Tuesday, August 17, 2010

विभाजन की भेंट चढ़ गए सरहद के 153 गांव

देशभर में आज स्वतंत्रता दिवस का जश्न मनाया जा रहा है लेकिन भारत-पाक सरहद पर सटे पंजाब के सरहदी जिलों के 153 गांव आज भी विभाजन का दंश झेलने को अभिशप्त हैं। जिला फिरोजपुर के 39, अमृतसर के 39 और गुरदासपुर के इन 75 गांवों को बेचिराग गांवों के नाम से जाना जाता है। इन गांवों के हिस्से में आई बदकिस्मती कुछ इस तरह की है कि बसासत वाला भाग पाकिस्तान में चला गया और कृषि वाला हिस्सा भारत में है। भारत की सरजमीं से अपनी पहचान खो चुके इन गांवों की भूमि का हदबंदी नम्बर भारत के रेवेन्यू रिकार्ड में दर्ज है और बाकायदा नहरी पानी की बारी भी लगती है।

जनसंख्या पाक में, नाम भारत में: विभाजन से पहले इन गांवों में हजारों की संख्या में लोग बसे हुए थे लेकिन विभाजन के बाद और आजादी के 64 वर्ष बीत जाने के बाद भी किसी ने यहां बसेरा नहीं किया। ग्रेजूऐटस वैलफेयर एसोसिऐशन के सचिव इंजीनियर नवदीप असीजा बताते हैं कि विभाजन के बाद दोनों देशों में रैड क्लिफ आयोग ने हदबंदी की तो जनसंख्या वाला इलाका पाकिस्तान में चला गया और कृषि क्षेत्र वाला इलाका भारत में रह गया। भारत विभाजन के बाद कुछ लोगों ने यहां बसने का प्रयास किया, मगर पाकिस्तान के साथ 1965 और 1971 में दो बार युद्ध के दौरान उन्हें यहां से पलायन करना पड़ा। इसके अलावा दोनों देशों के बीच तनाव और तारबंदी से पैदा हुई परेशानियों के चलते भी लोग यहां बसना मुनासिब नहीं करते।

क्या कहते हैं तहसीलदार: तहसीलदार अमरजीत सिंह बताते हैं कि ब्रिटिश साम्राज्य की और से 1880 और 1912 में हदबस्त नंबर  दिए गए थे। उसके बाद आज तक हदबस्त नंबर नहीं बदला और वह हदबस्त नंबर आज भी चल रहे हैं।

जीरो लाइन पर मिले भारत पाक लोगों के दिल: विभाजन के दौरान बिछड़े भारत पाक के बाशिंदो को आखिरकार भारत के स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर दो दशक बाद एक दूसरे की झलक पाने का मौका मिला। वे आपस में उतनी बातें नहीं कर पाये, जितना समय उन्होंने अपने रिश्तेदारों का चेहरा देखने में गुजार दिया। उनकी जुबां से यही अल्फाज निकले कि काश, दोनों देशों में सरहद न होती। यह दर्द भरा दृश्य था भारत सरहद पर सटी बीएसएफ की सादकी चौकी का, जहां करीब दो दशक बाद जीरो लाईन के इधर और उधर बसने वाले लोगों को मिलने का मौका दिया गया। दोनों देशों की ओर से राष्ट्रीय ध्वज फहराने और उतारने के लिए रिट्रीट सेरेमनी का आयोजन किया गया।

रिश्तों में बही भावुकता की बयार: हरियाणा, राजस्थान और पंजाब के कई शहरों से लोग पाकिस्तान में बसे अपने रिश्तेदारों से मिलने के लिए आये हुए थे। राजस्थान के हनुमानगढ़ जिला के गांव ढालीया से पाक में स्थित लाला बंबे जिला बहावल नगर में रहने वाले अपने मामा रमजान और मासी जेबा को मिलने आई 70 वर्षीया मुमताज पत्नी कादर बख्श ने बताया कि उसके रिश्तेदार 27 साल पहले भारत उससे मिलने आये थे, लेकिन उसके बाद आज उनकी एक झलक देखने को मिली है। जीरो लाइन के कारण वे ताउम्र के लिए बिछुड गए हैं। डालिया की ही जन्नत पत्नी नूर मोहम्मद ने बताया कि वह दो साल पहले पाक स्थित लाला बंबेके के रहने वाले अपने भतीजा आरिफ सोदा से मिलकर आई है। उसने फोन पर बताया कि वह परिवार सहित 14 अगस्त को सादकी चौकी पर उनका इंतजार करेंगे। जिस कारण आज वह यहां आई है। इके गांव भागसर से आई कलीमा पत्नी आद दयाल ने बताया कि वह पाक के बहावलनगर जिला के गांव नाईवाला में रहने वाले अपने मामा जीवा से मिलने आई है।

भागसर जिला श्री गंगानगर निवासी अहसान अली अपनी बुआ सुकरा देवी वासी 37 चक बहावल नगर, सोबत अली वासी दोसोयोधा हरियाणा अपने दादा खसी खान वासी 20 चक बहावल नगर, ओम प्रकाश वासी अमीर खान अपने चचेरे भाई गुलाम अवास वासी हुजरे शाह मुकीम दे से मिलने आये हुए थे। सीमा सुरक्षा बल के जवानों ने पहले इन्हें जीरो लाईन से करीब दो सो मीटर की दूरी पर रखा, लेकिन बाद बीएसएफ के आलाअफसरों से आदेश मिलने और पाक रेंजरों से हुई बातचीत के बाद इन्हें करीब तीन चार मिंट तक अपने रिश्तेदारों से बातचीत करने का मौका दिया गया। इस दौरान एक एक परिवार को आपस में बातचीत करने का मौका दिया गया। जब तक वे सादकी चौकी पर रहे तब तक उनकी आंखें बार पीछे की झांकती रही।

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