जोगिंदर सिंह, ममदोट (फिरोजपुर)
राजा मोहतम चौकी (फिरोजपुर) पर 11 दिसंबर को शहीदी दिवस के मौके सीमा सुरक्षा बल के उन बहादुर अधिकारी और जवानों को याद किया जाएगा जिन्होंने अपनी सीमा की सुरक्षा के लिए प्राणों की आहुति दे दी। सामरिक कारणों से तीन दिसंबर 1971 को सीमा चौकी राजामोहतम को सेना के आदेशानुसार खाली कर दिया गया था जिसे 5 दिसंबर 1971 को दुश्मन की फौज ने अपने कब्जे में ले लिया। ब्रिगेड कमांडर 35वीं इनफेंट्री ने 31वीं बटालियन सीमा सुरक्षा बल को 7 दिसंबर 1971 की सुबह पहली किरण तक सीमा चौकी राजामोहतम पर दोबारा कब्जा करने का कार्य सौंपा। इस चुनौती को अंजाम देने के लिए बहादुर समादेष्टा आरके वाधवा को चुना गया और उन्हें दो प्लाटूनों की नफरी बटालियन हैडक्वार्टर से दी गई। बिना समय बर्बाद किए ज्यादा से ज्यादा दुश्मन की खबर हासिल करके वाधवा अपने जवानों को ब्रीफ करने के उपरांत धुआंधार गोलीबारी के बीच राजामोहतम चौकी की तरफ कूच कर गए और सात दिसंबर को तीन बजे दुश्मन पर टूट पड़े। दुश्मन की फौज 9 बलूच रेजीमेंट की क्षमता एक कंपनी से अधिक थी, जबकि वाधवा के पास मात्र दो प्लाटून। एक प्लाटून की कमांड उपनिरीक्षक इकबाल सिंह ने संभाली हुई थी।
11 दिसंबर को इस युद्ध में वाधवा समेत आरक्षक राम सिंह, आरक्षक सूखा सिंह, आरक्षक ओमप्रकाश ने अपने जीवन की आखिरी सांस तक लड़ते हुए अपने को देश के लिए समर्पित कर दिया। जबकि एक मुख्य आरक्षक, एक नायक, चार आरक्षक बुरी तरह से घायल हो गये। वाधवा की चुनौती यहीं खत्म नहीं हुई। दुश्मनों की दोबारा आक्रमण की सूचना 35वीं इनफेंटरी ब्रिगेड से मिलते ही वे चौकन्ने हो गए और इस तरह दुश्मनों के तीन काउंटर अटैकों को हर बार असफल किया। दुश्मन सीमा सुरक्षा बल के बहादुर जवानों के शौर्य से घबरा उठा। 10 दिसंबर की रात चौकी पर मशीनगनों और तोपों से भारी गोलीबारी करने लगा। इस विकट परिस्थिति में वाधवा ने बंकरों में जाकर अपने जवानों का हौसला बढ़ाया। निरीक्षक भगत सिंह व उपनिरीक्षक इकबाल सिंह अंतिम सांस तक लड़ते रहे। इस दौरान आरके वाधवा और भगवत सिंह शहीद हो गए जबकि इकबाल सिंह ने सेना अस्पताल में अंतिम सांस ली।
Saturday, December 11, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment