शहीद भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव के समाधिस्थल पाकिस्तान से वापस लेने के लिए हुए समझौते के तहत फाजिल्का के 12 गांव पाकिस्तान को दिए गए थे। इसकी वजह से फाजिल्का की भौगोलिक स्थिति बिगड़ गई और अनेक वीर जवानों को भारत-पाक 1965 व 1971 युद्ध में शहादत देनी पड़ी।
इसके बावजूद फाजिल्का को नजरअंदाज किया गया है। इस कारण फाजिल्का पिछड़ गया है। भगत सिंह को याद करने वाले नेताओं में ऐसे कम नेता है, जिन्हें पता हो कि 60 के दशक से पहले तीनों शहीदों की समाधि पाकिस्तान के कब्जे में थी। जनभावनाओं को देखते हुए 1950 में नेहरू-नून मुहाइदे के तहत फैसला लिया गया था कि पाकिस्तान से शहीदों की समाधि वापस ली जाए। करीब एक दशक की इस ऊहापोह के बाद पाकिस्तान ने फाजिल्का का अहम हिस्सा मांग लिया। हालांकि सैन्य दृष्टि से यह इलाका अहम था, मगर जनभावनाओं को देखते हुए फाजिल्का के 12 गांव पाक को देने पड़े। यही वजह है कि पाक के साथ हुए दो युद्धों में फाजिल्का क्षेत्र को काफी नुकसान झेलना पड़ा। ग्रेजुएट्स वेलफेयर एसोसिएशन फाजिल्का के सचिव नवदीप असीजा ने इस क्षेत्र को शहीदों की धरती घोषित करने की मांग की है।
फाजिल्का से गहरा रिश्ता है शहीद-ए-आजम का
लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह ने ब्रिटिश अधिकारी सार्जेंट स्कॉट समझकर मोटरसाइकिल पर आ रहे सार्जेंट सांडर्स को गोली से उड़ा दिया। ब्रिटिश अधिकारियों ने भगत सिंह को ढूंढने को अभियान तेज कर दिया। वह अनेक जगहों से होते हुए फाजिल्का तहसील के गांव दाने वाला में पहुंचे। यहां उन्होंने देश भक्त साथी जसवंत सिंह दाने वालिया घर में पनाह ली। भगत सिंह दिन के समय वेष बदलकर अन्य देश भक्तों के साथ अपने संबंध कायम रखते और रात के समय दाने वालिया के घर लौट आते। यहां वह जसवंत सिंह के बाहरले घर की हवेली में ठहरते। भगत सिंह वहां कई महीनों तक रहे। वहां से जाते समय भगत सिंह ने गांव के लुहार हाजी करीम से अपनी पिस्तौल की मरम्मत करवाई। 1929 में गिरफ्तारी के बाद भगत सिंह ने पुलिस को यह बता भी दिया कि इस दौरान उन्होंने कहां-कहां पनाह ली? इसके बाद ब्रिटिश पुलिस ने गांव में छापामारी करके घर-घर की तलाशी ली और ग्रामीणों से भगत सिंह के बारे जानकारी हासिल करने का प्रयास किया, लेकिन किसी भी ग्रामीण ने भगत सिंह के गांव में छुपे रहने की बात नहीं बताई।
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