Laxman Dost, 7th December 2010
यह क्षेत्र पाक सेना के पूरी तरह से कब्जे में था और इन गांवों में पाक सेना ने भारी मात्रा में गोला-बारूद जमा कर लिए थे। यहां तक कि पाक रेंजरों ने यहां अपने टैंक तक गाड़ दिए थे। इसके अलावा पाकरेंजरों के लिए बंदी बने ग्रामीण सबसे बड़ा हथियार थे। हालांकि यहां गगनभेदी व अन्य तोपों के हमले से पाक रेंजरों को खदेड़ा जा सकता था, लेकिन भारतीय सेना अगर ऐसे हमला करती तो ग्रामीण इसका शिकार बन सकते थे। इस कारण यहां पैदल युद्ध लडऩा ही एकमात्र रास्ता बचा था। कर्नल सूरी के उचित दिशानिर्देश में पाकरेंजरों पर हमला बोला गया। भारतीय सेना वहां हमला करती रही।
दुश्मन ग्रामीणों को आड़ बनाकर हमले का शिकार होने से बचता रहा, मगर दुश्मन ने गांवों के आसपास के क्षेत्र को खाली कर दिया। इस दौरान काफी पाकरेंजर मारे गए। कई भारतीय सैनिक भी शहीद हुए। अचानक कर्नल आर के सूरी के एक पैर में दुश्मन की गोली लग गई। बेशक वह घायल हो गए, लेकिन उन्होंने मैदान नहीं छोड़ा। काफी जद्दोजहद के बाद उन्हें अस्पताल में दाखिल करवाया गया। वहां उनका ऑपरेशन करके गोली निकाल दी गई। दर्द कम नहीं था और खून काफी बह चुका था, मगर कर्नल की जुबान से बार-बार निकल रहा था कि वह युद्ध में मैदान में जाना चाहते हैं। आखिर उन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया।
हालांकि बाद में सूरी सीधे रूप से मोर्चे पर नहीं लड़े, लेकिन जिस तरह से उन्होंने सेना का नेतृत्व किया, वह शायद कोई और नहीं कर सकता था। युद्ध के हर कदम पर उनकी पैनी निगाह थी। यही कारण है कि भारत ने यह युद्ध जीत लिया।
6 फाजिल्का 1 शहीदों की समाधि आसफवाला, जहां कर्नल आरके सूरी की अस्थियां समावेश की गई।
6 फाजिल्का 2 शहीदों की याद में बनाया गया स्मारक।
6 फाजिल्का 3 युद्ध में शहीद हुए 4 जाट बटालियन के जवान।
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