Thursday, December 9, 2010

सातवें दिन हटे दुश्मन के कदम

Laxman Dost, 8th December 2010, Dainik Bhaskar
साबूणा नहर पर स्थित गांव बेरीवाला के पास लेफ्टिनेंट केजे फिलिप्स मोर्चा संभाल कर रहे थे। दुश्मन को पिछे धकेलने के लिए उन्होंने सीधा अटैक करने की योजना बनाई। उन्होंने 3-असाम के कुछ जवानों के साथ नहर को पा किया और पाक रेंजरों पर धावा बोल दिया। यहां पर भीषण युद्ध हुआ, लेकिन इस बीच लेफ्टिनेंट फिलिप्स को तीन गोलियां लग गई। यह उनकी बहादुरी थी कि उन्होंने साथी सैनिकों को गोलियों पता भी नहीं चलने दिया और आगे बढ़ते रहे। 

अन्य सैनिकों को इस का पता तब चला जब वे अचेत होकर गिर गए। इस पर उन्हें उठा कर वापस मोर्चे में लाया गया। वहां उन्हें चिकित्सा मुहैया करवाई गई, लेकिन वह वीरगति को प्राप्त हो गए। इस मुठभेड़ में उनके साथ लड़ रहे सिपाही गुरमीत सिंह, सुमित्र सिंह, अर्जुन सिंह, जोरा सिंह, धर्म सिंह, सिपाही देवराज, हवालदार रामफूल सिंह ने भी अपने प्राणों की आहुति दी। साबूणा नहर के दौनों किनरे इस समय रक्त और बारूद से रंजित हो गए थे। इस जगह का कतरा कतरा अब भातरीय शूरवीरता की गाथा गा रहा था।

इस दिन पाक सेना से आग्रिम मोर्चे पर लड़ रहे एमएल भाटिया शहीद हुए। उन्होंने अपनी टुकड़ी के साथ कई पाकिस्तानी टेंकों को नष्ट किया और भारी संख्या में पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारा। उन्हें मरणोप्रांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। इस दिन चली भीषण लड़ाई में मेजर के एस राणा, मैजर ऐके घोष कैप्टन वीके सिंह, कैप्टन वीएस कैरा, कैप्टन बी स्वामी ने भी शहीदी प्राप्त की। इन सभी की योद में सर्वत्र विजय स्तम्भ की स्थापना की गई।

मरणोपरांत वीरचक्र से सम्मानित: युद्ध में तोपची हरबंस सिंह का जिक्र किए बिना युद्ध गाथा अधूरी रह जाती है। हरबंस सिंह भारतीय सेना द्वारा सबुना नहर के बिलकुल करीब स्थापित की गई तोप पर तैनात थे। वे यहां युद्ध केक दूसरे दिन ही मोर्चा संभालने पहुंच गये थे और सात दिनों तक लगातार गोले दाग रहे थे। उनकी आंखें दिन से इतनी लाल हो चुकी थी कि अब खून बहने लगा था, लेकिन वे पिछले हटने का नाम नहीं ले रहे थे। 9 दिसंबर को उनके मोर्चा पर पाक सेना द्वारा दागा गया एक गोला फटा और भारत माता का यह बेटा शहीदी को प्राप्त हुआ। उन्हें मरणोप्रांत वीरचक्र से सम्मानित किया गया। बताया जाता है कि अगर पाक सेना ने भारतीय क्षेत्र के आठ गांवों के सैकड़ों ग्रामीणों को बंधक न बनाया होता तो यहां पर लड़ाई इतनी लंबी नहीं चलनी थी। पाक सेना के पास बंधक बने भारतीय सबसे बड़ा हथियार थे जो भारतीय सेना को सीधे हमले के लिए रोक रही थी। इस बीच बंधक बने ग्रामीणों की हालत भी खराब होने लगी थी। पाक सैनिकों ने गांवों में चिकित्सा के अलावा अन्य सभी सुविधाएं बंद कर दी थी। यहां तक कि रात को घरों में कुछ भी जलाने या पकाने की मनाही थी। उस समय में गुजारे दिनों को याद कर आज भी ग्रामीण सिहर उठते हैं।

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