Thursday, June 25, 2009
सांझा चूल्हा दूर करेगा दिलों की दूरियां
अमृत सचदेवा, फाजिल्का पैसे के लिए मची भागमभाग में शहरों से धीरे-धीरे खत्म हो रहे आपसी मेलजोल को पुनर्जीवित करने के लिए फाजिल्का के बाशिंदे शहर में पांच सांझे चूल्हे बना रहे हैं। यह नवेली पहल इको टूरिज्म के तहत की गई है। उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने भी इको टूरिज्म के तहत देश की महान संस्कृति को कायम रखने के लिए अनेक योजनाएं शुरू की हैं। उनमें से ही एक योजना सांझे चूल्हे की भी है। सांझे चूल्हे की स्कीम के दो फायदे हैं। पहला लाभ है लोगों में मिल जुलकर काम करते हुए एकजुट रहने की प्रवृत्ति को मजबूत करना और दूसरा फायदा अलग अलग जगह चूल्हे जलने से होने वाली लकडि़यों की बर्बादी और उनके जलने से फैलने वाले वायु प्रदूषण को रोकना भी है। फाजिल्का में इको टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए शहर के पांच अलग अलग स्थानों पर सांझे चूल्हे स्थापित करवाने वाली समाजसेवी संस्था ग्रेजुएट वेलफेयर एसोसिएशन, फाजिल्का (ग्वाफ) के सचिव एवं युवा इंजीनियर नवदीप असीजा ने बुधवार को इस बारे में पूछे जाने पर बताया कि इको टूरिज्म के तहत इलाके में अनेक प्रोजेक्ट शुरू किए जाएंगे। उनमें से सांझा चूल्हे की धारणा को पहल के रूप में लिया गया है। शुरू में शहर के पांच विभिन्न स्थानों पर स्थापित किए जाने वाले पांच सांझे चूल्हों में सबसे पहला चूल्हा नई आबादी में गुरुद्वारा साहिब के निकट बनाया जा रहा है। विभिन्न मोहल्लों के सांझे चूल्हों पर जब मोहल्ले की महिलाएं इकट्ठी होकर रोटियां सेकेंगी, तो एक दूसरे के सुख दुख में भी शरीक होंगी। वर्तमान में तो पड़ोसियों के पास भी एक दूसरे के सुख दुख में शामिल होने का समय नहीं है। फाजिल्का सांझा चूल्हा के नाम से शुरू किए गए इस प्रोजेक्ट के तहत एक प्रयास यह भी रहेगा कि चूल्हा संचालित करने की जिम्मेवारी किसी विधवा या जरूरतमंद महिला को दी जाए जो महिलाओं को झटपट रोटियां सेंककर देने की एवज में परिवार की आजीविका चल सके।
Dainik Jagran, Punjab Edition : 25th June 2009
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