उल्लेखनीय है कि सबसे पुरानी तहसील होने के बावजूद यहा से कोई भी फास्ट ट्रेन नहीं चलती। यहा तक कि देश की राजधानी दिल्ली, धर्म नगरी हरिद्वार या अन्य दूर स्थित बड़े शहर से फाजिल्का का सीधा रेल संपर्क नहीं है। भारत-पाक सीमा पर तैनात हजारों बीएसएफ जवानों को भी छुट्टी या काम के वक्त घर जाने के लिए सीधी रेल सेवा की जरूरत रहती है। इन जरूरतों को देखते हुए फरीदकोट के तत्कालीन सासद जगमीत सिंह बराड़ ने अपने गृह नगर मुक्तसर के लोगों के साथ फाजिल्का को फायदा पहुचाने के लिए जनवरी 2003 में फाजिल्का से बठिडा के लिए लिंक एक्सप्रेस चलवाई थी, जो रात तीन बजे यहा से रवाना हो, पाच बजे बठिडा में दिल्ली जाने वाली गाड़ी के साथ जुड़ जाती थी। लेकिन करीब ढाई साल पहले वह लिंक एक्सप्रेस भी बंद कर दी गई। रेल यात्रियों के अधिकारों की रक्षा के लिए गठित संगठनों ने उत्तर रेलवे के महाप्रबंधक से लगातार पत्राचार कर व शिष्टमंडल के रूप में मिलकर दिल्ली व हरिद्वार के लिए सीधी गाड़िया चलाने की माग की तो जवाब दिया गया कि फाजिल्का में वाशिग लाइन न होने के कारण गाड़ियों की वाशिग व उनमें पानी भरने की सुविधा नहीं होने के चलते लंबी दूरी की गाड़िया नहीं चलाई जा सकतीं।
यहा उल्लेखनीय है कि 1947 से पहले से लेकर 1990 तक फाजिल्का में वाशिग लाइन स्थापित थी, जिसे फाजिल्का से कोटकपूरा मीटर गेज लाइन को ब्राड गेज में तब्दील करते वक्त उखाड़ दिया गया था। महाप्रबंधक कार्यालय के जवाब पर समिति ने वाशिग लाइन पुन: स्थापित करने की माग को लेकर पत्राचार व अधिकारियों से मिलने का सिलसिला शुरू किया तो अब फिर से उसी महाप्रबंधक कार्यालय से 25 मई को फिरोजपुर डीआरएम कार्यालय के जरिये आए जवाब ने बीस साल पहले उखाड़ी वाशिग लाइन पुन: स्थापित न होने की माग खारिज कर दी। तर्क ये दिया गया है कि फाजिल्का स्टेशन फिरोजपुर व बठिडा से डीएमयू गाड़ियों से लिंक रखता है, इसलिए यहा वाशिग लाइन की जरूरत नहीं है। इन दोहरे मापदंडों ने फाजिल्का वासियों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या सरहदी क्षेत्र में बसे होना उनका गुनाह है
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