फाजिल्का शहर की पहचान गली-कूचों के दिलचस्प नामों से भी होती है। भारत ही नहीं, पाकिस्तान में भी ऐसे लोगों की बड़ी तादाद है, जिनके जहन में आज भी फाजिल्का की इन गलियों की यादें ताजा है। बंगला से लेकर फाजिल्का तक के सफर में व्यापारिक गतिविधियों का हब कहा जाने वाला फाजिल्का शहर कई परिवर्तनों का साक्षी रहा। यहां ऐसे कई गली-कूचे, सड़कें और स्थान हैं, जिनके नाम बहुत अनूठे हैं।
अनोखे नाम से पहचान: भारत विभाजन से पूर्व कालेज रोड पर पहले मुल्तानी चुंगी हुआ करती थी और इस मार्ग का नाम शेरशाह सूरी मार्ग था। जो शेरशाह सूरी के साम्राज्य में दिल्ली तक जाता था। लोग सूरी मार्ग को भूल चुके हैं, लेकिन मुल्तानी चुंगी का नाम मशहूर है, जबकि वहां आज मुलतानी चुंगी नहीं है, वहीं बीकानेरी रोड और बठिंडा रोड भी हैं। भारत विभाजन के बाद यह रोड कभी बीकानेर या बठिंडा तक नहीं पहुंचे। इसी तरह लाल सड़क के नाम से फ्रीडम फाइटर रोड और शर्मा आई अस्पताल रोड जुड़ा हुआ है। बुजुर्ग उसे लाल सड़क कहकर पुकारते हैं। यहां कभी ईंटों, रोड़ों से बनी सड़क हुआ करती थी। पोस्ट ऑफिस के सामने वाली गली का नाम प्रेमी गली है। यहां विभाजन से पूर्व मुजरा हुआ करता था। आज भी उसे प्रेम गली के नाम से जाना जाता है। इस तरह आबादी सुल्तानपुरा व इस्लामाबाद में इस्लाम को मानने वाला कोई नहीं रहता। फिर भी नाम पुराने हैं। सुल्तानपुरा आबादी का नाम जोरा सिंह मान नगर रखा गया है। लोग उसे आबादी सुल्तानपुरा के नाम से ही पुकारते हैं। इस तरह मेहरियां बाजार में अब मेहरियां दाने नहीं भूनती। जंड बाजार की निशानी जंड नहीं रहा। ऊन और वान का अस्तित्व लगभग खत्म हो चुका है। न यहां ऊन की दुकानें है और वान की, मगर नाम ऊन बाजार और वान बाजार है। कई उद्यमियों ने छोटे होटल बिजनेस से शुरुआत की और होटलों के नाम से होटल बाजार पड़ गया। मात्र एक होटल के नाम से होटल बाजार है। अबोहरी अड्डे से सीधे कोई बस अबोहर नहीं जाती और उसका नाम अबोहरी अड्डा है। घास मंडी में घास का तिनका तक नहीं है, धोबी घाट में धोबी नहीं। इसी तरह से एक अटपटा नाम है डैड रोड, जहां जालिम को फांसी नहीं लगाई जाती और ब्रिटिश साम्राजय वाला नाम डैड रोड ही पुकारा जाता है, जबकि चार बार रोड का नाम बदला जा चुका है। फिर भी ढर्रा....डैड रोड।
नामों से हो चुके अभ्यस्त: पिछले कुछ बरसों में कई अनूठे नाम बदल दिए गए, लेकिन लोग नएं नामों का इस्तेमाल नहीं करते। वह स्थानों को पुराने नामों से ही पुकारते हैं और व्यवहार में लाते हैं। आज भी लोगों के बीच वही नाम प्रचलित है, जो कभी हकीकत में हुआ करता था। यह अनोखे नाम केवल दुकानों के बोर्ड पर ही नहीं, बल्कि विजीटिंग कार्डों, बैनरों और विभिन्न वैबसाइटों पर भी आसानी से देखे जा सकते हैं। डाक पते पर यही नाम लिखे जाते हैं। नगर कौंसिल अध्यक्ष अनिल सेठी मानते हैं कि अब इन नामों को बदल पाना बहुत कठिन है, क्योंकि लोग इन्हीं नामों से अभ्यस्त हो चुके हैं।
फाजिल्का की विरासत को संभालने वाली संस्था ग्रेजूएट्स वैलफेयर एसोसिऐशन के सचिव इंजीनियर नवदीप असीजा का कहना है कि अजब गजब नामों वाले कई गली-कूचों के नाम बदल चुके हैं, मगर इसके बावजूद फाजिलकावासी पुराने नामों को प्रचलन में बनाए रखे हुए हैं। उनका कहना है कि भले ही लोग पुरातन पंथी क्यों न कहें, लेकिन फाजिल्कावासी इन नामों से जुड़ी अपनी ऐतिहासिक स्मृतियों को जिंदा रखे हुए हैं और ओल्ड इज गोल्ड की तर्ज पर इन पुराने नामों को सहजे हुए हैं।
Tuesday, May 4, 2010
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