भारत पाक सरहद पर स्थित सरकारी स्कूलों में नैशनल केडेट कोर (एनसीसी) के प्रति विद्यार्थियों का रुझान कम होता जा रहा है, जबकि देश में विपत्ति के समय कैडेट अहम रोल निभाते हैं। हैरानी की बात यह है कि फाजिल्का में एक भी लड़की ने इस साल एनसीसी नहीं रखी।
खासकर सरहदी इलाकों में भारत-पाक सीमा पर अकसर ही तनाव रहता है। ऐसे में इनकी भूमिका और भी अहम बन जाती है, मगर इसके प्रति विद्यार्थियों का रुझान कम होना चिंता का विषय है। हालांकि भारत के प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने घोषणा की है कि देश के राष्ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी) के कैडेटों की संख्या 13 लाख से बढ़ाकर 15 लाख कर दी जाएगी। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने भी अपने कार्यकाल में घोषणा कर चुके हंै कि सरकारी स्कूलों में एनसीसी प्रत्येक
विद्यार्थी के लिए अनिवार्य कर दी जाएगा, लेकिन न तो स्कूलों में एनसीसी अनिवार्य की गई है और न ही विद्यार्थियों की संख्या में इजाफा हुआ है। गौर हो कि देश में विपत्ति के समय विद्यार्थियों को तैयार रखने के लिए 1948 में कानून बनाया गया था और एनसीसी 15 जुलाई 1948 में स्कूलों में लागू कर दी गई थी।
भारत-पाक के बीच 1965 और 1971 के युद्ध में एनसीसी केडिटों ने डिफेंस की दूसरी पंक्ति में रहकर अपनी अहम भूमिका निभाई, परन्तु फाजिल्का एक ऐसा कोर डिवीजन है, जहां कैडेटों की संख्या बढऩे की जगह कम होती जा रही है। नगर के स्कूलों में कैडेटस की संख्या पहले 760 थी, जो अब घटकर 458 रह गई है। फाजिल्का जूनियर डिवीजन की एक आईटीआई में स्थित पलाटून में इस समय मात्र 54 कैडेट हैं, जबकि सरकारी एमआर कालेज में कैडेट का एक भी विद्यार्थी नहीं है। सरकारी माडल सीनियर सेकेंडरी स्कूल लड़के में भी संख्या पिछले साल के मुकाबले इस साल काफी कम हो गई है। सरहद पर स्थित किसी भी सरकारी स्कूल में एनसीसी कैडेट नहीं है, जबकि आठ साल पहले यहां 110 छात्र थे।
तीन साल पहले मात्र 54 छात्र रह गए। छात्र विवान और छात्रा सोनिया ने बताया कि वे देश सेवा के लिए सेना में भर्ती होने की तमन्ना रखते हैं, लेकिन कालेज के विद्यार्थियों का एनसीसी के प्रति रुझान कम होने के कारण इसे शुरू नहीं किया गया। सरकार को चाहिए कि अन्य विषयों की
तरह सरकार को एनसीसी विषय भी जरूरी करना चाहिए।
Tuesday, February 1, 2011
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