4th December 2010
'शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, देश पर मरने वालों का बाकी बस यही निशां होगा', यह पंक्तियां करीब दो बरस पहले तक तीसरी आसाम रेजीमेंट के 17 जवानों की समाधि पर सच साबित नहीं होती थीं। उनकी समाधि किसी की नजरों में ही नहीं चढ़ती थी। ऐसे में चिताओं पर मेले लगना तो दूर कोई अकीदत के दो फूल चढ़ाने भी नहीं पहुंच पाता था।
उल्लेखनीय है कि भारत-पाक जंग के दौरान फाजिल्का सेक्टर में एक मोर्चे पर दुश्मन से लोहा लेते हुए तीसरी आसाम रेजीमेंट के 17 वीर जवानों ने अपने प्राणों की आहुति देकर देश रक्षा का धर्म निभाया था। उनकी याद में एक समाधि गांव घड़ुम्मी में बनाई गई थी। जैसे-जैसे समय का पहिया चलता गया, वैसे-वैसे उन शहीदों की समाधि पहचान खोती गई क्योंकि नजदीक स्थित गांव आसफवाला में चौथी जाट रेजीमेंट के अलावा विभिन्न बटालियनों के करीब ढाई सौ जवानों की जो समाधि बनाई गई थी, उसे शहीदी स्मारक का दर्जा देने के लिए हुए सौंदर्यीकरण के प्रयासों के बीच जाट रेजीमेंट के जवानों की समाधि नजरंदाज होती गई। इस दौरान दैनिक जागरण व अन्य समाचार पत्रों द्वारा शहीदों की उपेक्षित समाधि का मुद्दा प्रमुखता से उठाया गया। बीते दो साल के भीतर सेना ने अपने उन 17 शहीदों की समाधि का सौंदर्यीकरण कर दिया है। समाधि स्थल की ओर जाने वाले रास्ते पर लाकिंग टायल वाली सड़क बनाकर, आसपास सजावटी पौधे लगाए गए हैं। समाधि स्थल पर एक स्मारक बनाकर उस पर सभी शहीदों के नाम अंकित किए गए हैं। साथ ही सभी शहीदों के संप्रदाय के चिन्ह भी समाधि स्थल पर बनाकर सांप्रदायिक एकता का परिचय दिया गया है। अब भारत-पाक सीमा पर रिट्रीट सेरेमनी देखने जाने वाले पर्यटक और स्थानीय लोग जहां आसफवाला स्थित महान शहीदी स्मारक पर शीश नवाते हैं वहीं आसाम रेजीमेंट के जवानों की समाधि पर भी अकीदत के फूल भेंट करना नहीं भूलते।
इस बारे में शहीदों की समाधि कमेटी आसफवाला के अध्यक्ष संदीप गिलहोत्रा व प्रफुल्ल नागपाल ने प्रसन्नता प्रकट करते हुए कहा कि वार मेमोरियल जहां भी हों, उनका सौंदर्यीकरण होना जरूरी है ताकि हमारी आने वाली पीढि़यां अपने शहीदों के बारे में जान सकें।
'शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, देश पर मरने वालों का बाकी बस यही निशां होगा', यह पंक्तियां करीब दो बरस पहले तक तीसरी आसाम रेजीमेंट के 17 जवानों की समाधि पर सच साबित नहीं होती थीं। उनकी समाधि किसी की नजरों में ही नहीं चढ़ती थी। ऐसे में चिताओं पर मेले लगना तो दूर कोई अकीदत के दो फूल चढ़ाने भी नहीं पहुंच पाता था।
उल्लेखनीय है कि भारत-पाक जंग के दौरान फाजिल्का सेक्टर में एक मोर्चे पर दुश्मन से लोहा लेते हुए तीसरी आसाम रेजीमेंट के 17 वीर जवानों ने अपने प्राणों की आहुति देकर देश रक्षा का धर्म निभाया था। उनकी याद में एक समाधि गांव घड़ुम्मी में बनाई गई थी। जैसे-जैसे समय का पहिया चलता गया, वैसे-वैसे उन शहीदों की समाधि पहचान खोती गई क्योंकि नजदीक स्थित गांव आसफवाला में चौथी जाट रेजीमेंट के अलावा विभिन्न बटालियनों के करीब ढाई सौ जवानों की जो समाधि बनाई गई थी, उसे शहीदी स्मारक का दर्जा देने के लिए हुए सौंदर्यीकरण के प्रयासों के बीच जाट रेजीमेंट के जवानों की समाधि नजरंदाज होती गई। इस दौरान दैनिक जागरण व अन्य समाचार पत्रों द्वारा शहीदों की उपेक्षित समाधि का मुद्दा प्रमुखता से उठाया गया। बीते दो साल के भीतर सेना ने अपने उन 17 शहीदों की समाधि का सौंदर्यीकरण कर दिया है। समाधि स्थल की ओर जाने वाले रास्ते पर लाकिंग टायल वाली सड़क बनाकर, आसपास सजावटी पौधे लगाए गए हैं। समाधि स्थल पर एक स्मारक बनाकर उस पर सभी शहीदों के नाम अंकित किए गए हैं। साथ ही सभी शहीदों के संप्रदाय के चिन्ह भी समाधि स्थल पर बनाकर सांप्रदायिक एकता का परिचय दिया गया है। अब भारत-पाक सीमा पर रिट्रीट सेरेमनी देखने जाने वाले पर्यटक और स्थानीय लोग जहां आसफवाला स्थित महान शहीदी स्मारक पर शीश नवाते हैं वहीं आसाम रेजीमेंट के जवानों की समाधि पर भी अकीदत के फूल भेंट करना नहीं भूलते।
इस बारे में शहीदों की समाधि कमेटी आसफवाला के अध्यक्ष संदीप गिलहोत्रा व प्रफुल्ल नागपाल ने प्रसन्नता प्रकट करते हुए कहा कि वार मेमोरियल जहां भी हों, उनका सौंदर्यीकरण होना जरूरी है ताकि हमारी आने वाली पीढि़यां अपने शहीदों के बारे में जान सकें।
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