Thursday, March 10, 2011

ये नहीं कह सकते, जल ही जीवन है

इन्द्रप्रीत सिंह & चंडीगढ़
Dainik Bhaskar, 10, March 2011, Chandigarh Edition, Page-3

छह साल का रोशन सरकारी स्कूल में पढ़ता है। उसे 45 तक के पहाड़े जुबानी याद हैं। दूसरी क्लास की सिमरनजीत 91 तक के पहाड़े बिना रुके सुना सकती है। तीसरी की गुरमीत और चौथी क्लास की पिंकी ने 151 और 135 तक के पहाड़े रट रखे हैं। ऐसे बच्चों को पाकर कोई भी अभिभावक खुद पर नाज कर सकता है, लेकिन दोनां नानका गांव के ये अभिभावक इतने खुशनसीब नहीं हैं। वे जानते हैं कि उनके बच्चे एक-आध साल में या तो अंधे हो जाएंगे या फिर जिस जुबान से वे फटाफट पहाड़े सुनाते हैं, वह बोलना बंद कर देगी। 

यह हालत दो-चार की नहीं, बल्कि सतलुज दरिया के साथ लगते दर्जनों गांवों के बच्चों की है। दोनां नानका के मोहन सिंह के बड़े बेटे शंकर की उम्र 19 साल है। जब वह चौथी में था तो उसे धुंधला दिखाई देने लगा और कुछ ही महीनों बाद दुनिया की रंगीनियां उसके लिए काली हो गईं। छोटा बेटा बिसाखा कुछ-कुछ देख तो पाता है, लेकिन किसी को पहचान नहीं सकता। 

'इनकी नहीं, नेताओं की आंखों की रोशनी चली गई': इन बच्चों के लिए आवाज उठा रहे हास्य कलाकार भगवंत मान का कहना है कि इन बच्चों की नहीं, बल्कि नेताओं की आंखों की रोशनी चली गई है, जिन्हें ये दिखते नहीं हैं। नेताओं के पास विरोधियों को उलटे टांगने या सिर कलम करने जैसे मुद्दे ही रह गए हैं, लेकिन जिस दर्द का एहसास इन बच्चों और इनके अभिभावकों को है, उससे नेताओं को कोई वास्ता नहीं है। भगवंत बुधवार को इन सभी बच्चों को चंडीगढ़ लेकर आए थे। वे लोक लहर फाउंडेशन बनाकर इनकी आर्थिक मदद भी कर रहे हैं। इन मेधावी छात्रों को ट्रेंड करने वाले अध्यापक लवजीत सिंह लवजीत चुनौती देते हैं जिस तरह का स्कूल उन्होंने अपने स्तर पर बनाया है, पूरे पंजाब में कोई भी प्राइवेट उसका उसका मुकाबला नहीं कर सकता।

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