हालांकि ग्रामीण दर्शन सिंह से कहते थे कि बेटियों को इस खेल के लिए प्रोत्साहन न दे, लेकिन उसने किसी की परवाह न की और खुद उन्हें ट्रेनिंग दी। जब बड़ी बेटी सुखविन्द्र कौर ने देश के विभिन्न राज्यों में हुई कुश्ती प्रतियोगिता में दमखम दिखाकर मेडल बटोरे तो ग्रामीण उसे शाबाशी देने के लिए पहुंच गए। आज हालत यह है कि उससे प्रेरित होकर कई ग्रामीण अपनी बेटियों को कुश्ती के मैदान में भिड़ाने के लिए तैयार करने लगे हैं। सुखविन्द्र कौर से बड़ी बलविन्द्र कौर बीए-सेकंड ईयर की छात्रा है और वह जिला स्तर पर कई मेडल हासिल कर चुकी है। जबकि सबसे छोटी मीना बारहवीं कक्षा की छात्रा है और वह राज्य स्तर तक की कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुकी है। पिता की प्रेरणा से कुश्ती में अपनी ताकत के जौहर दिखाने वाली सुखविन्द्र कौर ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और देश के अलग-अलग शहरों में होने वाली फ्री स्टाइल ओपन कुश्ती मुकाबलों में कूद गई।
इंटरव्यू नहीं दे पाई : पिता दर्शन सिंह मजदूरी करते हैं। महंगाई के इस दौर में मजदूरी से पेट पालना बड़ा मुश्किल है। इसके बावजूद पिता ने बेटियों को अच्छी खुराक दी। मगर कई बार जब मजदूरी नहीं मिलती तो पिता बेटियों को अच्छी खुराक देने में असमर्थ हो जाते हैं।
एक बार तो ऐसा भी हो चुका है कि सुखविन्द्र कौर का सीमा सुरक्षा बल में नौकरी के लिए फार्म आया, मगर घर में पैसे न होने की वजह से वह अमृतसर के छछरेटा बीएसएफ इंटरव्यू के लिए नहीं पहुंच पाई। इसके बावजूद दर्शन सिंह अपनी बेटियों को शिक्षा और खेल में कभी पीछे रखने की भी नहीं सोचते। पदकों के लगाए ढेर
सुखविन्द्र कौर जूनियर नेशनल जालंधर में सिल्वर, औरंगाबाद नेशनल प्रतियोगिता में सिल्वर, इंटर कॉलेज चंडीगढ़ से सिल्वर के अलावा राज्य स्तर पर दो गोल्ड, दो सिल्वर और एक कांस्य पदक जीत चुकी है। स्कूल व कॉलेज स्तर पर जीते पदकों की संख्या तो दर्जनों में है। कभी नहीं भूल पाऊंगी
सुखविन्द्र कौर ने बताया कि जब जालंधर में ओपन फाइनल प्रतियोगिता हो रही थी तो खेल शुरू होने से पहले उसे भूख लगी। जिस कारण उसने एक दुकान से पूड़ी खा ली। जिस कारण उसकी तबीयत बिगड़ गई और वह फाइनल में हार गई, जिसे वह कभी भूल नहीं पाएगी।
सुखविन्द्र कौर जूनियर नेशनल जालंधर में सिल्वर, औरंगाबाद नेशनल प्रतियोगिता में सिल्वर, इंटर कॉलेज चंडीगढ़ से सिल्वर के अलावा राज्य स्तर पर दो गोल्ड, दो सिल्वर और एक कांस्य पदक जीत चुकी है। स्कूल व कॉलेज स्तर पर जीते पदकों की संख्या तो दर्जनों में है। कभी नहीं भूल पाऊंगी
सुखविन्द्र कौर ने बताया कि जब जालंधर में ओपन फाइनल प्रतियोगिता हो रही थी तो खेल शुरू होने से पहले उसे भूख लगी। जिस कारण उसने एक दुकान से पूड़ी खा ली। जिस कारण उसकी तबीयत बिगड़ गई और वह फाइनल में हार गई, जिसे वह कभी भूल नहीं पाएगी।
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