Publish Date: Sun, 14 Aug 2022 09:59 PM (IST)Updated Date: Sun, 14 Aug 2022 09:59 PM (IST)
मोहित गिल्होत्रा, फाजिल्का : इतिहास गवाह है कि दुनिया के बड़े-बड़े नगर, कस्बे, यहां तक कि गांव भी उस जगह पर बसाए गए, जहां पानी नजदीक होता है। फाजिल्का शहर की शुरुआत भी इसी पानी से हुई थी। 18वीं शताब्दी में अंग्रेजों के समय एक जगह को झील का रूप देकर इसके किनारे बंगला बसाया गया, जिस बंगले को बाद में फाजिल्का कहा जाने लगा। लेकिन समय के साथ-साथ फाजिल्का को नाम देने वाली यह झील लुप्त होती गई। इस झील का पानी सतलुज से जुड़ा हुआ था, जोकि धीरे धीरे दूर होता गया, जिसके बाद झील सूखती गई। लेकिन समय-समय की सरकारों ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया और यह सूखते सूखते पुरी तरह से लुप्त हो गई, लेकिन आज तीन दशक बाद फाजिल्का को अपनी ऐतिहासिक धरोहर मिलने जा रही है। फाजिल्का के विधायक नरेंद्रपाल सिंह सवना व डिप्टी कमिश्नर डा. हिमांशु अग्रवाल ने रविवार देर शाम बाधा झील के छोटे हिस्से की शुरुआत की।
फाजिल्का की ऐतिहासिक बाधा झील की बात करें तो यह 18वीं शताब्दी में बनाई गई। इस झील के साथ सतलुज का पानी जुड़ा हुआ था, लेकिन 1960 में एक संधी के तहत इस झील को पानी देना बंद कर दिया गया, जिसके चलते यह बाधा झील सूखने लगी। इस झील के लिए लंबे समय तक संघर्ष करने वाले ग्रेजुएट वेलफेयर सोसायटी के सचिव इंजी. नवदीप असीजा ने बताया कि 1995 में इस झील के सूखने की शुरुआत हुई और 2006 में यहां आखिरी कमल खिला। इस झील की खासियत के रूप में पाए जाने वाले मोर भी यहां से लुप्त हो गए, जिसके चलते ना तो तब की सरकारों ने इस पर ध्यान दिया और ना ही लोगों ने। वर्ष 2015-16 में यहां कालोनी काट दी गई, जिसके चलते यहां लगाए गए पेड़ों को भी उखाड़ दिया गया, तब से लेकर अब तक वह कई बार प्रशासन के समक्ष मांग उठाते रहे हैं। लेकिन पिछले दिनों बाधा में प्लाटों को लेकर आई एक शिकायत के आधार पर की गई जांच के साथ इस झील के पुन: निर्माण के रास्ते भी खुल गए। प्रशासन ने यहां पंचायती जमीन पर फसल पैदा करने वाले किसानों को इस बार के लिए फसल काटने तक की इजाजत दी है, जिसके बाद यहां झील को बड़ा रूप दिया जाएगा। फिलहाल झील की शुरुआत अढ़ाई एकड़ से की जाएगी। इस मौके पर विधायक नरेंद्रपाल सिंह सवना ने कहा कि फाजिल्का की ऐतिहासिक धरोहर की यह मांग काफी लंबे समय थी, जिसका सपना आज शुरुआत के साथ साकार होता दिखाई दे रहा है। वह उम्मीद करते हैं कि जल्द ही इस झील की तस्वीर पहले की जैसी दिखाई दे। वहीं डीसी डा. हिमांशू अग्रवाल ने कहा कि यह प्रयास गांवों के लोगों के साथ ही मिलकर संभव हो सकता है। इसलिए गांव वासी इसमें पूर्ण सहयोग दें। उन्होंने कहा कि इसे केवल झील तक ही नहीं, बल्कि गांव के लोगों के रोजगार के लिए भी मौके पैदा करने के लिए प्लान तैयार किया जाएगा। ताकि यहां के लोगों को भी फायदा मिले। गांव के सरपंच ने पंचायत व गांव वासियों की ओर से हर संभव सहयोग का विश्वास दिलाया।