Laxman Dost, Dainik Bhaskar, 17 March 2011
फाजिल्का & नगर कौंसिल के रिकार्ड अनुसार फाजिल्का शहर में करीब 10 हजार टूटियां हैं और करीब 4 हजार अवैध कनेक्शन हैं। इसके अलावा सैकड़ों की तादाद में नलकूप हैं। करीब एक लाख की आबादी वाले इस शहर को रोजाना अनुमानित दो लाख गैलन से अधिक पानी दिया जा रहा है। इसमें लोगों की लापरवाही से वाटर सप्लाई की टूटियां खुली हैं और करीब 70 हजार गैलन पानी बेकार जा रहा है।
नहरी परियोजना
2 लाख 87 हजार गैलन वाटरस्टोरेज की क्षमता
1.50 लाख गैलन पानी रोजाना दिया जाता है
गर्मियों में 9000 किली प्रति घंटा सप्लाई
सर्दियों में 8000 किली प्रतिघंटा दिया जाता है
ट्यूबवैलों से
शहर में है 9 ट्यूबवैल
20 हजार गैलन प्रति घंटा है क्षमता
3 अन्य ट्यूबवैलों के पानी की क्षमता 1200 लीटर प्रति घंटा है
आबादी के हिसाब से कम
सेंटीमीटर की दर से नीचे जाता रहा जबकि वर्ष 2004 से 2010 तक भूजल स्तर नीचे जाने की दर 74 सेंटीमीटर प्रतिवर्ष हो गई। हालांकि वर्ष 2008 और 2010 में मानसून खूब बरसा, लेकिन इसका भी कोई खासा लाभ नहीं मिल सका।
अगर प्यासे नहीं मरना चाहते तो ऐसा कीजिए
फिरोजपुर & भास्कर की तरफ से पानी बचाओ व तिलक होली मनाओ के तहत पूरे देश में शुरू की गई मुहिम में जहां लाखों बच्चों के साथ-साथ देश के हर कोने से तिलक होली मनाने की आवाज उठनी शुरू हो गई है और यह काफिला दिन-ब-दिन बढ़ता हुआ भास्कर की इस मुहिम्म के साथ जुड़ता जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय भारत-पाक सीमा पर बसे शहीदों के इस शहर के बाशिंदों ने भी तिलक होली मनाने का प्रण करते हुए कहा है कि अगर अब भी हम ना जागे तो आने वाले समय में पानी के लिए तीसरा विश्वयुद्ध होना यकीनी है।
क्यों मनाएं तिलक होली
अगर हम वाकई पानी बचाना चाहते हैं तो रंगों के इस त्यौहार को तिलक होली के रूप में मनाना चाहिए और हाथों एवं सिर पर रंग उड़ेलने की बजाय अपने प्रियजनों के माथे पर तिलक लगा उन्हें होली की बधाई देनी चाहिए, क्योंकि हाथों पर लगे रंग को धोने में जहां एक से तीन लीटर पानी व्यर्थ होता है, वहीं सिर में लगे रंग को निकालने में पांच से 10 लीटर पानी व्यर्थ बहाना पड़ता है। बच्चों को भी पानी से दूर रह रंगों की होली खेलने की प्रेरणा देनी चाहिए।
No comments:
Post a Comment