🧭 ज़िंदगी सीमा पर… फ़ाज़िल्का के गाँव मोहम्मद पीरा और बाखू शाह की एक सच्ची कहानी
1971 का भारत-पाक युद्ध सिर्फ फौज की लड़ाई नहीं थी। यह उन आम लोगों की भी लड़ाई थी, जो बिना वर्दी, बिना हथियार, सिर्फ हिम्मत और उम्मीद के सहारे देश के लिए खड़े रहे।
ऐसी ही एक सच्ची और दिल छूने वाली कहानी है फ़ाज़िल्का के गाँव बाखू शाह के मलकीत सिंह और उनकी पत्नी नानकी बाई की।
👉 युद्ध के दौरान मलकीत सिंह को पाकिस्तानी फौज ने बंदी बना लिया।
👉 उनकी पत्नी नानकी बाई, जो उस समय गर्भवती थीं, उन्हें भी बंदी बना लिया गया।
👉 और फिर उन्होंने पाकिस्तान की जेल में अपने बेटे – रावेल सिंह – को जन्म दिया।
📍 ये सिर्फ एक परिवार की बात नहीं थी।
गाँव मोहम्मद पीरा और बाखू शाह के करीब 300 नागरिकों को 1971 में पाकिस्तान ने युद्ध के दौरान बंदी बना लिया था।
📜 फिर आया शिमला समझौता – 2 जुलाई 1972, जब भारत और पाकिस्तान के बीच एक ऐतिहासिक संधि हुई।
उसके बाद मलकीत सिंह, नानकी बाई और रावेल सिंह सहित लगभग 300 लोगों की अपने गाँवों में वापसी हुई — दर्दभरी यादों और मजबूती भरे जज़्बे के साथ।
यह कहानी हमें याद दिलाती है कि
➡️ देशभक्ति सिर्फ हथियार उठाने में नहीं,
➡️ बल्कि एक माँ की कोख,
➡️ एक परिवार की सहनशक्ति,
➡️ और एक नागरिक की उम्मीद में भी होती है।
🙏 मलकीत सिंह, नानकी बाई और रावेल सिंह को शत-शत नमन।
🙏 और पत्रकार दिव्या गोयल को सलाम, जिन्होंने इस भूली हुई कहानी को फिर से दुनिया के सामने लाकर, इतिहास को इंसानियत से जोड़ा।
📌 आज शिमला समझौते की वर्षगांठ पर, आइए हम उन गुमनाम नायकों को याद करें जो किताबों में नहीं, पर हमारी ज़मीन और दिलों में ज़िंदा हैं।
On Simla Agreement's 53rd anniversary, 1971 war survivors remember detention days in Pak, homecoming: 'All hopes to return were lost but..' | Chandigarh News - The Indian Express
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