Monday, December 6, 2010

मार पड़ी तो देखने लायक थी पाकिस्तान की उल्टी दौड़

6 दिसंबर 1971 की रात दोनों ओर से लड़ाकू विमान प्रयोग किए गए। दोनों ओर से भीषण युद्ध जारी था। दुश्मन के लड़ाकू विमानों को गिराने और पाकिस्तानी रेंजरों को मात देने के लिए भारतीय सेनाओं की ओर से गगनभेदी तोप का मुंह खोल दिया गया। 1942 में जबलपुर ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में तैयार गगनीभेदी तोप से जब 300 राउंड प्रति मिनट से गोलों की बौछार हुई तो दुश्मन घबरा गया। 840 किलो वजन और 40 एमएस केलीबर की इस तोप के गोलों की मार 12.6 किलोमीटर तक थी। इसने पाकिस्तान के गांवों को खाली करवा दिया। 

भारतीय सेना अगर चाहती तो बेरीवाला, बक्खूशाह, नूरन और मोहम्मद पीरा आदि गांवों को पाक रेंजरों के कब्जे से छुड़ा सकती थी, लेकिन अगर वहां गगनभेदी तोप का प्रयोग किया जाता तो इससे भारतीय ग्रामीणों का भी नुकसान होना लाजमी था। इस कारण सैनिकों ने इन गांवों में गगनभेदी तोप का प्रयोग नहीं किया। तोप की दूर-दूर तक हुई मार से दुश्मन पीछे की ओर दौड़ा। भारतीय सैनिकों ने दूसरी ओर से पाकिस्तान पर हमला कर दिया। इससे सैकड़ों पाकरेंजर धरती पर बिछ गए। उनके लड़ाकू विमान धड़ाधड़ धरती पर गिरने लगे। उन्होंने बंदी बनाए गए गांवों को तो नहीं छोड़ा, लेकिन आगे बढऩे की हिम्मत भी नहीं की। 

इस बीच भारतीय सैनिक दूसरी ओर से पाक धरती के उस स्थान पर पहुंच गए। वहां पाक रेंजर भारतीय सेना पर शेरमन टैंक से गोले दाग रहे थे। उन्होंने चुपके से शेरमन टैंक को चलाने वाले चालक पर गोली दाग कर वहीं ढेर कर दिया। इसके साथ ही भारत की ओर से मौके पर गगनभेदी तोप का गोला गिराया गया। इसमें कई रेंजर ढेर हो गए और जो बच गए, वे भाग निकले। 

इसके साथ ही भारतीय सैनिकों ने शेरमन टैंक को कब्जे में ले लिया और वहां से भारतीय सीमा में ले आए। भारतीय सेना की ओर से युद्ध में प्रयोग की गई गगनभेदी तोप को युद्ध खत्म होने के बाद फाजिल्का में सजाया गया था। इसे देखने के लिए भीड़ उमड़ी थी। अब एक तोप को आसफवाला शहीदों की समाधिस्थल और दूसरी तोप को सादकी रोड पर सजाया गया है।

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