फाजिल्का-साल 1992 में बठिंडा की मोड़ मंडी के निकट एक आतंकी मुठभेड़ में शहीद हुए गांव जंडवाला मीरासांगला निवासी पंजाब पुलिस जवान इकबाल सिंह की याद में जहां ग्रामीणों द्वारा यादगारी मेले का आयोजन कर उन्हे श्रद्धांजलि दी जाती है, वहीं शहीद की शहादत के दो महीने बाद जन्मी उसकी बेटी सीमा ने अपने पिता की शहादत पर्यावरण संरक्षण को समर्पित कर दी है। सीमा अब तक अपने गांव व आसपास के गांवों में सैकड़ों दरख्त लगा चुकी है।
इस साल शहीद इकबाल सिंह यादगारी वेलफेयर सोसायटी की ओर से लगाए जा रहे दूसरे सभ्याचारक मेले की शुरुआत भी शहीद की बेटी सीमा द्वारा गांव में पौधे लगाकर की जाएगी। सीमा का कहना है कि उसने अपने पिता को तो नहीं देखा और न ही उनकी उंगली पकड़कर चलना सीखा, क्योंकि देश विरोधी तत्वों के खिलाफ लड़ते-लड़ते शहीद होने पर उसके सिर को पिता का साया नसीब नहीं हो सका। पिता की याद में पिछले सालों में लगाए गए पौधों की छांव अब उसे पिता की कमी महसूस नहीं होने देती। पिता की 21 सितंबर 1992 में मौत के दो महीने बाद जन्मी सीमा के साथ त्रासदी यह रही कि उसके पिता के बाद वंश चलाने वाला परिवार का कोई सदस्य नहीं बचा। इकबाल के पिता व सीमा के दादा उजागर सिंह की मौत इकबाल की शहादत से पहले हो चुकी थी। बाद में दादी भी चल बसी। पति का बिछोड़ा न सहते हुए सीमा की मां कुलवंत कौर की भी 23 दिसंबर 1992 को मौत हो गई। सीमा को पालने पोसने की जिम्मेवारी गांव में ही रहने वाली उसकी बुआ ने उठाई। पिता की मौत के बाद जन्मी सीमा इस शहादत दिवस पर पूरे 18 साल की हो गई, लेकिन उसने अकेलेपन को कभी खुद पर हावी नहीं होने दिया। पढ़ाई लिखाई के साथ अपने पिता की याद को अमर बनाने के लिए अकेले अपने दम पर इलाके में पौधारोपण की शुरुआत करने वाली सीमा का अभियान अब काफिले का रूप धारण कर चुका है। बेशक पिता की शहादत के बाद उसके बिछोड़े में बीमारी की शिकार उसकी मां भी सीमा का साथ छोड़ गई, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी बल्कि पर्यावरण संरक्षण को अपने जीवन का उद्देश्य बनाकर अपने जीवन को मकसद प्रदान कर चुकी है|
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/punjab/4_2_5820602.html
Monday, September 28, 2009
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