Sunday, December 5, 2010

पाकिस्तान ने रात को किया देश की आन पर हमला-1971 India Pakistan War- Sulemanki Fazilka Front Battle

Laxman Dost, Fazilka
4th December 2010
तिथि 3 दिसंबर 1971, समय सायं 6:15, दिन शुक्रवार, शांति से दिन गुजर गया, मगर किसी को क्या पता था कि जिस घर में 2 दिसंबर की रात चैन से काटी, उस घर में 3 दिसंबर की रात काटना नसीब होगा या फिर बच्चों सहित कहीं ओर जाकर ठिकाना बनाना पड़ेगा। सूर्य अस्त हुआ, मंदिरों में पूजा पाठ शुरू हो गया, गुरुद्वारों में गुरुओं की बाणी गूंज रही थी। अचानक आर्मी का अल्र्ट साइरन गूंजा और चारों ओर एक दम अफरा-तफरी मच गई। किसान पशुओं को हांकते हुए घर जाने लगे। दुकानों को ताले लगाकर दुकारदार घरों की ओर दौड़े। हर तरफ अंधेरा हो गया, सामान जहां पड़ा था, वहीं रह गया। हर कोई अपने परिवार के पास पहुंचने को दौड़ रहा था। यह दिन था आज से 39 साल पहले, जब पाकिस्तान ने दूसरी बार भारत पर आक्रमण किया। लगातार 14 दिन तक चले इस युद्ध की शुरुआत फाजिल्का सैक्टर से हुई। जहां भारत पाक में सबसे बड़ा युद्ध लड़ा गया और तब खत्म हुआ जब बंग्लादेश को अलग राष्ट्र घोषित कर दिया गया। 

बंगलादेश को लेकर भारत पाक में तनात फैल गया। फाजिल्का सैक्टर में भारत की सेनाएं शांत थी, लेकिन अचानक पाकिस्तान ने 28 टैंक, 2500 रेंजरों पैदल ब्रिगेड और भारी तोपों से हमला कर दिया। इससे पहले कि भारतीय सैनिक संभलती, पाकिस्तान ने ताबड़तोड़ हमले शुरू कर दिये। पाकिस्तानी हमलों की गूंज सरहदी गांवों के साथ फाजिल्का में आग की तरह फैल गई। लोगों ने अपना जरूरी सामान उठाया और अपने रिश्तेदारों के यहां प्लायन शुरू कर दिया। कई लोग अपने बच्चों को रिश्तेदारों के पास छोड़ आये और वापस घर में आकर बंकर बनाकर रहने लगे। घर में रोशनी करने पर मनाही कर दी गई। जब तोप के गोले बरसते तो चिंगारियां दूर तक दिखाई पड़ती। गडग़ड़ाहट से पशु-पंछी भी सहम गए। भले ही सरहद पर सेना ने मोर्चा संभाला हुआ था, लेकिन फाजिल्कावासियों का हौसला था कि वे सेना के साथ डटकर खड़े थे। भारतीय सेना के काम आने वाली जो भी वस्तु जिसके पास थी, उसने मौके पर पहुंचा दी। किसी ने सेना तक दूध पहुंचाया और किसी ने सेना को खाना दिया। यहां तक कि अपने वाहन और बैल तक को सेना के सामान लाने व ले जाने के लिए दिया गया। 

पाक रेंजरों ने पहला हमला बेरीवाला पोस्ट की तरफ से किया। पाक रेंजर जानते थे कि इस पोस्ट पर भारतीय सैनिकों की तैनाती कम है और वे इस ओर से हमला कर फाजिल्का के अधिकांश गांवों को कब्जे में लेने की फिराक में थे। बेरीवाला पोस्ट पर 4 जाट बटालियन तैनात थी। भले ही 4 जाट के जवानों की संख्या कम थी, लेकिन उन्होंने मोर्चा नहीं छोड़ा और मुकाबला करते रहे। पाक रेंजर खतरनाक टैंकों के साथ आगे बढ़ रहे थे। उन्होंने गांव बेरीवाला, गंधड़ और कादर बख्श पर कब्जा जमा लिया। करीब 400 भारीतय ग्रामीण पाक रेंजरों के घेरे में आ चुके थे। रेंजरों ने उन्हें घर में ही कैद कर दिया और गलियों में पहरा लगा दिया। जब आगे बढऩे लगे तो 4 जाट जवानों ने उन्हें रोक लिया। रातभर दोनों ओर से गोलियों की बोछार होती रही। (जारी...)
http://www.bhaskar.com/article/PUN-OTH-1019438-1609825.html

जब पाक के नापाक मंसूबे हुआ नाकाम

5th DECEMBER 2010
युद्ध के तीसरे दिन 5 दिसंबर को बेरीवाला पुल और क्रीक नहर पर भीषण युद्ध हुआ। भारतीय सेना की 4 जाट बटालियन और 3 असम बटालियन ने मोर्चा संभाला हुआ था। नहर पार के ग्रामीणों को पाक रेंजरों ने बंदी बना लिया था। भारतीय सैनिक उन्हें आजाद करवाने का प्रयास कर रहे थे। 

दुश्मनों का दबाव लगातार बढ़ रहा था। वे गुरमुख खेड़ा और पक्का चिश्ती तक आ पहुंचे। बाद में असम बटालियन के जवानों ने पाकिस्तान के हमलों को नाकाम किया और दुश्मन वहीं रुक गये। इधर घडूमी की ओर दुश्मन को रोकने के लिए जाट बटालियन तैनात थी। उन्होंने दुश्मन को रोके रखा। 

गज्जी के समीप जाट बटालियन के जवानों ने गुरमुख खेड़ा की तरफ से हमला किया तो दुश्मनों का वह रास्ता बंद हो गया, जिससे दुश्मन फाजिल्का की तरफ बढ़ रहा था। देर रात तक दोनों देश एक-दूसरे पर बंबबारी करने लगे। पाक सेना पुल की ओर बढ़ रही थी। इस पर भारतीय सेना ने पुल उड़ाकर दुश्मनों का रास्ता बंद कर दिया। दुश्मन गांव बक्खूशाह की तरफ आ पहुंचा और ग्रामीणों को बंदी बना लिया। दुश्मन लगातार आगे बढ़ रहा था। गांव मुहमदपीरा भी दुश्मन के कब्जे में आ चुका था। वहीं क्रीक पुल पर भीषण युद्ध हो रहा था। दुश्मन का मुकाबला करने में जुटे जवानों ने दुश्मन को आगे नहीं बढऩे दिया। इस लड़ाई में 3 असम बटालियन के जवान लाल लाई थरंगा,सैटवायी सीमा, रोबर्ट, लाल चरण, सटेश्वर नाथ, ब्राजा मोहन, खरसेवर, थामन बीडीआर, देबी प्रशाद, बीउस राणा, जीएस वेद्ययानाथन और माजटब राणा शहीद हो गये।

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