प्रदेश की सबसे पुरानी तहसील फाजिल्का में पर्यटन की अपार संभावनाओं के कारण राज्य सरकार तो पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए लाखों रुपये मंजूर कर रही है लेकिन स्थानीय प्रशासन ऐतिहासिक धरोहरों की संभाल में उदासीनता बरत रहा है। इसका एक बड़ा उदाहरण शहर के बिल्कुल साथ सटे गांव बाधा स्थित सूख चुकी बाधा झील है, जिसे विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा सजीव करने के प्रयासों के बावजूद गांव की पंचायत या नगर परिषद द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा।
उल्लेखनीय है कि पंजाब सरकार के टूरिज्म डिपार्टमेंट ने फाजिल्का को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए डीसी के जरिए करीब 75 लाख रुपये की ग्रांट मंजूर की है। इस ग्रांट से यहां पर्यटन को बढ़ावा देने के कार्य किए जाने हैं। जिसके तहत भारत-पाक सीमा की सादकी चौकी के सौंदर्यीकरण, भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए वीर सैनिकों की संयुक्त आसफवाला समाधि के विकास, फार्म टूरिज्म व अन्य ऐतिहासिक धरोहरों को संभाला जाना है। लेकिन कभी फाजिल्का क्षेत्र की शान रही बाधा झील, जोकि सतलुज दरिया की शाखा से रिचार्ज होती थी, को सजीव करने की ओर ग्राम पंचायत व नगर परिषद कोई ध्यान नहीं दे रही।
करीब डेढ़ बरस पहले समाजसेवी संस्था ग्रेजुएट वेलफेयर एसोसिएशन फाजिल्का ने इस झील को सजीव करने का अभियान शुरू किया था। एसोसिएशन ने नगर परिषद पदाधिकारियों, अधिकारियों व ग्राम पंचायत को संदेश दिया था कि झील से पर्यटन को काफी बढ़ावा मिलेगा। इसमें मछली पालन, बोटिंग व पिकनिक स्पाट को विकसित किया जा सकता है। वर्तमान में ग्राम पंचायत की ओर से झील की करीब 12 एकड़ जगह को ठेके पर देकर खेती करवाई जा रही है जोकि बदस्तूर जारी है।
इस बारे में नगर परिषद अध्यक्ष अनिल सेठी ने कहा कि यह नगर परिषद के स्तर का काम नहीं है। इस झील को सजीव करने के लिए विधायक द्वारा सरकार से बात कर ग्राम पंचायत से वह जगह अपने अधीन लेने का प्रस्ताव पारित करवाएंगे। उसके बाद ही झील को विकसित किया जा सकता है।
उधर सरपंच वीरां बाई का कहना है कि जमीन पंचायत की कमाई का एकमात्र जरिया है। मछली पालन पंचायत करवा नहीं सकती इसलिए इसे खेती के लिए ठेके पर दिया गया है। अगर सरकार उन्हें कमाई का कोई विकल्प दे तो वह जमीन को प्रशासन के हवाले कर सकते हैं।
No comments:
Post a Comment