Tuesday, June 9, 2009

सफ़र

सफ़र

उनकी खामोशियों के लम्हे, गुजरे हम पर कुछ इस तरह,
अपने आप को ढूँढने निकल पड़े, यादो के उन रास्तो पर,
रस्ते में सोची हुयी कुछ मंजिले थी, जो उन हसीं पालो ने हमें दे थी,
जो सिर्फ रस्ते का हिस्सा बन कर रह गयी,
आब तो शायद मंजिलो के नाम से हे डर लगता है,
हमसफ़र साथ हो तो सफ़र फिर से करने को दिल करता है,
ख्वाबो को उम्मीद बनते, और उस उम्मीद को फिर से जिंदगी के कुछ बीते हुए हसीं पल बनते देखा है,
शायद इसी असमंजस को जिंदगी कहते है,
उनकी खामोशियों के लम्हों को मैंने जिंदगी के बदलती हुई तस्वीर बनते देखा है,
इसी पिछले सफ़र में, अपने आप को जाना, और सोचा तब वो न होते तो क्या होते,
यह एहसास-ए दिले नादानगी है या प्यारा सा एहसास,
रख लेते है इसे जिंदगी समझकर, कुछ पाया ही है खोया समझकर
आब तो आने का इंतजार , और खामोशियों के लम्हे , सफ़र बार बार उनके साथ करने को दिल करता है

नवदीप "फाजिल्का"


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