25 सैनिकों ने शहादत देकर बचाया था फाजिल्का सेक्टर || आज श्रद्धांजलि पर विशेष
शहीद मेजर नारायण सिंह को पाक सेना ने भी सलामी दी थी
3 दिसंबर 1971 में पाक सेना को रोकने के लिए भारतीय सेना ने उड़ाया था गांव बेरीवाला का पुल
संजीव झांब | फाजिल्का
3दिसंबर 1971 फाजिल्का सेक्टर में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बसे गांवों के लिए कभी भूलने वाला दिन है। 1971 के भारत-पाक युद्ध का सर्वाधिक भीष्म युद्ध इसी सेक्टर में हुआ था। 3 दिसंबर की शाम पाकिस्तानी गोले फाजिल्का के सीमावर्ती गांवों में ताबड़तोड़ बरस रहे थे। लोग पहले ही पलायन कर चुके थे। पाकिस्तानी सेना टैंकों के साथ लगातार आगे बढ़ रही थी। 3 अासाम रेजीमेंट, 15 राजपूत और 67 इनफेंट्री ब्रिगेड के जवानों ने इनका बहादुरी से मुकाबला किया। सेना ने 4 जाट रेजीमेंट के जवानों को भी युद्ध क्षेत्र में उतार दिया। बढ़ रही पाक सेना को रोकने के लिए भारतीय सेना ने गांव बेरीवाला के पुल को उड़ा दिया। दोनों तरफ लगातार गोले बरस रहे थे। भारतीय सेना का नेतृत्व मेजर नारायण सिंह कर रहे थे और पाक सेना का मेजर शब्बीर शरीफ। मेजर नारायण िसंह ने 8 पाक सैनिकों को मौत के घाट उतारा। युद्ध में मेजर नारायण िसंह समेत सेना के लगभग 225 जवान शहीद हुए। 450 के करीब जख्मी।
1970 के युद्ध में पाक सेना को रोकने के लिए गांव बेरीवाला की ड्रेन पर बना यही पुल सेना ने उड़ाया था। तब से अब तक गांव के लोग इसकी मुरम्मत करा इस्तेमाल कर रहे हैं। बता दें, बॉर्डर एरिया में ड्रेन पर बने पुल पक्के नहीं बनाए जा सकते। लकड़ी से ही बनाया जाता है ताकि किसी खतरे में इसे आसानी से उड़ाया जा सके। ऊपर फोटो में शरमाना टैंक, जिसे पाक सेना से छीना गया था।
भारतीय सेना की तरफ से मेजर नारायण सिंह को मरणोपरांत वीरचक्र से सम्मानित किया गया। युद्ध विराम के बाद जब पाकिस्तान की तरफ से शहीद सैनिकों के शव भारतीय सेना को सौंपे गए तो तब पाक सेना के अधिकारियों ने मेजर नारायण सिंह को उनकी बहादुरी के लिए सलामी दी थी। शहीद सैनिकों का सामूहिक अंतिम संस्कार गांव आसफवाला में 90 फीट लंबी तथा 55 फुट चौड़ी चिता बनाकर किया गया था। शहीदों के बलिदान से प्रभावित फाजिल्का के लोगों ने उनकी याद में एक स्मारक का निर्माण किया। हर साल यहां शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दी जाती है।
मेजर नारायण िसंह ने 8 पाक सैनिकों को मौत के घाट उतारा था
शहीद मेजर नारायण सिंह को पाक सेना ने भी सलामी दी थी
3 दिसंबर 1971 में पाक सेना को रोकने के लिए भारतीय सेना ने उड़ाया था गांव बेरीवाला का पुल
संजीव झांब | फाजिल्का
3दिसंबर 1971 फाजिल्का सेक्टर में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बसे गांवों के लिए कभी भूलने वाला दिन है। 1971 के भारत-पाक युद्ध का सर्वाधिक भीष्म युद्ध इसी सेक्टर में हुआ था। 3 दिसंबर की शाम पाकिस्तानी गोले फाजिल्का के सीमावर्ती गांवों में ताबड़तोड़ बरस रहे थे। लोग पहले ही पलायन कर चुके थे। पाकिस्तानी सेना टैंकों के साथ लगातार आगे बढ़ रही थी। 3 अासाम रेजीमेंट, 15 राजपूत और 67 इनफेंट्री ब्रिगेड के जवानों ने इनका बहादुरी से मुकाबला किया। सेना ने 4 जाट रेजीमेंट के जवानों को भी युद्ध क्षेत्र में उतार दिया। बढ़ रही पाक सेना को रोकने के लिए भारतीय सेना ने गांव बेरीवाला के पुल को उड़ा दिया। दोनों तरफ लगातार गोले बरस रहे थे। भारतीय सेना का नेतृत्व मेजर नारायण सिंह कर रहे थे और पाक सेना का मेजर शब्बीर शरीफ। मेजर नारायण िसंह ने 8 पाक सैनिकों को मौत के घाट उतारा। युद्ध में मेजर नारायण िसंह समेत सेना के लगभग 225 जवान शहीद हुए। 450 के करीब जख्मी।
1970 के युद्ध में पाक सेना को रोकने के लिए गांव बेरीवाला की ड्रेन पर बना यही पुल सेना ने उड़ाया था। तब से अब तक गांव के लोग इसकी मुरम्मत करा इस्तेमाल कर रहे हैं। बता दें, बॉर्डर एरिया में ड्रेन पर बने पुल पक्के नहीं बनाए जा सकते। लकड़ी से ही बनाया जाता है ताकि किसी खतरे में इसे आसानी से उड़ाया जा सके। ऊपर फोटो में शरमाना टैंक, जिसे पाक सेना से छीना गया था।
भारतीय सेना की तरफ से मेजर नारायण सिंह को मरणोपरांत वीरचक्र से सम्मानित किया गया। युद्ध विराम के बाद जब पाकिस्तान की तरफ से शहीद सैनिकों के शव भारतीय सेना को सौंपे गए तो तब पाक सेना के अधिकारियों ने मेजर नारायण सिंह को उनकी बहादुरी के लिए सलामी दी थी। शहीद सैनिकों का सामूहिक अंतिम संस्कार गांव आसफवाला में 90 फीट लंबी तथा 55 फुट चौड़ी चिता बनाकर किया गया था। शहीदों के बलिदान से प्रभावित फाजिल्का के लोगों ने उनकी याद में एक स्मारक का निर्माण किया। हर साल यहां शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दी जाती है।
मेजर नारायण िसंह ने 8 पाक सैनिकों को मौत के घाट उतारा था
Dainik Bhaskar, Page 2, Ludhiana Edition, 3rd December 2017
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