जिस तरह शहर में विकास की गाड़ी दौड़ रही है, वह सेहत के लिए बहुत खतरनाक है। आज विकास के नाम पर शहरीकरण हो रहा है। पेड़-पौधों की बली ली जा रही है और धड़ाधड़ कालोनियां बसाई जा रही हैं, लेकिन शहर में सफाई के नाम पर कुछ नहीं हो रहा। जगह-जगह अवैध कब्जे हो रहे हैं। गलियां संकरी होने लगी हैं।
क्षेत्रफल कम हुआ, जनसंख्या बढ़ गई
जानकारी अनुसार उन्नीसवीं सदी में फाजिल्का का क्षेत्रफल सिरसा, बीकानेर, बहावलपुर और ममदोट तक करीब 2200 वर्ग किलोमीटर था। एक सदी बाद फाजिल्का का इलाका अरनीवाला, अबोहर, भारत-पाक सरहद की सादकी चौकी और मंडी लाधूका 230 वर्ग किलो मीटर तक सीमित मात्र होकर रह गया है। सदी पूर्व फाजिल्का के साथ 301 गांव थे और आज मात्र 70 गांव ही रह गए हैं। क्षेत्रफल कम हुआ, लेकिन आबादी में इजाफा होता चला गया। पेड़-पौधे कटते गए और निवास स्थान बनते चले गए। हालत यह है कि आज न तो ताजी हवा मिल रही है और न ही सैर करने की जगह मिलती है।
आबादी में इजाफा होने से जीवन की डगर मुश्किल हो रही है। कई मोहल्लों में लोग तीन दशक पुरानी पाइपों से पानी पी रहे हैं। ट्रैफिक के कारण वाहनों से निकले धुएं से बीमारियां बढ़ रही हैं। जस्सी अस्पताल के संचालक डाक्टर यशपाल जस्सी बताते हैं कि शहरीकरण से लोगों की शारीरिक गतिविधियां सीमित होकर रह गई हैं। इस कारण दिल के रोग, शगर, मोटापा, उच्च रक्तचाप और सास जैसी बीमारियां पैदा हो रही हैं। उन्होंने बताया कि आबादी में इजाफा तो हो रहा है, लेकिन मूलभूत ढांचे का विकास नहीं हो रहा। स्वच्छ वातावरण के लिए पेड़-पौधे चाहिएं। अगर चैन की जिन्दगी जीना है तो हमें अपना रहन-सहन बदलना होगा। लोगों को स्वच्छ पर्यावरण के लिए ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने चाहिए।
Saturday, May 8, 2010
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