May 29, अमृत सचदेवा, फाजिल्का
नदियों, नहरों व दरिया को लाइफ लाइन यानी जीवन प्रदान करने वाला कहा जाता है लेकिन सतलुज दरिया के किनारे बसे फाजिल्का के करीब आधा दर्जन गांवों के लिए यह दरिया जीवन की बजाए बीमारियां देने वाली बन गई है। इसका मुख्य कारण दरिया में उद्योगों का हानिकारक केमिकल युक्त पानी बहाया जाना जाना है।
इलाके के गांव तेजा रूहेला, दोना नानका, गुलाबा भैणी, झंगड़, महातम नगर, रेतेवाली भैणी, हस्ता कलां, ढोला भैणी, चनन भैणी राम सिंह वाली भैणी व ढाणी सदा सिंह में कभी यही सतलुज दरिया लोगों की पानी की सभी जरूरतें पूरा करती थी। लेकिन वर्तमान में जहां इस दरिया का पानी उद्योगों के गंदे पानी के कारण विषैला हो गया है वहीं यह पानी जमीन में समाकर लोगों की प्यास बुझाने का आखिरी जरिया बचे भूमिगत पानी को भी जहरीला बना चुका है। नतीजतन गांव तेजा रूहेला व दोना नानका के हर चौथे घर में अपाहिज मिल जाते हैं। कुछ लोग हाथों पैरों से विकलांग हैं तो कुछ मानसिक रूप से। यहां का पानी चर्म, नेत्र और यौन रोग का कारण भी बन रहा है। उक्त दोनों गांवों में अनेक महिलाएं बाझपन की समस्या से ग्रस्त हैं। अकेले गांव दोना नानका गांव में तीन बच्चे आंखों की रोशनी गंवा चुके हैं। गांव तेजा रूहेला के राज सिंह, भजन सिंह, पूनम, सरोज बाई, रानो, लड्डू सिंह, छिंदो, कुलविंदर सिंह सहित करीब 20 से अधिक लोग जो अपाहिज है हो गए हैं।
दरिया ऐसे हुई विषैली
फाजिल्का: पाकिस्तान के जिला कसूर में जूती बनाने में प्रयुक्त होने वाले और चमड़े की साफ सफाई व रंगाई उपयोग होने वाले हानिकारक केमिकल को सतलुज दरिया में फेंका जाता है। यही नहीं भारतीय पंजाब के औद्योगिक नगरों लुधियाना, जालंधर व कपूरथला आदि फैक्ट्रियों का दूषित पानी भी इसी दरिया में बहाया जाता है। फाजिल्का के सरहदी गांवों का कसूर यह है कि यह गांव इस दरिया के आखिरी छोर पर बसे हुए हैं, जहां आकर विषैला पानी जमीन में समा जाता है और इन गांवों के लोग इस विषैले पानी को पीकर बीमार होने के लिए मजबूर हैं।
Monday, May 30, 2011
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