Sunday, December 19, 2010

देश प्रेम का अनूठा संगम है शहीद स्मारक

17 दिसंबर की रात 8 बजे युद्धबंदी की घोषणा हुई। उसके बाद सेना के अधिकारियों ने शहीद सैनिकों के शवों को एकत्रित करवाने का काम शुरू करवाया। यह सिलसिला 18 दिसंबर सुबह सात बजे से लेकर सायं तीन बजे तक चलता रहा। इस दौरान शहीदों के शवों को गांव आसफवाला में एकत्रित किया गया और देश की रक्षा करने वाले इन शूरवीरों का 90 फुट लंबी तथा 18 फीट चौड़ी चिता बनाकर दाह संस्कार किया गया। उसके बाद आसफवाला एक ऐसा स्थान बन गया ,जहां सर्वधर्म के व्यक्ति श्रद्धा से शीश झुकाते हंै। 

आसफवाला शहीदी स्मारक देश प्रेम और धार्मिक आस्था का प्रतीक है। सादकी सीमा पर रिट्रीट सेरेमनि देखने आने वाले लोग आते-जाते इन शहीदों को नमन् करते हैं। स्मारक में वार मेमोरियल बनाया गया है। जहां कुर्बान होने वाले जवानों के चित्र, दोनों युद्धों का हाल लिखा गया है। युद्ध दौरान के कुछ चित्रों व पेंटिंग भी सजाई गई है। ताकि इस पवित्र धरती पर आने वाले लोगों में इन्हें देखकर देशभक्ति का जज्बा और बढ़ सके। 1991 में यहां 67 इंफैट्री बिग्रेड के आठ युनिटों की स्मारक बनाए गए। 

मैदान में जीत टेबल पर हारी लड़ाई: युद्ध विराम की घोषणा के बाद भारत के समक्ष 93 हजार युद्ध बंदियों को संभालने की समस्या थी और आखिरी करीब आठ माह बाद दोनों देशें के प्रधानमंत्री शिमला में एक टेबल पर एकत्रित हुए। जुलाई 1972 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी एवं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुलफ्कार अली भुट्टो के बीच हुए समझौते को शिमला समझौता नाम दिया गया। इस समझौते से आम आदमी सहमत नहीं था। कोई भी नहीं चाहता था कि पाक से कब्जे में लिया गया क्षेत्र उसे वापस दिया जाए। तब लोग आम कहते थे कि सैनिकों द्वारा मैदान में जीता युद्ध, नेताओं ने टेबल पर हार दिया।

No comments: