फाजिल्का के लिए इससे एतिहासिक दिन शायद नहीं हो सकता था। बुधवार को जिला बनने की चर्चा हमेशा की तरह दिन की शुरूआत से ही हो गई थी, लेकिन बार-बार उड़ती अफवाहों से डरा सहमा हर शख्स चुप था। ज्यों ही शाम को जिला बनने की अधिकारिक घोषणा की खबर मीडिया में आनी शुरू हुई तो अचानक ही सुबह से दम साधे बैठे फाजिल्का वासी खुशी से झूम उठे। पटाखों की गूंज ने शहर में एक खबर की तरह काम किया। जिसने भी पटाखों की गूंज सुनी, वो समझ गया कि फाजिल्का जिला बन गया। चारों ओर मिठाइयां बांटने व पटाखे फोड़ने का सिलसिला शुरू हो गया। लोग शहर की प्रमुख जगहों घंटाघर चौक, शास्त्री चौक, गांधी चौक, राजा सिनेमा चौक आदि पर एकत्र होकर खुशी में झूमने लगे। युवा मोटरसाइकिलों पर शहर में घूम घूमकर खुशी मना रहे थे।
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1844 में अंग्रेज अफसर वंस एगेन्यू ने बसाया था फाजिल्का
फाजिल्का : सतलुज किनारे पड़ती जमीन के टुकड़े को जब मशहूर एतिहासिक यात्री रहे इबन-ए-बतूता ने अंग्रेज सरकार को यहां एक शहर बसाने का सुझाव दिया तो अंग्रेजी सरकार ने सामरिक जरूरतों के चलते इस शहर को महाराजा रंजीत सिंह की सेना द्वारा सतलुज के उस पार की जाने वाली गतिविधियों पर नजर रखने के लिए बसाया था। 1844 में अंग्रेज अफसर वंस एगेन्यू ने इस शहर की नींव रखी। उसने यह जमीन इसके मालिक मियां फजल वट्टू से 102 रुपये में खरीदी थी। राजस्थान व हरियाणा से कुछ जमींदार परिवारों को यहां लाकर बसाया गया। अंग्रेज सरकार ने पूरे योजनाबद्ध तरीके से इस शहर को बसाया था। ऊन की मंडी के रूप में यह शहर इतना मशहूर हुआ कि यहां की ऊन इंग्लैंड के मानचेस्टर व लिवरपूल तक जाती थी। कराची तक गोल्डन ट्रैक के जरिए विशेष ट्रेन भी फाजिल्का से चलती थी। लेकिन विभाजन ने इस शहर को पछाड़ने का जो उलटा पहाड़ा पढ़ना शुरू किया वो शायद अब जिला बनने पर आकर रुक जाए।
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पंजाब की सबसे पुरानी तहसील है फाजिल्का
फाजिल्का : फाजिल्का विभाजन से पहले पंजाब की सबसे बड़ी तहसील हुआ करता था। यह अंग्रेजों द्वारा बनाई तहसील है, जिसकी सीमाएं दूर तक फैली थीं। अब हरियाना का जिला बन चुका सिरसा इस तहसील का हिस्सा था, वहीं ममदोट, बहावल नगर व राजस्थान की तरफ बीकानेर तक इसकी सीमाएं लगती थीं। लेकिन आजादी के बाद इस तहसील के इतने टुकड़े किए गए कि यह कट कटकर कस्बे का रूप धारण कर गई थी। इतना ही नहीं कभी फाजिल्का लोकसभा सीट भी हुआ करता था। लेकिन आजादी के बाद इसके इतने टुकड़े हुए कि फाजिल्का तहसील तक सिमटकर रह गया। दो दशक में इससे जुड़ी अबोहर व जलालाबाद सब तहसीलों को भी फाजिल्का से अलग कर तहसील बना दिया गया था। 1965 व 1971 के युद्ध के जख्मों की निशानी या कहें कि बहादुरी की निशानी के तौर पर फाजिल्का का आसफवाला स्मारक अपनेआप में एक एतिहासिक धरोहर है। इसी के साथ फाजिल्का का 1936 में बना रामनारायण पेड़ीवाल घंटाघर व अंग्रेजी शासनकाल के दौरान बनी कुछ पुरातत्व महता वाली इमारतें भी पंजाब के इस 22वें जिले की धरोहर है।
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इन नेताओं ने दिलाई फाजिल्का को पहचान
फाजिल्का : फाजिल्का को अलग-अलग समय पर पहचान दिलाने में यहां के प्रमुख नेताओं का अहम योगदान रहा है। सबसे पहले यहां के कामरेड नेता चौ. वधावा राम ने जेल में बंद होने के बावजूद फाजिल्का का पहला विधानसभा चुनाव जीतकर रिकार्ड कायम किया था। इसी फाजिल्का से वर्तमान मुख्यमंत्री स. प्रकाश सिंह बादल भी एक उप चुनाव लड़ चुके हैं। इसके अलावा यहां से मंत्री रहे चौ. राधाकृष्ण ने फाजिल्का में सरकारी आइटीआइ की स्थापना करवाई। बाद में चौ. कांशी राम ने फाजिल्का क्षेत्र में शूगर मिल की स्थापना करवाई और मुंशी राम कालेज को सरकार के अधीन करवाया।
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जिले के तूफान से पहले छाई रही चुप्पी
फाजिल्का : दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंककर पीता है। बुधवार को पंजाब के ट्रांसपोर्ट मंत्री सुरजीत ज्याणी की हालत कुछ ऐसी ही थी। फाजिल्का को जिला बनाने को लेकर भूख हड़ताल व मरणव्रत पर बैठने वाले ज्याणी ने चार माह में जिला बनाने को लेकर कई बार बयान दिए। तारीखें व समय तक दे डाला, लेकिन बुधवार जब जिला बनने का समय आया, तो सुबह से शाम तक ज्याणी ने अपना मुंह सिले रखा। कैबिनेट की बैठक में इस बारे फैसला होने तक ज्याणी ने सुबह से चल रही इस चर्चा पर मीडिया को कोई भी बयान देने से इंकार कर दिया।
दरअसल जिला बनाने को लेकर तीन-चार माह में इतनी बार अफवाहें उड़ चुकी थीं कि ज्याणी इस मामले में पहले कुछ बोलकर जोखिम नहीं लेना चाहते थे। और तो और फेसबुक व आरकुट जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट पर भी इस खबर को लेकर पूरा दिन चुप्पी छाई रही। जबकि तीन चार दिन पहले इस बारे पूरी अफवाह के बाद इन सोशल नेटवर्किंग साइटों पर फाजिल्का को जिला बनाने संबंधी पोस्टों की बाढ़ सी आ गई थी। लेकिन जैसे ही टीवी चैनलों पर फाजिल्का को जिला बनाने की पहली खबर आई तो लोगों ने उसी की फोटो ले नेटवर्किंग साइटों पर बधाई संदेश के साथ स्टेटस अपडेट कर दिया।
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