Thursday, December 16, 2010

शहीदी स्मारक के बदले दिए 12 गांव-Shahhed-E-Azam Bhagat Singh

Fazilka, Laxman Dost, Dainik Bhaskar,16th December 2010
भारत पाक युद्ध में भारतीय सैनिकों की वीरता, बहादुरी और शौर्य की अनुठी गाथा का प्रतीक आसफवाला शहीदों की समाधि को लेने के बदले फाजिल्का क्षेत्र को भी भारी मूल्य चुकाना पड़ा। इसके तहत पाकिस्तान को फाजिल्का क्षेत्र का बहुत बड़ा हिस्सा दिया गया। देश का विभाजन करते समय रैडक्लिफ आयोग ने एक लकीर खींच दी। लकीर ने भारत को दो हिस्सों में बांट दिया। इसके कारण क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव सिंह की स्मारक लकीर के दूसरी ओर पाकिस्तान में चली गई।

देश की स्वतन्त्रता के लिए कुर्बानी देने वाले क्रांतिकारी शहीदों की स्मारक सीमा की उस ओर जाने से भारतीयों के मन को ठेस पहुंची। शहीदों की स्मारक के लिए दोनों देशों में बरसों तक शीत युद्ध चलता रहा। फिर दोनो देशों ने स्वर्ण सिंह-शेख समझौता किया। स्वर्ण सिंह-शेख समझौते के तहत शहीदों का स्मारक फिरोजपुर जिले में आ गया। इसके बदले फाजिल्का तहसील के १२ गांव पाकिस्तान को दिए गए। इस ऐतिहासिक फैसले पर लिखी गई भारत की कुर्बानी की पुस्तक में फाजिल्का की कुर्बानी के सुनहरे पन्नों की संख्या औ बढ़ गई। भौगोलिक बदलाव के कारण फाजिल्का नगर पाकिस्तानी क्षेत्र के गोलों की रोलिंग रेंज में आ गया है। यही कारण है कि पाकिस्तान ने 1965 और 1971 के युद्ध के दौरान फाजिल्का क्षेत्र को अपना निशाना बनाया और पाक रेंजरों ने फाजिल्का की तरफ बढऩे का प्रयास किया। लेकिन भारत के जांबाज सैनिकों से उसे मुंह की खानी पड़ी। 1971 को भारत-पाक का सबसे बड़ा युद्ध फाजिलका सेक्टर में लड़ा गया। पाक ने फाजिल्का के त्रिभुज आकार का फायदा उठाया और फाजिल्का के कई गांवों को तीनों ओर से घेर लिया। उस भारतीय क्षेत्र को आजाद कराने के लिए कई भारतीय सैनिकों को वतन पर कुर्बान होना पड़ा। इन कुर्बानियों की याद में आसफवाला में शहीद स्मारक का निर्माण हुआ।

No comments: