भारत-पाकिस्तान की सीमा पर रिट्रीट सेरेमनी के दौरान प्रतिदिन शाम को झंडा उतारने की रस्म का ख्याल आने से ही आंखों के शोले उगलने और एक दूसरे पर टूट पड़ने वाली शारीरिक भाषा का ख्याल आता है। लेकिन फाजिल्का सेक्टर स्थित सादकी चौकी दोनों देशों के रखवालों के बीच अकसर पाई जाने वाली तल्खी का अपवाद है।
उल्लेखनीय है कि भारत-पाक सीमा पर रिट्रीट सेरेमनी के लिए निर्धारित चौकियों पर अपने अपने देश का राष्ट्रीय ध्वज सम्मानपूर्वक उतारने की सांझी प्रक्रिया में दोनों देशों के रखवाले जितनी तल्खी से एक दूसरे की आंखों में आंखें डालकर इक दूजे को घूरते हैं और चलने, सलामी देने के मौके पर पूरे जोरशोर के साथ पैर पटकते हुए अपनी शारीरिक भाषा की नुमाइश करते हैं। इसे देखकर दोनों देशों की दर्शक दीर्घा में बैठे दर्शक रोमांचित हो जाते हैं। लेकिन फाजिल्का सेक्टर की सादकी चौकी इस तरह की तल्खी से कोसों दूर है। यह सेक्टर भारत-पाकिस्तान के बीच भीषण युद्धों का गवाह बन चुकी है। शायद यही वजह है कि जिस अमन व भाईचारे की बात भारत हमेशा करता आया है, उसी अमन व भाईचारे की भाषा यहां तैनात रहने वाले अधिकारी अनुशरण करते हैं।
करीब तीन माह पहले अमृतसर सेक्टर में हुई दोनों देशों के आला अफसरों की बैठक में रिट्रीट सेरेमनी दौरान एक दूसरे को खा जाने वाले हाव भाव का प्रदर्शन कम करने संबंधी जो फैसला हुआ था, उसका असर सादकी बार्डर पर देखने को मिल रहा है। आलम यह है कि अपने अपने राष्ट्रीय ध्वज उतारने के मौके पर दोनों देशों के अधिकारी गले मिलने से भी नहीं कतराते।
Wednesday, July 27, 2011
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