत सचदेवा, फाजिल्का

कभी फाजिल्का की शान रही व वर्तमान में सूख चुकी बाधा झील को सजीव करने के प्रयास में पंचायत द्वारा झील में खेती करवाना वहीं झील के आसपास हो रहे अवैध निर्माण इसकी प्राकृतिक सुंदरता नष्ट होने का कारण बन रहा है। यहां तक कि झील के आसपास पाए जाने वाले राष्ट्रीय पक्षी मोर व झील में पाए जाने वाले राष्ट्रीय फूल कमल भी लुप्त हो गए हैं।

उल्लेखनीय है कि कभी बाधा झील में कमल के फूल खिलते थे, जो बेहद मनोरम दृश्य पेश करते थे। झील के आसपास स्थित खेतों व बागों में राष्ट्रीय पक्षी मोर भी दर्जनों की संख्या में पाए जाते थे लेकिन अब आलम यह है कि झील सूखने पर पंचायत ने उसमें खेती शुरू करवा दी है और आसपास अवैध कालोनियां बनने से राष्ट्रीय पक्षी मोर लुप्त हो गया है। अवैध कालोनियों का आलम यह है कि बाधा झील के आसपास जोकि नगर परिषद से बाहर का रकबा है, में कालोनियां काटने की होड़ लगी हुई है और धड़ाधड़ मकान बनाए जा रहे हैं जबकि पंजाब अर्बन डेवलपमेंट अथारिटी (पुडा) से किसी भी कालोनाइजर ने कालोनी निर्माण की मंजूरी नहीं ली है। इस संबंध में कार्रवाई करते हुए पुडा ने सात कालोनाइजरों के खिलाफ बिना मंजूरी रिहायशी कालोनी बसाने के आरोप में फिरोजपुर के एसएसपी से मामला दर्ज करने की सिफारिश अक्टूबर 2010 में की थी लेकिन अभी तक मामला दर्ज नहीं किया गया।

अवैध कालोनाइजरों के खिलाफ पुडा की शिकायत पर मामला दर्ज करने बारे जब फिरोजपुर के एसएसपी कौस्तुभ शर्मा से बात की गई तो उन्होंने कहा कि गांव बाधा का मामला उनके नोटिस में नहीं है। वह इस बारे में जानकारी लेकर मामले का स्टेटस बताएंगे।

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सीवरेज बोर्ड भी कर चुका है अवैध कालोनाइजरों की मदद

फाजिल्का : बाधा झील के आसपास अवैध कालोनियां बसाने वाले कालोनाइजरों की मदद कांग्रेस शासनकाल में पेयजल आपूर्ति एवं सीवरेज बोर्ड द्वारा दिसंबर 2006 में भी की गई थी। बोर्ड ने 15 लाख रुपये की लागत से बाधा झील के निकट एक निजी भूमि पर ट्यूबवेल बोर करवाने का प्रयास किया था। लेकिन उक्त इलाका नगर परिषद की हद से बाहर होने की बात तूल पकड़ने पर बोर्ड ने तत्काल काम बंद करवा दिया था। लेकिन राजनीतिक शह पर उस कार्य पर खर्च हुए 15 लाख फिजूल गए।

Friday, February 11, 2011

सुविधा मिले तो नाविक भर दें पदकों से झोली

अमृत सचदेवा, फाजिल्का

कामनवेल्थ व एशियन गेम्स में देश को पदक दिलाने वाले जिले के रोविंग खिलाड़ी स्थानीय बाधा झील की हालत देख त्रस्त हैं। इसलिए वे लाखों खर्च कर चंडीगढ़ जाकर प्रशिक्षण लेने को मजबूर हैं। यह झील अब पूरी तरह से सूख चुकी है और पंचायत के सहयोग से यहां खेती की जा रही है।

उल्लेखनीय है कि एशियन गेम्स में जलालाबाद व फिरोजपुर के करीब 36 रोविंग खिलाड़ियों ने राष्ट्र स्तरीय मुकाबलों में गोल्ड मेडल हासिल किए हैं। इसके अलावा मंजीत सिंह ने एशियन गेम्स में सिल्वर मेडल व लक्ष्मण सिंह ने राष्ट्रीय सतर पर गोल्ड मेडल हासिल किए हैं। इन खिलाड़ियों में ज्यादातर खिलाड़ी राय सिख बिरादरी से संबंधित हैं। इस बिरादरी के लोग दरिया के किनारों पर ही बसते हैं और अपनी बहादुरी के लिए जाने जाते हैं। बेहद दुर्भाग्य की बात है कि इन रोविंग खिलाड़ियों को अपने गृह क्षेत्र में ही नौकायन की सुविधा प्राप्त नहीं है। फिरोजपुर जिले के अधिकांश भागों में सतलुज दरिया में पानी हमेशा नहीं रहता। वहीं किसी समय सतलुज दरिया से रिचार्ज होने वाली बाधा झील भी अब सूख चुकी है। यदि यह झील फिर से सजीव हो जाए तो खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दिया जा सकता है।

झील को संजीव करने की मांग को लेकर फाजिल्का के सामाजिक संगठनों व इंटरनेशनल रोविंग फेडरेशन चंडीगढ़ ने फिरोजपुर के डीसी को पत्र लिखकर बाधा झील में हो रही खेती बंद करवाने की मांग की है। समाजसेवी संस्था ग्रेजुएट वेलफेयर एसोसिएशन के सचिव नवदीप असीजा ने बताया कि उनकी संस्था से जुड़े सौ लोगों ने भी डीसी को पत्र लिखा है। इसके अलावा करीब 120 लोगों ने आनलाइन शिकायत के जरिए बाधा झील में पानी भरने के साथ उसके आसपास हो रहे अवैध निर्माण को हटा इस प्राकृतिक स्थल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की मांग की है।

इस बारे में डीसी केके यादव ने कहा कि फाजिल्का में पर्यटन के विकास के लिए 75 लाख का फंड तो मंजूर हुआ है, लेकिन वह फंड रूरल टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए मिला है। बाधा झील को डेवलप करने के लिए फंड मिलते ही उसे भी रिचार्ज किया जाएगा, ताकि पर्यटन के साथ-साथ नौकायन को भी बढ़ावा मिल सके।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/punjab/4_2_7302346.html

Our Fazilka Visit - Mr Vinod Gupta & His Family

Mr Vinod Gupta visiting his School- Government Model Secondary School (Boys) 
by Rohit Gupta-
Finally – we finally visited Fazilka!  My father, Mr. Vinod Kumar Gupta, grew up in Fazilka, and his father, Dr. Brij Lal Aggarwal, was the first MBBS in Fazilka.  My parents moved to the US in the mid-1960s, and I grew up in the US.  Even though I've lived outside of India most of my life, I've always felt that Fazilka was also part of my background.
My Parents in front of famous Fazilka Clock Tower Car Free Zone
For many years my parents and I had discussed visiting Fazilka sometime.  We tried twice in recent years, but both times we had to cancel the planned trip due to unexpected situations.  Thus, it was hard to believe when we reached Fazilka on January 29th, 2011, that we were actually here!
My father had not visited for 40 years and the visit brought back many memories to him.  My father met with old friends and their children, and they all showed such wonderful warmth and hospitality towards us.  It was truly an exciting and memorable visit.
And we all found the city of Fazilka to be absolutely charming!  We visited places such as my father's high school and where their house used to be.  We also saw the Clock Tower, the Asafwala War Memorial, and the Border Ceremony.  We really appreciated the Car Free Zone near the Clock Tower which offers a unique walking environment.  We also went shopping and bought jutti and tosha.
But one of the most special memories that we took away from visiting Fazilka was the warmth and friendliness of the people of Fazilka.  Everyone we met was very friendly and talkative, and this made our visit even more memorable.  We hope that we can visit Fazilka again soon!
My parents and me in front of the house where my father grew up
Special thanks to Mr. Surinder Ahuja and his family, Mr. Anu Nagpal, Dr. Bhupinder Singh, Mr. Navdeep Asija, Mr. Gurdeep Kumar, Mr. Ashok Rai, and Dr. Kewal Pujara, for all of their help and support both during this visit and during our preparation for this visit (apologies if I missed anyone's name).  After this visit, I now feel that I can call myself a Fazilite; hope to visit again soon – Rohit Gupta (rohitgupta999@yahoo.com)

Thursday, February 10, 2011

ਬੰਸਤ ਪੰਚਮੀ ਮੌਕੇ ਫਾਜ਼ਿਲਕਾ ‘ਚ ਕਰਵਾਈ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਪੰਤਗਬਾਜੀ ਪ੍ਰਤਿਯੋਗਿਤਾ

ਫਾਜ਼ਿਲਕਾ, 8 ਫਰਵਰੀ (ਮਨਦੀਪ ਕੰਬੋਜ਼)- ਬੰਸਤ ਪੰਚਮੀ ਦੇ ਤਿਉਹਾਰ ਮੌਕੇ ਅੱਜ ਫਾਜ਼ਿਲਕਾ ਦੇ ਸਰਕਾਰੀ ਸੀਨੀਅਰ ਸੰਕੈਡਰੀ ਸਕੂਲ ਲੜਕਿਆਂ ਵਿਖੇ ਗ੍ਰੇਜੁਏਟ ਵੇਲਫੇਅਰ ਐਸੋਸੀਏਸ਼ਨ, ਫਾਜ਼ਿਲਕਾ ਵਿਰਾਸਤ ਭਵਨ, ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਸਪੋਰਟਸ ਕਲੱਬ ਅਤੇ ਸਰਹੱਦ ਸੋਸ਼ਲ ਵੇਲਫੇਅਰ ਸੁਸਾਇਟੀ ਫਾਜ਼ਿਲਕਾ ਵੱਲੋਂ ਪੰਤਗ ਬਾਜੀ ਮੁਕਾਬਲੇ ਕਰਵਾਏ ਗਏ। ਜਿਸਦਾ ਅਨੌਖਾ ਨਜਾਰਾ ਦੇਖਣ ਨੂੰ ਮਿਲਿਆ। ਇਸ ਮੌਕੇ ਕਰਵਾਏ ਗਏ ਪੰਤਗ ਬਾਜੀ ਮੁਕਾਬਲਿਆ ਵਿਚੋਂ ਕੋਸ਼ਲ ਪਰੁਥੀ ਪਹਿਲੇ, ਤਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੁਜੇ ਸਥਾਨ ਅਤੇ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਨਰੇਸ਼ ਕੁਮਾਰ ਤੀਜੇ ਸਥਾਨ ਤੇ ਰਹੇ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਮੁਕਾਬਲਿਆਂ ਵਿਚ ਫਾਜ਼ਿਲਕਾ, ਅਬੋਹਰ, ਜਲਾਲਾਬਾਦ, ਅਰਨੀਵਾਲਾ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਭਾਗ ਲਿਆ। ਪ੍ਰਤਿਯੋਗਿਤਾ ਵਿਚ ਖਾਸ ਗੱਲ ਇਹ ਦੇਖਣ ਨੂੰ ਮਿਲੀ ਕਿ ਸਫਲਤਾ ਦਾ ਸਕਸੈਸ ਅਕੈਡਮੀ ਦੇ ਦੀਆਂ ਵਿਦਿਆਰਥਣਾ ਨੇ ਪੰਤਗਾਂ ਉਡਾ ਕੇ ਕੰਨਿਆ ਵਰਦਾਨ ਹੈ ਸ਼ਰਾਪ ਨਹੀ ਦਾ ਸੰਦੇਸ਼ ਦਿੱਤਾ। ਇਸ ਮੌਕੇ ਤੇ ਨੌਜਵਾਨ ਅਕਾਲੀ ਨੇਤਾ ਕਰਨ ਗਿਲਹੋਤਰਾ, ਗ੍ਰੇਜੁਏਟ ਵੇਲਫੇਅਰ ਐਸੋਸੀਏਸ਼ਨ ਦੇ ਸਰਪ੍ਰਸਤ ਡਾ. ਭੁਪਿੰਦਰ ਸਿੰਘ, ਪ੍ਰਧਾਨ ਉਮੇਸ਼ ਕੁੱਕੜ, ਜਨਰਲ ਸਕੱਤਰ ਨਵਦੀਪ ਅਸੀਜਾ, ਸਰਹੱਦ ਸੋਸ਼ਲ ਵੇਲਫੇਅਰ ਦੇ ਰਾਕੇਸ਼ ਨਾਗਪਾਲ, ਸੁਰਿੰਦਰ ਤਿੰਨਾ, ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਸਪੋਰਟਸ ਕਲੱਬ ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਪਰਮਜੀਤ ਸਿੰਘ ਵੈਰੜ, ਸਰਕਰੀ ਸਕੂਲ ਦੇ ਪ੍ਰਿੰਸੀਪਲ ਗੁਰਦੀਪ ਕਰੀਰ, ਬੀਐਸਐਫ ਅਧਿਕਾਰੀ ਰਵੀ ਕਾਂਤ ਦੀ ਧਰਮਪਤਨੀ ਸੁਪਰੀਆ, ਲੈਕਚਰਾਰ ਪੰਮੀ ਸਿੰਘ, ਕੈਪਟਨ ਐਮ. ਐਸ ਬੇਦੀ, ਡਾ. ਅਜੇ ਗਰਵੋਰ , ਰਜਨੀਸ਼ ਕਾਮਰਾ, ਮਨੋਜ ਨਾਗਪਾਲ, ਪੰਕਜ਼ ਧਮੀਜਾ, ਰਵੀ ਖੁਰਾਣਾ, ਐਡਵੋਕੇਟ ਸ਼ਸ਼ੀਲ ਗੁੰਬਰ, ਦੀਪਕ ਨਾਗਪਾਲ ਆਦਿ ਹਾਜਿਰ ਸਨ। ਇਸ ਮੌਕੇ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਨੇ ਪੰਤਗਬਾਜੀ ਵਿਚ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਜੋਹਰ ਦਿਖਾਏ। ਜੱਜ ਦੀ ਭੁਮਿਕਾ ਪਰਮਜੀਤ ਸਿੰਘ ਪੰਮਾ ਵੈਰੜ, ਸੁਰਿੰਦਰ ਤਿੰਨਾ , ਕੁਲਦੀਪ ਗਰੋਵਰ, ਪੰਮੀ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਲਛਮਣ ਦੋਸਤ ਨੇ ਨਿਭਾਈ। ਅੰਤ ਵਿਚ ਜੇਤੂ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਨੂੰ ਸਨਮਾਨ ਚਿੰਨ ਦੇ ਸਨਮਾਨਿਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ।

कब दूर होंगी बाधा झील की बाधाएं

अमृत सचदेवा, फाजिल्का

प्रदेश की सबसे पुरानी तहसील फाजिल्का में पर्यटन की अपार संभावनाओं के कारण राज्य सरकार तो पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए लाखों रुपये मंजूर कर रही है लेकिन स्थानीय प्रशासन ऐतिहासिक धरोहरों की संभाल में उदासीनता बरत रहा है। इसका एक बड़ा उदाहरण शहर के बिल्कुल साथ सटे गांव बाधा स्थित सूख चुकी बाधा झील है, जिसे विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा सजीव करने के प्रयासों के बावजूद गांव की पंचायत या नगर परिषद द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा।

उल्लेखनीय है कि पंजाब सरकार के टूरिज्म डिपार्टमेंट ने फाजिल्का को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए डीसी के जरिए करीब 75 लाख रुपये की ग्रांट मंजूर की है। इस ग्रांट से यहां पर्यटन को बढ़ावा देने के कार्य किए जाने हैं। जिसके तहत भारत-पाक सीमा की सादकी चौकी के सौंदर्यीकरण, भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए वीर सैनिकों की संयुक्त आसफवाला समाधि के विकास, फार्म टूरिज्म व अन्य ऐतिहासिक धरोहरों को संभाला जाना है। लेकिन कभी फाजिल्का क्षेत्र की शान रही बाधा झील, जोकि सतलुज दरिया की शाखा से रिचार्ज होती थी, को सजीव करने की ओर ग्राम पंचायत व नगर परिषद कोई ध्यान नहीं दे रही।

करीब डेढ़ बरस पहले समाजसेवी संस्था ग्रेजुएट वेलफेयर एसोसिएशन फाजिल्का ने इस झील को सजीव करने का अभियान शुरू किया था। एसोसिएशन ने नगर परिषद पदाधिकारियों, अधिकारियों व ग्राम पंचायत को संदेश दिया था कि झील से पर्यटन को काफी बढ़ावा मिलेगा। इसमें मछली पालन, बोटिंग व पिकनिक स्पाट को विकसित किया जा सकता है। वर्तमान में ग्राम पंचायत की ओर से झील की करीब 12 एकड़ जगह को ठेके पर देकर खेती करवाई जा रही है जोकि बदस्तूर जारी है।

इस बारे में नगर परिषद अध्यक्ष अनिल सेठी ने कहा कि यह नगर परिषद के स्तर का काम नहीं है। इस झील को सजीव करने के लिए विधायक द्वारा सरकार से बात कर ग्राम पंचायत से वह जगह अपने अधीन लेने का प्रस्ताव पारित करवाएंगे। उसके बाद ही झील को विकसित किया जा सकता है।

उधर सरपंच वीरां बाई का कहना है कि जमीन पंचायत की कमाई का एकमात्र जरिया है। मछली पालन पंचायत करवा नहीं सकती इसलिए इसे खेती के लिए ठेके पर दिया गया है। अगर सरकार उन्हें कमाई का कोई विकल्प दे तो वह जमीन को प्रशासन के हवाले कर सकते हैं।

Wednesday, February 9, 2011

नील गगन में खूब लड़े पतंगों के पेंच

शिक्षा सूत्र, फाजिल्का

लगभग 65 वर्ष बाद फाजिल्का में बसंत पंचमी का पर्व लड़कों के सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल में हर्षोल्लास से मनाया गया। यह आयोजन ग्रेजुएट वेलफेयर एसोसिएशन, फाजिल्का विरासत भवन, शहीद भगत सिंह स्पो‌र्ट्स क्लब व सरहद सोशल वेलफेयर सोसायटी की ओर से किया गया।

एसोसिएशन के संरक्षक डा. भूपेंद्र सिंह ने बताया कि बसंत पंचमी शहादत और वीरता का पर्यायवाची है। इसका संबंध वीर हकीकत राय की बलिदान, शहीद भगत सिंह व मौसम से है। इस दौरान पतंगबाजी की प्रतियोगिता करवाई गई, जिसमें छोटे बच्चों से लेकर बूढ़ों तक ने पूरे उत्साह के साथ भाग लिया। सरकारी स्कूल के आसमान में पतंगबाजी के अनेक आकर्षक नजारे देखने को मिले। लड़कियों ने भी पतंगें उड़ाकर पतंग महोत्सव को यादगार बनाया। प्रतियोगिता में पहले, दूसरे व तीसरे स्थान पर रहे प्रतियोगियों को नकद पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया। प्रतियोगियों में कौशल पहले, तरुणजीत दूसरे, नरेश व रंजीत सिंह तीसरे स्थान पर रहे। प्रथम विजेता को 31 सौ, दूसरे को 21 सौ व तीसरे स्थान पर रहे दो प्रतिभागियों को 11 सौ रुपये का पुरस्कार प्रदान किया गया। एक बुजुर्ग मोहन लाल भूसरी जो पिछले 56 साल से लगातार बसंत पंचमी पर पतंग उड़ाने के लिए विख्यात हैं, ने भी अपने पोते ऋतिक के साथ पतंगबाजी मुकाबले में भाग लिया। फाजिल्का को जिला बनाने की मांग लिखी पतंग भी आसमान में उड़ा। इसमें फाजिल्का वासियों की आवाज बुलंद की गई। आयोजकों ने बुजुर्ग को सम्मानित किया। उन्होंने घोषणा की कि बसंत पंचमी पर्व हर साल मनाया जाएगा। प्रतियोगिता के बाद विद्यार्थियों ने मेरा रंग दे बसंती चोला गीत गाया व नृत्य किया। आयोजन में एसोसिएशन के अध्यक्ष उमेश चंद्र कुक्कड़, नवदीप असीजा, डा. एएल बाघला, लक्ष्मण दोस्त, एमएस बेदी, पंकज धमीजा, सोसायटी के अध्यक्ष राकेश नागपाल, विरासत भवन के संयोजक पम्मी सिंह, प्रिंसिपल गुरदीप करीर, कर्ण गिलहोत्रा, डा. रजनीश कामरा, सुशील गुंबर सहित आयोजनकर्ता संगठनों के पदाधिकारी व सदस्य मौजूद थे।

बार्डर सुरक्षित, खेती असुरक्षित

केन्द्र सरकार की ओर से पाकिस्तान के साथ सटी पंजाब की सरहद पर तारबंदी करने से सरहद तो सुरक्षित है, लेकिन किसानों की फसलें असुरक्षित हैं। तारबंदी के पार खेती में काम करने की अवधि कम होने से किसान सही ढ़ंग से फसल की रखवाली नहीं कर पाते और पाकिस्तानी जंगली जानवर फसल उजाड़ देते हैं। इससे जिला फिरोजपुर, अमृतसर और गुरदासपुर के सरहदी किसान परेशान हैं।

कैसे करें रखवाली

जब सरहद पर तारबंदी नहीं की गई थी, तब किसान अपनी फसल की रखवाली खुद कर लेते थे। 90 के दशक में पाक के साथ पंजाब के सरहदी जिलों में 533 किलोमीटर लंबी तारबंदी की गई। नियमानुसार तारबंदी सरहद से 150 गज पीछे की जानी थी, लेकिन कई इलाकों में तारबंदी पांच से सात सौ गज तक लगा दी गई। इस कारण सरहदी जिलों की 54721 एकड़ फसल तारबंदी के पार आ गई। इससे किसानों की दिक्कतें बढ़ गई। तारबंदी पार करने के लिए सीमा सुरक्षा बल की ओर से गेट लगाए गए हैं, जहां तलाशी के बाद उन्हें खेत पहुंचने की आज्ञा मिलती है। अपने ही खेतों में काम करने के लिए उन्हें मात्र आठ घंटे की आज्ञा है। जानकारी के अनुसार पाकिस्तानी पंजाब के सरहदी इलाके में जंगल है और सादकी नहर के साथ कुछ इलाका खाली है। यह पट्टी जंगली जानवरों के लिए आश्रय स्थल है। गुलाबा भैणी के किसान हरनाम सिंह पुत्र कश्मीर सिंह ने बताया कि हर साल सूअर, सेह, गिदड़ और अन्य जानवरों का झुंड इस ओर आ जाते हैं और फसल खुरों तले रौंद देते हैं। इससे उपज कम हो गई है। सरहदी गांव घुर्का, गिदड़ भैणी, लक्खा असली, लाधुका चक्क खीवा और गट्टी यारू के रकबे की फसल भी जानवर रौंद देते हैं।

उच्च न्यायालय पहुंचा मामला

सरहदी किसानों के हकों की सुरक्षा के लिए संघर्ष कर रही बार्डर संघर्ष कमेटी के सचिव कामरेड दर्शन राम ने बताया कि पंजाब के अन्य किसानों की बजाए तारबंदी के पार खेती करने वाले किसानों की हालत दयनीय है। कभी उन्हें दोनों देशों का तनाव उजाड़ देता है तो कभी जंगली जानवर। इस बारे में उन्होंने गृह मंत्री से मिलकर इन समस्याओं से निजात दिलाने की मांग की थी। जिस पर किसानों को खेत के आसपास बिजली करंट छोडऩे या विस्फोटक पदार्थ से जानवरों को डराने की आज्ञा दी गई, लेकिन 3 वर्ष से इस पर भी पाबंदी लगा दी गई है। कामरेड दर्शन राम ने बताया कि कमेटी की ओर से सरहदी किसानों को समस्याओं से निजात दिलाने के लिए माननीय उच्च न्यायालय में केस दायर किया जा चुका है। जहां से उन्हें न्याय की उम्मीद है।

जंगली जानवर ने किया किसान घायल

फाजिल्का & सरहद पर स्थित तारबंदी के पार खेत की रखवाली कर रहे एक किसान पर पाकिस्तान के जंगली जानवरों ने हमला बोल दिया। जिससे किसान गंभीर रूप से घायल हो गया। घायल को सिविल अस्पताल में दाखिल करवाया गया है। जहां हालत गंभीर होने के कारण उसे फरीदकोट रेफर कर दिया गया है। गांव आलमशाह की ढ़ाणी अमरपुरा का किसान जगीर सिंह का खेत तारबंदी के पार है। जहां वह अपने खेत में कार्य निपटा रहा था। अचानक ही पाक की ओर से जंगली जानवरों का एक झुंड आया और उन्होंने किसान पर हमला बोल दिया। इससे किसान गंभीर रूप से घायल हो गया।

Monday, February 7, 2011

Basant Panchami with a difference in Fazilka

Residents to fly kites with messages demanding district status & check on femicide 
Chander Parkash/TNS


Kites will propagate a social message in Fazilka.

Fazilka, February 6
Basant Panchami, the fifth day of the spring season, which is dedicated to Goddess Saraswati and associated with kite flying, has a different meaning for the residents of this border town and its surrounding areas this season.

Hundreds of residents of the area and members of different teams, who would participate in the first ever kite festival being held on February 8, i.e., Basant Panchami, would spread a different kind of message to motivate people apart from rejoicing by keeping alive the tradition by flying kites.

Kites of all shapes, sizes and colours would hang in the air and would dot the skyline over the Fazilka town, bordering Pakistan. The occasion which would witness the participation of girl students of different schools and colleges, members of different organisations, which participated in the agitation launched for getting district status for this town and about 80 teams from various places.

"We have been trying to ensure the participation of kite fliers from various towns of Rajasthan and Haryana, which are located close to this town as a large section of population of these towns share a common culture and observe almost the same rituals," disclosed Navdeep Asija, Secretary (Administration), Graduate Welfare Association Fazilka, adding that this would bring a new kind of harmony among them.

He added that the main attraction of the festival would be that the kites would carry a printed message for according district status to Fazilka town, which came into existence about 165 years ago and was in the process of developing as a major tourist hub.

The other message, which was most important and was the need of the hour, would be to spread awareness among people about the evils of female foeticide. The kites would also carry printed messages against this social evil. All the inmates of the old age home had been invited to watch or participate in the kite festival so that they could also relive those moments again in the autumn of their lives.

"We will also try that no one, who participates in the kite festival, should use China-made string, which has become a major source of injuries to human beings and cattle," Asija claimed, adding that personnel from the Army and the BSF had also been invited for the festival.

Sushil Gumber, Convener, Sanjha Morcha, which carried out a long agitation for getting district status for Fazilka town, said that so far, he had not got any invitation for joining the kite festival. But he would love to join in the festivities for creating a movement in favour of granting district status to Fazilka.

Old OPD lies vacant, Fazilka hospital spends Rs 1 crore on new building

Raakhi Jagga, 7th February 2011
An amount of Rs 1 crore was spent on building a new OPD block for doctors of Fazilka civil hospital last year. The grant came from the border area development fund and the state government hurriedly spent it even though the old OPD block was already in good condition and is now lying vacant.

Doctors at the hospital said they were surprised to know about the decision because they never raised this demand. An intensive care unit (ICU) was also made out of these funds, but neither any equipment has come till now, nor any staff appointed to run it.

"When the construction of the new block had just started, we were short of three doctors and the shortage has increased to four. There was no need for the new block, when the old chambers had enough rooms. Doctors were never asked about the requirement. Initially, Rs 30 lakh was spent without any proper specification of the building and later, when medical officers objected, experts from the public works department were asked to make a design. The new building does not even have enough sweepers to keep it clean," said a doctor who did not wish to be named.

The doctors opined that they needed more staff, rather than vacant buildings. On a visit to the old OPD, The Indian Express team found garbage dumped in a few chambers.

While the doctors said recruitment of paramedical staff, more doctors and Class IV staff was required more than a new OPD block, local MLA Surjit Singh Jayani calls the project his major achievement.

When asked about the vacant old OPD block, Senior Medical Officer Dr S P Garg said: "We will shortly shift a few departments of the blood bank to the building. I joined this hospital only four months ago. I will chalk out the plan soon."

He added: "The ICU will start operations once we are given equipment and staff. The money spent on building the new OPD block was from the border area development fund and hence the health department was not much aware of the developments."

Doctors, meanwhile, urged the state government that it should ask them first about their actual requirements before spending crores on any project related to them.

Saturday, February 5, 2011

Fazilka Ecocabs Making Waves Across the Country

Ecocabs is the name given to traditional Indian rickshaw operations that are organized into a network and can be called directly by customers. Fazilka is an Indian border town with a population of less than 100 000 inhabitants. It is the first city in the world to have a dial-a-rickshaw facility.

Traditional Fazilka Rickshaw - ©LoveFazilka

Traditional Fazilka Rickshaw - ©LoveFazilka

Mahatma  Gandhi once said "I would prize every  invention of  science made for the benefit of all." Embracing  Mahatma's idea of "doing  more, for less, for more", the town of Fazilka has  given something innovative to this  world. "Ecocabs" are a low cost  solution to one of the key transport  dilemmas in any urban area. 

Cycle rickshaws have been a feature of Indian cities for nearly a century. They are fast and eco-friendly, but it is not always easy to get one when you need. So as the pace of city life and the size has increased, there has been a shift toward taking motorized transport, including private cars, even for relatively short journeys, contributing to congestion, pollution and risk on the roads. The Ecocabs scheme, on the other hand, allows people to phone rickshaw drivers to direct them where they are needed. The upshot is that customers can rely on getting their ride in no more than 10 minutes. The concept has been promoted as dial-a-rickshaw.
 
With an order of the honorable Punjab & Haryana High Court, the concept which originated in Fazilka two years ago has been fully adopted by both the Punjab and Haryana governments. After a news item on the Fazilka scheme appeared in the Indian Express, petitions were targeted at the Punjab and Haryana Governments, asking "if such eco friendly rickshaws can be implemented in Fazilka, why not in the rest of both states?". A recent order by the Haryana Government to its local body department has made this possible. Now more than half a million rickshaw families are going to get the benefit of being transformed into Ecocabs. A small initiative is adding up to big results. To make it even more popular, the GWAF (Graduates Welfare Association Fazilka) has made a dedicated website for the ecocabs, which will contain all the technical information on them as well as instructions on how to start an Ecocab-Dial-a-Rickshaw scheme in other towns and cities (www.ecocabs.org). Letters from the Principal Secretary and Financial Commissioner of Haryana have also requested the association to provide the technical know how of Fazilka Ecocabs to the Haryana authorities so that the scheme can be implemented there as well as soon as possible.
Nano-New Ecocab Concept Model - © LoveFazilka

Nano-New Ecocab Concept Model - © LoveFazilka

It is important to note here that the Punjab Government through the Punjab Heritage and Tourism Promotion Board and District Administration of Amritsar has already implemented Ecocabs in the holy city of Amritsar and subsequently in Patiala, where a local NGO, the Patiala Foundation, has already implemented the same concept under the name "Green Cabs". This year Punjab exhibited Ecocabs as a sustainable mode of transport in its pavilion during the International Trade Fair, 2010 held in November at Pragati Maidan, Delhi and state received overall silver medal.
 
A model to generate additional revenue for rickshaw drivers has already been worked out and will be implemented soon. The legalities with telecom partner have already been completed and free telephones are available for the world's first dial-a-rickshaw service, which are now paid. Ecocabs operations at 7 new Ecocab call centers in Fazilka. The other welfare schemes which are in place at Fazilka for Ecocab operations are: free winter wear & woolens, free medical consultation by all leading private hospitals and doctors, medicine from the three authorized medical stores and laboratory at discounted prices, free medicines and free required laboratory tests, free legal aid by four leading lawyers, permanent Ecocab stands by the Municipal Council of Fazilka in various zones of Fazilka and computer education for a few educated rickshaw drivers by two computer centers in Fazilka.
 
Navdeep Asija

Thursday, February 3, 2011

Stories of amputated lives on Indo-Pak border

Tripti Nath
19 October 2009
 
Landmines continue to pose serious threat to the lives of civilians living close to Indo-Pak border. The repeated assurances by the army have failed to allay the fears of people in Punjab, who are now struggling with disability and poverty in a region known for its soil fertility.

Fazilka, Punjab: The rural folk of Fazilka, a sub-division in Punjab, have often had to pay a high price for living in perilous proximity to the Indo-Pakistan border.

Many have lost their lives to landmines laid in innumerable villages along the international border in Jammu and Kashmir, Rajasthan and Punjab by the Indian Army during 'Operation Parakram', following the terrorist attack on the Indian Parliament in December 2001.

Villagers lucky enough to have survived the mines – said to have been laid at a density of 1,000 mines per square kilometres – narrate the pain of disability, and the pressing need for prosthetic aids and government support.

Seven years back, Raj Kaur, 55, an inhabitant of village Bhamba Wattu in sub-division Fazilka, just six kilometres from the Pakistan border, unknowingly stepped on a landmine while trudging along a narrow mud track leading to her village. By the time she could fathom what had gone wrong, she had stepped on to another landmine.

Today, Raj Kaur is confined to an agonising existence: She has lost both her legs below the knees. This once-active earning member of the family now sits on a 'charpoy' (a straw cot) guarding her lifeline – prosthetic aids and walker.

Recalling the tragic day that changed her life, Raj Kaur says her husband, Balbir Singh, rushed her to the civil hospital in Jalalabad, 33 kilometers away. The civil hospital administered first aid and then referred them to the army hospital in district headquarters, Ferozepur, 85 kilometres away, where she received prosthetic aids that served her for some time. It was only last February that she succeeded in getting proper prosthetic aids at a camp organised by Rotary International and the Society for All Round Development (SARD), a Delhi-based NGO.

While the family has received financial assistance, it has been inadequate. The compensation from the government that Balbir Singh secured after running from pillar to post was just Rs 1,50,000 (US$1=Rs 46.8). Using the interest-free loan of Rs 10,000 granted by the Delhi-based Rajiv Gandhi Foundation, courtesy the intervention of SARD, the couple helped their younger son, Jaswant, open a barber's shop. Bemoans Raj Kaur: "I was earning almost Rs 4,000 a month as an agricultural labourer. The accident has left me incapacitated. We have no land."

Another landless labour, Surjeet Kaur of village Behak Khas, about eight kilometres from the border, has been coping with disability for almost six years. "I had gone to fetch fodder for the livestock when my right foot slipped and I stepped on a landmine. All that is left of the foot today is the heel."

Surjeet Kaur already had a handicap in her left foot. One of her toes had been amputated when she was six as a result of a snake bit.

"I had learnt to manage with an amputated toe but it is difficult to manage without a heel. The army helped me get a prosthetic aid from Chandigarh but over time it lost its utility. I have three daughters and a son. The government gave us a compensation of Rs 1,50,000, which was spent on our daughter's marriage."

Struggling to make ends meet, Surjeet Kaur's husband, Harbans Singh, moves from village to village in search of work as a daily wage agricultural labourer. Surjeet Kaur, too, is now camping in Kheo Wali Dhab – 15 kilometres from her home, with the children being left in the care of her mother-in-law – to earn a living.

So why doesn't she simply take time out to get a prosthetic? "The choice is between two square meals a day or prosthetics. Before the landmine accident, I was working as an agricultural labourer," answers the victim, matter-of-factly, as she explains that she has no money to travel.

A mere two kilometres from the border, in Jhangal Baini village, Mitoo Bai, 35, lives with her pre-teen children. Mitoo was in her 20s, when lost her right foot after stepping on a landmine seven years ago when she had gone to the fields to gather fodder. Today she hops around the house with the help of a rod. While she has had prosthetic boots made twice over since then, she feels they are no good, "Now I wear sports shoes and walk with great difficulty. When my foot hurts a lot, I take pain-killers."

Like the other women, Mitoo struggles to make ends meet. "We got Rs 1,50,000 from the Centre but that is not enough compensation for life-long disability. Should the state government not be sensitive to our condition?" she asks.

Sources in the army say that the Ministry of Defence gives ex gratia compensation to civilian victims of landmine casualties: "The policy has been in place since January 2003. The army gives Rs 250,000 to next of kin in cases of casualty; Rs 200,000 in cases of 100% disability; Rs 150,000 in cases of disability assessed between 50 to 100%; and Rs 100,000 in cases where disability is below 50%. The Ministry of Defence continues to lend this assistance. The paper work, of course, is very exhaustive."

The army disagrees with the victims' grievance that it has not cared to follow up on prosthesis: "No patient has come back to us. If they approach us, follow-up action will be taken. If we have gone all the way for getting prosthesis fitted, nothing really holds us back from organising a follow-up. Funds for the expenses incurred on transportation, accommodation, diet, treatment, including cost of prosthesis, were provided by the services concerned. Artificial limb centres in Chandigarh, Bhavnagar, Jaipur and Ludhiana, were paid by the army for providing prosthesis."

It also rejects the criticism that warning markers on several acres of land along the India-Pakistan border were either missing or were not legible.

Sources in the army said: "During Operation Parakram, the army had laid landmines, which were absolutely in consonance with very well-practised, relevant and standard operating procedures. These include physical verification of the mines, meticulous drill of laying the mines. Special emphasis was laid on the recording and marking of each minefield to prevent civilian casualties.

"The army made special efforts to ensure safety of the civilian population. Caution notices were given to all border villages, state and district administration. Local police was informed of the presence of minefields. Prominent perimeter fencing with barbed wires and conspicuous marking with perimetre marking and warning signs both in English and vernacular language at close intervals of the entire space of minefield to indicate presence of minefields to alert civilians. Constant monitoring of minefields was carried on by the physical guarding of civilians and patrolling."

The army claims that almost all minefields were de-mined after Operation Parakram: "Yes, drifting mines are there due to melting of snow or sub soil erosion. Whenever, it comes to our notice, we take care."

Yet, repeated assurances by the army of landmine clearance from agricultural fields fail to allay the fears of civilians. Many among them now struggle with disability and poverty in a region known for the high value of its fertile agricultural land but troubled by hidden danger.

http://southasia.oneworld.net/todaysheadlines/stories-of-amputated-lives-on-indo-pak-border

Farmers get a lesson in communication skills

Be polite, better your communication skills and become the best in extending services. These were the few tips given by experts during the one-day personality development and communication skills workshop organised for small and marginal farmers in Fazilka on Tuesday. As many as 38 farmers from Ferozepur, Muktsar, Ganganagar and Hanumangarh were trained at this workshop who will be further training other farmers in their villages.

The workshop was organised by NGO Cereal System Initiative South Asia (CSISA), supported by the Bill and Melinda Gates Foundation and the United States Agency for International Development. Fazilka-based Zamindara Farmsolutions helped in organising the workshop.

Vikram Ahuja from Zamindara Farmsolutions said: "This was the training of the trainers. We provided all information to them free of cost. But they can later charge a marginal fee to provide the expertise in personality development, climate change pattern etc to other farmers. It is not easy to convince the farmers against what they have been doing for the last 50 years." The details discussed in the workshop were drop in production of citrus fruit due to climate change, change in tea flavour, sowing season change et al. "Climate change has made lots of changes in farming and this was taught to the trainers who are basically literate family members of farmers in the region," said Dr Neelam Chaudhary, one of the keynote speakers.

he trainers will also start an SMS facility for the farmers to alert them about the changes in climate and the possible remedies. Apart from this, special focus is on how to present yourself before the masses and how to make your point clear. Ahuja said: "We are really focusing a lot on personal grooming so that farmers can fully utilise these skills when they address their problems or approach clients for marketing purposes."

As many as five experts from agriculture universities and institutes trained the farmers.

Tuesday, February 1, 2011

एनसीसी के प्रति छात्रों का रुझान घटा

भारत पाक सरहद पर स्थित सरकारी स्कूलों में नैशनल केडेट कोर (एनसीसी) के प्रति विद्यार्थियों का रुझान कम होता जा रहा है, जबकि देश में विपत्ति के समय कैडेट अहम रोल निभाते हैं। हैरानी की बात यह है कि फाजिल्का में एक भी लड़की ने इस साल एनसीसी नहीं रखी। 

खासकर सरहदी इलाकों में भारत-पाक सीमा पर अकसर ही तनाव रहता है। ऐसे में इनकी भूमिका और भी अहम बन जाती है, मगर इसके प्रति विद्यार्थियों का रुझान कम होना चिंता का विषय है। हालांकि भारत के प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने घोषणा की है कि देश के राष्ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी) के कैडेटों की संख्या 13 लाख से बढ़ाकर 15 लाख कर दी जाएगी। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने भी अपने कार्यकाल में घोषणा कर चुके हंै कि सरकारी स्कूलों में एनसीसी प्रत्येक 

विद्यार्थी के लिए अनिवार्य कर दी जाएगा, लेकिन न तो स्कूलों में एनसीसी अनिवार्य की गई है और न ही विद्यार्थियों की संख्या में इजाफा हुआ है। गौर हो कि देश में विपत्ति के समय विद्यार्थियों को तैयार रखने के लिए 1948 में कानून बनाया गया था और एनसीसी 15 जुलाई 1948 में स्कूलों में लागू कर दी गई थी। 

भारत-पाक के बीच 1965 और 1971 के युद्ध में एनसीसी केडिटों ने डिफेंस की दूसरी पंक्ति में रहकर अपनी अहम भूमिका निभाई, परन्तु फाजिल्का एक ऐसा कोर डिवीजन है, जहां कैडेटों की संख्या बढऩे की जगह कम होती जा रही है। नगर के स्कूलों में कैडेटस की संख्या पहले 760 थी, जो अब घटकर 458 रह गई है। फाजिल्का जूनियर डिवीजन की एक आईटीआई में स्थित पलाटून में इस समय मात्र 54 कैडेट हैं, जबकि सरकारी एमआर कालेज में कैडेट का एक भी विद्यार्थी नहीं है। सरकारी माडल सीनियर सेकेंडरी स्कूल लड़के में भी संख्या पिछले साल के मुकाबले इस साल काफी कम हो गई है। सरहद पर स्थित किसी भी सरकारी स्कूल में एनसीसी कैडेट नहीं है, जबकि आठ साल पहले यहां 110 छात्र थे। 

तीन साल पहले मात्र 54 छात्र रह गए। छात्र विवान और छात्रा सोनिया ने बताया कि वे देश सेवा के लिए सेना में भर्ती होने की तमन्ना रखते हैं, लेकिन कालेज के विद्यार्थियों का एनसीसी के प्रति रुझान कम होने के कारण इसे शुरू नहीं किया गया। सरकार को चाहिए कि अन्य विषयों की 

तरह सरकार को एनसीसी विषय भी जरूरी करना चाहिए।