उर्दू के प्रख्यात शायर अल्लमा इकबाल ने कहा था के "जो कौम अपना ख्याल नहीं रख सकती, उसका कोई ख्याल नहीं रखता", इकबाल की कही यह पंक्तिया शायद फाजिल्का वासिओ के लिए सही बैठती है. दिन बा दिन शहर में कब्जो व चोरियों के घटनाये बढ़ रही है, और हम, हम से मेरा मतलब इस फाजिल्का शहर का आम आदमी, हाथ पर हाथ धरे चुप करके बैठा है | मुझे याद है 1988 के वह रात जब, अनुमान था की शायद फाजिल्का में बाढ़ आ जाये, पानी मौजम बांध से सिर्फ एक फुट हे निचे रह गया था, कुछ भी हो सकता था उस रात | सारे फाजिल्का वासियों को मैंने सारी रात सडको पर घुमते देखा है , एक दुसरे की मदद करते हुए, छोटे छोटे बांध बना कर बढ़ से अपने व दोसरों के घरो की रक्षा का इंतजाम करते हुए| क्या हो गया है उस प्यार भरे शहर हो, क्या हम सब सच में इतने स्वार्थी हो गए है की हमारी जिंदगी घर से शुरू होकर घर पर हे ख़तम होने लग गयी है |
फाजिल्का को सँभालने वाले हे फाजिल्का को लूटने में लगे है, और हम खड़े तमाशा देख रहे है | बीते दिनों, आज़ादी के शुभ अवसर पर ही फाजिल्का की एक पुराने शिक्षा के मंदिर के गेट पर रातो रात दो दुकाने बना दे जाती है, और सारा शहर चुप के सन्नाटे में बैठा देखता रहता है, कुछ राजनितिक आन्दोलन और फिर शांति | सिर्फ एक फाजिल्का वासी राजनीती और अपने हितो का त्याग करते हुए अपनी आवाज़ बुलंद करता है, पर अकेला क्या | आब डर यह है के वह भी आवाज़ शायद इस 80000 के भीढ़ में कहीं कुछ दिनों के बाद गुम न हो जाये | फाजिल्का में आजकल जा तो चोकीदार आजकल जागते है, जा मीडिया से जुड़े लोग | आम आदमी तो FLORIDE का पानी पी कर सो रहा है | में मीडिया के उन सभी पत्रकारों का धन्यवाद करता हो, की जिनके कारन आज फाजिल्का में हो रही घटनाये, चंडीगढ़ या दिल्ली तक पहुँच पा रही है, वर्ना एक आम आदमी इस शहर का, लड़ने से पहले हे हार चूका है | आज़ादी से पहली भी मुठी भर अंग्रेजो ने इस देश पर राज किया, कयोंकि हम इकठे नहीं है, हालत आज़ादी के बाद भी नहीं बदले है, कुछ मुठी भर, उन से भी ज्यादा खतरनाक इरादों के साथ फाजिल्का को लूट रहे है | हमारे लिए तो अंग्रेज ज्यादा अच्छे थे, कम से कम उन्होंने इतना सुन्दर शहर तो बसा दिया था | यह "सवाले" तो "गोरो" से भी ज्यादा बुरे है | लगता है फाजिल्का का इतिहास दुबारा लिखने के जरूरत है, जो पढ़ा है वह झूठ लगता है |
यहाँ एक मिसाल देना चाहूँगा, इससे यह मत समझना के मेरी देश भक्ति में कोई कमी आई है, पर अगर बात हम पडोसी मुलाक़ के करे तो जो फाजिल्का वासी, 1947 के बटवारे के समय दूसरी तरफ चले गए थी, अपनी इस फाजिल्का की मिटटी के प्यार के लिए उन्होंने "पाकपटन" में जाकर "फाजिल्का इस्लामिया हाई स्कूल" का निर्माण कर दिया, ताकि फाजिल्का उनके दिल में हमेशा बस्ता रहे | और बदले में हमने क्या किया, उनके बनाये हुए इस्लामिया स्कूल के पहले मिनी सचिवालय और बाकि बची भूमि को भी किसी सरकारी संस्था को दे कर, पैसे कमाने में लगे है | सोचा जाये तो आज भी अगर नगर कौंसिल अगर अपने करमचारियों की तनखाह दे पाई है तो, उस स्कूल की बदोलत| शिक्षा के मंदिरों को बेच कर अपना पेट भरने लगे है | गलती उन के भी नहीं है, जो खुद ही नहीं पढ़े वह क्या समझे स्कूल और शिक्षा का महत्व | बचपन से यही पढ़ते आ रहे है के पडोसी दुशमन है, पर सच बात तो यह है के दुश्मन तो हमारे बीच बैठा है, हमारा अपना, आज इस प्यारे से शहर को पडोसी से शायद कम, लेकिन अपनों से खतरा ज्यादा है | आब आप हे सोचिये के दुश्मन कौन है ?, जिनको हम वोट डालके अपने आप को लूटने के आज़ादी देते है
आब बात जिला बनाने की बारे में के जाये, मेरा कहना तो यह है, हम तो जो हमारे पास है, हम तो उसको सँभालने के भी लायक नहीं है, जिले का क्या करेंगे | मेरा तात्पर्य यहाँ जिला न बनाना नहीं, बल्कि उन सभी लोगो को कहना के जिले के इलावा फाजिल्का पहले हमारा शहर है, इसका भी ख्याल हमें ही रखना है | मेरी इस लेख के जरिये, उन सभी संस्थाऊ से विनम्र निवेदन है की, आओ कभी सभी बैठ के कभी अपने पुराने स्कूल नंबर १, २ व ३ को बचने के लिए भी मरण व्रत रखे | उन सभी बेरोजगार अध्यापको से भी निवेदन है, के अक्सर आपके और सरकार के नौकरियों पर पक्का न करने, व समय पर तन्खाये न देने के लिए आन्दोलन करते देखा है,कभी मटका चौक चंडीगढ़ पर तो कभी पानी के टंकी पर चढ़ कर | कभी एक स्कूल को बचने के लिए आपको कभी आगे आते नहीं देखा | आओ मिल के इक आन्दोलन फाजिल्का के शिक्षा के मंदिरों के हो रहे व्यवसायीकरण के लिए भी कर दे | अगर स्कूल ही न रहे तो कहाँ से आयेंगी नौकरियां | आब आपका ज्यादा समय न लेता हुआ, सिर्फ यही कहूँगा, दोस्तों अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा, आप सारे मिल के दुनिया को बता दे के क्या है हम फाजिल्का वासी, इस देश के सचे नागरिक, जिनके लिए हकों के लडाई बाद में है, पहले देश और इस मिटटी के लिए दिए गए फ़र्ज़ | अगर इसी तरह चुप बेठे रहे तो जो आज सडको पर हो रहा है, शायद कल तक हमारे घर ता आ जाये, पर देखना कहीं तब तक काफी देर न हो जाये | "सब कुछ लुटा के होश में आये तो क्या किया" | सूचना के अधिकार का प्रयोग करो, हमेशा मतदान में हिस्सा लो और लोकनिर्माण में अपना योगदान दो, पूरे दिन के २४ घंटो में से पांच मिनट आपके देश और समाज के लिए भी निकालो | नुक्सान ज्यादा नहीं हुआ, जरूरत है बस एक शुरुआत की | फाजिल्का के उस सच्चे और इकलोते नेता को मेरा नमन, में ही नहीं इस शहर का हर युवा जो इस मिटटी के लिए सोचता है, आपकी तहदिल से इज्ज़त करता है | बाकि फाजिल्का वासियों के लिए, अगर हम अपने बजुर्गो के बसाये हुए शहर को आगे नहीं बढा सकते तो कम से कम उसी हालत में हे अपनी आने वाली पीढ़ी को दे जाये | आओ सब मिल के बनाये "एक शहर हमारे सपनो का, एक शहर हमारे अपनों का" |
1 comment:
Excellent compilation, intelligent selection of very appropriate photographs depicting Fazilka, has taken me back by years!
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