भारतीय सड़क सुरक्षा इस उदहारण से बेहतर तरीक़े से बताई जा सकती है | हमने सब छोटे बच्चो को एक एक चॉकलेट का पैकेट बाँट दिया और बोला की इसमें से सिर्फ एक ही स्लाइस खाना हैं और अगर ज्यादा खाया तो आप बीमार पड़ जाओगे | इसी बीच एक NGO को फंडिंग करके बोला की देखो भारतीय बच्चे कैसे चॉकलेट खाते हैं | अब बच्चे हैं , कौन एक स्लाइस से मानता हैं , सभी ने पूरी चॉकलेट खा ली | चॉकलेट कंपनी ने रिसर्च वाले को विदेश घूमने के पैसे दिए और बोला जाओ और पूरी दुनिया को बताओ की "भारतीय बच्चो को चॉकलेट खानी नहीं आती" | जब यह रिसर्च छपी तो विदेश से चॉकलेट बनाने वाली कंपनीओ ने रिसर्च, सरकार और NGO के माध्यम से पैसे भेज कर यह बोला की जाओ भारतीय बच्चो को चॉकलेट खानी सिख़ाओ | भारतीय बच्चे तो बदनाम हुए पर चॉकलेट की सेल बढ़ गयी | अब आप सोचेंगे की इसका सड़क सुरक्षा से क्या लेना देना | सड़क बनाने वाली और गाड़ी बनाने वाली कंपनी कुछ ऐसा ही कर रही हैं | हमारे या दुनियाँ के सभी शहरों में ज्यादातर शहरों में कानूनी गति 50 KMPH है | हम सड़क बनाते हैं 100KMPH वाली और उसपे बनाकर गाड़ी देते हैं 200 KMPH से चलने वाली | गाड़ी और सड़क बनाने वाले रसुकदार और अमीर ठहरे , वह सभी महानुभावों को पैसे देकर बोलते हैं , सेमीनार लगाओ और भारतीय ड्राईवर को गाड़ी चलाना सिखाओ | कभी भी फ़ोकस अपने ऊपर आने नहीं दिया , और यही कारन हैं की सेमीनार पे सेमीनार और दुर्घटनाएं कम होने का नाम नहीं ले रही और गाड़ियाँ बिक रहीं हैं , एलिवेटेड और सुपर एक्सप्रेसवे बनते जा रहे है , जहा सिर्फ पैदल चलने की व्यवस्था की जरूरत थी | और कुछ नहीं तो ट्रैफिक पुलिस को भ्रष्ट बता दो ताकी उन्ही पे सारी ज़िम्मेदारी पड़ जाये | अमरीका , स्वीडन , यूरोप या कहीं भी अगर दुर्घटनाओं में कमी आयी है तो उन्होंने ड्राईवर या चलने वाले व्यक्तियों पर से ध्यान हटा के रोड इंजीनियरिंग अथवा गाड़ी की स्पीड़ कम करने पर ध्यान दिया , नतीजा आपके सामने हैं , स्वीडन देश की आबादी पंजाब जितनी हैं लेकिन वहां पिछले साल केवल 263 लोग मरे और पंजाब में 5077 लोगों को सडक़ दुर्घटनाओं में अपनी जान गवानी पड़ी | हमारी बीमारी का वायरस स्पीड यानी गति हैं , और हम सोचते हैं की शहर के बीचो बीच चौड़ी सड़कें बना कर इस वायरस को मार देंगे | आप वायरस को मार नहीं रहे आप और बढ़ा रहे हैं इस उम्मीद के साथ की लोग दुर्घटनाओं मैं कम मरेंगे | सरकारे भी एम्बुलेन्स दे कर ख़ुश होती है और कहती हैं की देखो सड़क सुरक्षा पर काम कर दिया , अरे भाई ज्यादा एम्बुलेंस का मतलब यह है की इंजीनियरिंग से लेकर एनफोर्समेंट तक किसी ने काम नहीं किया इस लिए एम्बुलेंस की जरूरत पड़ी | बाकि कुछ कमियाँ देश के कानून में हैं जो केवल व्यक्ति के दोष के ऊपर ही लगता हैं , सड़क के बीच अगर कोई पेड़ या खम्बा हैं तो उसके लिए IPC की कोई सीधी धारा नहीं जिससे दुर्घटना को होने से रोका जा सके | भारतीय ड्राईवर बाकी दुनियाँ से से काफी अच्छे हैं , जो ऐसी निर्दयी सड़कों पर भी गाड़ी चला लेते है | ड्राईवरो को कोसना बंद करके जिनकी ज़िम्मेवारी हैं उनको ज़िम्मेदार ठहराया जाये , सड़क दुर्घटनाओं का आंकड़ा तभी कब होगा , तब तक कोसते रहिये भारतीय ड्राईवर और पुलिस को |
जय हिन्द
नवदीप असीजा
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