Wednesday, September 30, 2009
कस्तूरबा गांधी हॉस्टलों ने बदल दी मानसिकता
फाजिल्का (फिरोजपुर)-'जिस दिन बालड़ी पढ़ जाएगी, देश दी गुड्डी चढ़ जाएगी।' सर्वशिक्षा अभियान के इस स्लोगन को कस्तूरबा गांधी गर्ल्स हॉस्टल योजना ने सही मायनों में पूरा किया है। पंजाब में ट्रायल के तौर पर फाजिल्का व अबोहर के ग्रामीण क्षेत्रों में खोले गए हॉस्टल सर्वशिक्षा अभियान के गर्ल्स एजुकेशन स्कीम के आदर्श केंद्र बने हुए है और पैसों के अभाव में बीच में ही पढ़ाई छोड़ने वाली कन्याओं के लिए वरदान साबित हो रहे है। केंद्र सरकार ने कमजोर आर्थिक हालत, लड़कियों को न पढ़ाने की मानसिकता रखने वाले अभिभावकों वाले क्षेत्रों में लड़कों के मुकाबले काफी कम संख्या में शिक्षा ग्रहण करने वाली लड़कियों को शिक्षित करने के उद्देश्य से साल 2003 में कस्तूरबा गांधी गर्ल्स हॉस्टल खोलने की शुरुआत की थी। नींव को मजबूत करने के लिए प्राइमरी स्तर की लड़कियों के लिए देश के विभिन्न राज्यों में हॉस्टल खोले गए। पंजाब में इस योजना के ट्रायल के लिए साल 2006 में फाजिल्का ब्लाक के निहालखेड़ा गांव व अबोहर ब्लाक के धर्मपुरा गांव का चयन किया गया। गरीब परिवारों व लड़कियों को न पढ़ाने की मानसिकता वाले इन इलाकों में यह ट्रायल बेहद सफल रहा। सूत्रों के अनुसार, पहले साल अभिभावकों का विश्वास जीतकर उनकी लड़कियों को हॉस्टल में लाने के लिए चयनित गांवों के सरकारी स्कूलों के स्टाफ को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। अब आलम यह है कि प्राइमरी से एलीमेंट्री में तब्दील हुए स्कूलों की लड़कियों को हॉस्टल में दाखिल कराने के लिए अभिभावकों की लाइन लगी नजर आती है। निहालखेड़ा स्थित एलीमेंट्री स्कूल की छठी से आठवीं कक्षा तक की 49 लड़किया हॉस्टल के आदर्श माहौल में शिक्षा ग्रहण कर रही है। शुरुआत 25 लड़कियों से की गई थी। हॉस्टल में रहने वाली लड़कियों को सुबह नाश्ता, दो समय भोजन, दो समय चाय, सप्ताह में तीन दिन फल, दो दिन दूध व दो दिन स्वीटडिश के रूप में पोषक आहार नि:शुल्क प्रदान किया जाता है। उनके मनोरंजन के लिए खो-खो, बैडमिंटन मुकाबलों के अलावा इनडोर गेम्स में कैरम, रस्सा कूद इत्यादि का प्रशिक्षण दिया जाता है। रहने के लिए साफ सुथरे कमरों में बेड, बिस्तर व एक-एक अलमारी दी गई है। प्रांगण में सजावटी पेड़-पौधों वाला घासयुक्त मैदान भी छात्रावास के माहौल को पढ़ने योग्य बनाता है। साफ-सुथरे आधुनिक शौचालय, स्नानघर, आरओ वाटर के साथ समय-समय पर डाक्टरी निरीक्षण करवाया जाता है। विजिटर रूम में एक बड़ा टीवी मुहैया कराया गया है। स्कूल में कंप्यूटर शिक्षा के साथ-साथ शाम के वक्त प्रैक्टिस के लिए हॉस्टल में दो कंप्यूटर मुहैया कराए गए है। पढ़ाई में कमजोर छात्राओं के लिए हॉस्टल के बजट से ही शाम के वक्त नियमित टयूशन प्रदान की जा रही है। छात्राओं की देखभाल के लिए एक वार्डन, भोजन पकाने के लिए रसोइये, सुरक्षा के लिए चौकीदार का पुख्ता प्रबंध भी है। कुल मिलाकर जो सुविधाएं प्रति छात्रा हजारों रुपया खर्च कर अभिभावकों को नहीं मिल पातीं, वह कस्तूरबा गांधी गर्ल्स हॉस्टल में नि:शुल्क दी जा रही है। और हॉस्टल खोले जाएंगे : को-आर्डिनेटर हॉस्टल योजना की डिप्टी स्टेट को-आर्डिनेटर सुषमा के अनुसार, पंजाब में ट्रायल आधार पर कन्या शिक्षा मामले में लोगों की मानसिकता बदलने में फाजिल्का व अबोहर क्षेत्र में खोले गए हॉस्टल खासे कामयाब हुए है। उसके चलते संगरूर क्षेत्र में एक हॉस्टल खोला जा चुका है। ऐसे और हॉस्टल स्थापित करने के लिए कई जगहों की पहचान की जा चुकी है। बजट मिलने पर इनको खोल दिया जाएगा। इस साल हॉस्टल का बजट 10 लाख से ज्यादा निहालखेड़ा सेकेंडरी स्कूल के प्रिंसिपल एवं हॉस्टल की संचालन कमेटी के अध्यक्ष जगसीर सिंह ने बताया कि साल 2006 में खुले इस हॉस्टल के निर्माण पर साढ़े 14 लाख रुपये से अधिक खर्च आया था। बाद में छात्राओं की संख्या दुगुनी होने पर ऊपरी मंजिल पर 10 लाख रुपये की लागत से नई इमारत बनाई गई है। वैसे हर छात्रा को प्रतिदिन 25 रुपये डाइट देने का प्रावधान है, लेकिन छात्राओं के खाने-पीने, रहन-सहन, वार्डन व कांट्रेक्ट बेस पर रखे गए रसोइये, हेल्पर, सेवादार, चौकीदार, अकाउंटेट, टयूटर व हॉस्टल के रखरखाव के लिए सरकार प्रतिवर्ष 10 लाख से अधिक बजट देती है। इस साल 1064500 रुपये का बजट पास हुआ है।
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/punjab/4_2_5826156.html
Monday, September 28, 2009
शहीद की बेटी ने उठाया हरियाली का बीड़ा
इस साल शहीद इकबाल सिंह यादगारी वेलफेयर सोसायटी की ओर से लगाए जा रहे दूसरे सभ्याचारक मेले की शुरुआत भी शहीद की बेटी सीमा द्वारा गांव में पौधे लगाकर की जाएगी। सीमा का कहना है कि उसने अपने पिता को तो नहीं देखा और न ही उनकी उंगली पकड़कर चलना सीखा, क्योंकि देश विरोधी तत्वों के खिलाफ लड़ते-लड़ते शहीद होने पर उसके सिर को पिता का साया नसीब नहीं हो सका। पिता की याद में पिछले सालों में लगाए गए पौधों की छांव अब उसे पिता की कमी महसूस नहीं होने देती। पिता की 21 सितंबर 1992 में मौत के दो महीने बाद जन्मी सीमा के साथ त्रासदी यह रही कि उसके पिता के बाद वंश चलाने वाला परिवार का कोई सदस्य नहीं बचा। इकबाल के पिता व सीमा के दादा उजागर सिंह की मौत इकबाल की शहादत से पहले हो चुकी थी। बाद में दादी भी चल बसी। पति का बिछोड़ा न सहते हुए सीमा की मां कुलवंत कौर की भी 23 दिसंबर 1992 को मौत हो गई। सीमा को पालने पोसने की जिम्मेवारी गांव में ही रहने वाली उसकी बुआ ने उठाई। पिता की मौत के बाद जन्मी सीमा इस शहादत दिवस पर पूरे 18 साल की हो गई, लेकिन उसने अकेलेपन को कभी खुद पर हावी नहीं होने दिया। पढ़ाई लिखाई के साथ अपने पिता की याद को अमर बनाने के लिए अकेले अपने दम पर इलाके में पौधारोपण की शुरुआत करने वाली सीमा का अभियान अब काफिले का रूप धारण कर चुका है। बेशक पिता की शहादत के बाद उसके बिछोड़े में बीमारी की शिकार उसकी मां भी सीमा का साथ छोड़ गई, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी बल्कि पर्यावरण संरक्षण को अपने जीवन का उद्देश्य बनाकर अपने जीवन को मकसद प्रदान कर चुकी है|
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/punjab/4_2_5820602.html
Green Ramleela celebrations in Fazilka
It was a scene when Hanuman uprooted and brought the mountain containing Sanjivani herb to save the life of unconscious Lakshman. As Hanuman reached the stage with the mountain having different saplings on it, the audience welcomed him with applause. The organisers distributed more than 250 saplings of Neem, Arjun, Sukhchain, Alestonia, Gulmohar, Kachnar and others varieties displayed from the mountain.
"The idea is to give practical shape to all teachings and baseline values given in the Ramayana as our duty towards the environment during the Sanjivani herbs episode," said Lakshman Dost the Director of the Ramleela Samiit. "The modern era needs this kind of 'sanjivani' to alert the unconscious civil society towards their moral duties for environment," he added.
"Each tree is sanjivani for the society and this is the most scientific way to protect our environment through faith and religion," said Dr Bhupinder Singh, who initiated the campaign to alert citizens of Fazilka about global warming through the teachings of Guru Granth Sahib last year like "Pawan Guru pani, pita mata dharat mahatu."
— Praful Chander Nagpal
Thursday, September 24, 2009
Asia's Biggest Wool Market at Fazilka - गर्त में समाई एशिया की सबसे बड़ी ऊन मंडी
फाजिल्का-भारत के मानचित्र पर फाजिल्का का नाम कभी ऊन की प्रमुख मंडियों शुमार था। फाजिल्का की तुलना इंग्लैंड के मानचेस्टर से की जाती थी जो दुनिया में ऊन का प्रमुख स्थान है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि ऊन का फाजिल्का से क्या रिश्ता है, लेकिन अब यह बात सपना सा हो गया है। ऊन का व्यापार होना तो दूर सरकार द्वारा जारी ऊन की स्थापित मंडियों की सूची से फाजिल्का का नाम ही गायब हो गया है। उल्लेखनीय है कि आजादी से पहले फाजिल्का न केवल देश की बल्कि एशिया की प्रमुख ऊन मंडी हुआ करता था। लुधियाना से लाहौर वाया फाजिल्का रेल ट्रैक जिसे व्यापारिक नजरिये से अंग्रेजों ने गोल्डन ट्रैक का नाम दिया था, के रास्ते फाजिल्का मंडी में बिकने वाली देश भर की ऊन लाहौर के रास्ते अन्य रास्तों से पूरी दुनिया में सप्लाई की जाती थी। तब फाजिल्का में राम प्रैस व ऊन की सफाई कर उसकी गांठे बनाने वाली कई छोटी-मोटी प्रैस फैक्ट्रियां भी अस्तित्व में थीं। आजादी के बाद जैसे ही गोल्डन ट्रैक बंद हुआ, वैसे ही ऊन का व्यापार गर्त में समाने लगा। रही सही कसर पंजाब सरकार की गलत नीतियों ने पूरी कर दी है। आजादी के बाद लुधियाना की हौजरी फैक्ट्रियों, सेना के जवानों की जर्सियों के निर्माण के लिए ऊन उत्पादकों का माल खपता रहा है। सरकार ने ऊन व्यवसाय को कोई तरजीह नहीं दी, बल्कि मंडी में बिक्री टैक्स दो से बढ़ाकर चार प्रतिशत कर दिया जो राजस्थान में आज भी दो प्रतिशत ही है। साथ ही राज्य सरकार ने गांवों में लगाई जाने वाली अस्थाई ऊन खरीद मंडियां भी पिछले 10-12 साल से लगानी बंद कर दी है। सरकार की अनदेखी के चलते कभी ऊन बाजार के नाम से मशहूर बाजार में अब ऊन का नामोनिशान भी नहीं मिलता। गांवों में ऊन उत्पादकों को अपनी भेड़ो के इलाज के लिए पशु डिस्पेंसरियां व डाक्टर तक नसीब नहीं होते। इसके चलते यहां की ऊन की गुणवत्ता भी धीरे-धीरे कम हो गई। इलाके के अधिकांश गड़रियों व अन्य भेड़ पालकों ने भेड़ पालनी बंद कर दी है। वैसे भी एक भेड़ से छह महीने में आधा किलो ऊन ही प्राप्त होती है, जिसकी अधिकतम कीमत 12 से 14 रुपये (1000-1100 रुपये प्रति मन) होती है। उसमें से भी आठ रुपये तो ऊन काटने वाला ले जाता है। शेष चार छह रुपये गड़रियों की जूती घिसाई में निकल जाते है। जो थोड़ी बहुत मांग लुधियाना हौजरी मिलों की थी, वह भी आस्ट्रेलिया की मैरिनो क्वालिटी की ऊन ने समाप्त कर दी है। अब आलम यह है कि कभी सीजन में 25 हजार मन ऊन की आवक होती थी, अब कम होकर साढ़े चार सौ मन तक सिमट गई है। पिछले साल साढ़े चार सौ मन आवक के मुकाबले इस बार उतनी आवक होने की संभावना भी नहीं है। ज्यादा टैक्स के चलते अधिकांश ऊन उत्पादक अपनी ऊन राजस्थान के हनुमानगढ़ व अन्य मंडियों में ले जाकर ऊन बेच रहे है, ताकि हौजरी फैक्ट्रियों से नकारी यहां की ऊन बीकानेर की फैक्ट्रियों में कारपेट बनाने
Wednesday, September 23, 2009
First Green Ramleela of the Country in Fazilka
Sri Bala Ji Uttar Railway Ramleela Club, Nai Abadi, Fazilka took this initiative
UNESCO considered Ramleela as a Masterpiece of the Oral and Intangible Heritage of Humanity which is celebrated during Durga Sharad Navratras and now UNESCO will have more reason to say the same. Graduates Welfare Association Fazilka (GWAF) along with Sri Bala Ji Northern Railway Ramleela Samiti, Fazilka took up this unique initiate to spread the message given in Ramleela at large. Locally available and grown tree saplings (like Neem, Arjun, Sukhchain, Alestonia, Gulmohar, Kachnar etc) with the help of Forest Department Ferozpur shall be distributed to the audience free of cost. The idea is to give practical shape to all teachings and base line values given in our Veda's/holy book as our duty towards environment during the Sanjeevni herb episode, which Lord Hanuman brought to save the life of Lord Ram's brother Lakshman. "Our present Kalyug needs this kind of Sanjeevni to make alert the unconscious civil society towards their moral duty for environment about which each faith and religion talk about" said in a joint statement given by President Balbir Singh and Laxman 'Dost' director of Sri Bala Ji Uttar Railway Ramleela Club.
In this episode Hanuman was asked to look for the Sanjeevani herb that was reputed to have magical curative properties — it was believed to even bring the dead back to life — to treat Lakshman who lay unconscious on the battlefield. Unable to identify the herb, Hanuman simply uprooted an entire Himalayan mountain and delivered it in time to revive the mortally wounded Lakshman.
Each tree is a Sanjeevni for us and this is the most scientific way that how we can protect our natural environment through faith and religion, said Dr Bhupinder Singh who last year initiated the campaign to alert citizens of Fazilka about Global Warming through the teachings given in Shri Guru Granth Sahib like "Pawan Guru Pani, Pita Mata Dharat Mahatu".
God fearing and hopeful people of Fazilka are welcoming this step. "We have taken this initiative this year and we hope the same initiative shall also be adopted by the other Ramleela as well. The idea of doing this is to alert the present and future generations about the teachings of holy book Ramayana and also to spread awareness about environment, said Navdeep Asija, Secretary GWAF.
This episode shall be played on the night of 25th September 2009 at Nai Abadi area of Fazilka.
Friday, September 18, 2009
फ्लाईओवर
निम्नलिखित लेख उस छात्र की कॉपी से लिया गया है, जिसे निबंध लेखन प्रतियोगिता में पहला पुरस्कार मिला है।
फ्लाईओवर का जीवन में बहुत महत्व है, खास तौर पर इंजीनियरों और ठेकेदारों के जीवन में तो घणा ही महत्व है। एक फ्लाईओवर से न जाने कितनीकोठियां निकल आती हैं। पश्चिम जगत के इंजीनियर भले ही इसे न समझें कि भारत में यह कमाल होता है कि पुल से कोठियां निकल आती हैं औरफ्लाईओवर से फार्महाउस।
खैर, फ्लाईओवर से हमें जीवन के कई पाठ मिलते हैं, जैसे बंदा कई बार घुमावदार फ्लाईओवर पर चले, तो पता चलता है कि जहां से शुरुआत की थी, वहींपर पहुंच गए हैं। उदाहरण के लिए ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के पास के फ्लाईओवर में बंदा कई बार जहां से शुरू करे, वहीं पहुंच जाताहै। वैसे, यह लाइफ का सत्य है, कई बार बरसों चलते -चलते यह पता चलता है कि कहीं पहुंचे ही नहीं।
फ्लाईओवर जब नए-नए बनते हैं, तो एकाध महीने ट्रैफिक स्मूद रहता है, फिर वही हाल हो लेता है। जैसे आश्रम में अब फ्लाईओवर पर जाम लगता है,यानी अब फ्लाईओवर पर फ्लाईओवर की जरूरत है। फिर उस फ्लाईओवर के फ्लाईओवर के फ्लाईओवर पर भी फ्लाईओवर चाहिए होगा। हो सकता है किकुछ समय बाद फ्लाईओवर अथॉरिटी ऑफ इंडिया ही बन जाए। इसमें कुछ और अफसरों की पोस्टिंग का जुगाड़ हो जाएगा। तब हम कह सकेंगे किफ्लाईओवरों का अफसरों के जीवन में भी घणा महत्व है।
दिल्ली में इन दिनों फ्लाईओवरों की धूम है। इधर से फ्लाईओवर, उधर से फ्लाईओवर। फ्लाईओवर बनने के चक्कर में विकट जाम हो रहे हैं। दिल्लीगाजियाबाद अप्सरा बॉर्डर के जाम में फंसकर धैर्य और संयम जैसे गुणों का विकास हो जाता है, ऑटोमैटिक। व्यग्र और उग्र लोगों का एक ट्रीटमेंट यह है किउन्हें अप्सरा बॉर्डर के जाम में छोड़ दिया जाए।
फ्लाईओवर बनने से पहले जाम फ्लाईओवर के नीचे लगते हैं, फिर फ्लाईओवर बनने के बाद जाम ऊपर लगने शुरू हो जाते हैं। इससे हमें भौतिकी के उसनियम का पता चलता है कि कहीं कुछ नहीं बदलता, फ्लाईओवर का उद्देश्य इतना भर रहता है कि वह जाम को नीचे से ऊपर की ओर ले आता है, ताकिनीचे वाले जाम के लिए रास्ता प्रशस्त किया जा सके।
फ्लाईओवरों का भविष्य उज्जवल है। कुछ समय बाद यह सीन होगा कि जैसे डबल डेकर बस होती है, वैसे डबल डेकर फ्लाईओवर भी होंगे। डबल ही क्यों,ट्रिपल, फाइव डेकर फ्लाईओवर भी हो सकते हैं। दिल्ली वाले तब अपना एड्रेस यूं बताएंगे - आश्रम के पांचवें लेवल के फ्लाईओवर के ठीक सामने जो फ्लैटपड़ता है, वो मेरा है। कभी जाम में फंस जाएं, तो कॉल कर देना, डोरी में टांग कर चाय लटका दूंगा। संवाद कुछ इस तरह के होंगे - अबे कहां रहता हैआजकल रोज अपने फ्लैट से पांचवें लेवल का जाम देखता हूं, तेरी कार नहीं दिखती। सामने वाला बताएगा - आजकल मैं चौथे लेवल के फ्लाईओवर मेंफंसता हूं। अबे पांचवें लेवल के जाम में फंसा कर, वहां हवा अच्छी लगती है। अबे, ले मैं तेरे ऊपर ही था, पांचवें वाले ल
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Navdeep Asija
http://navdeepasija.blogspot.com
Fazilka - 152123