अमृत सचदेवा, फाजिल्का
फाजिल्का की समाजसेवी संस्थाओं ने नेत्रदान की दिशा में वो कर दिखाया है जो महानगरों की संस्थाएं भी नहीं कर पाई। फाजिल्का में नेत्रदान के प्रति दो-तीन साल में इतनी जागरूकता फैली कि करीब चार सौ लोगों की अंधेरी जिंदगी रोशन हो गई।
2010 में भी नेत्रदान की अलख जगाने में जुटी सोशल वेलफेयर सोसायटी व श्रीराम शरणम् नेत्रदान सहायता समिति ने उल्लेखनीय कार्य किया। इस दौरान 41 लोगों के नेत्रदान करवाकर 82 नेत्रहीनों को रंगीन दुनिया देखने लायक बनाया है। सोशल वेलफेयर सोसायटी ने 26 लोगों व श्रीराम शरणम् नेत्रदान सहायता समिति ने 15 लोगों के मरणोपरांत नेत्रदान करवाए। कुछ नेत्रदान पहले से नेत्रदान की इच्छा जताने वाले लोगों के थे। अधिकांश नेत्रदान अपने प्रियजन की मौत के बाद उसके परिजनों ने उसकी याद दुनिया में जिंदा रखने के लिए करवाए।
सोसायटी के अध्यक्ष राजकिशोर कालड़ा, समिति के प्रवक्ता संतोष जुनेजा व दीनानाथ सचदेवा ने बताया कि पहले लोग इस बात का वहम् करते थे कि शरीर के सभी अंगों का अंतिम संस्कार होने तक जीव को मुक्ति नहीं मिलती लेकिन अब लोगों को इस बात की खुशी होती है कि उनके प्रियजन की आंखें दो नेत्रहीनों के काम आई। कालड़ा ने बताया कि सोसायटी तीन साल से चलाए नेत्रदान अभियान में कुल 120 लोगों के नेत्रदान करवा चुकी है। सचदेवा ने बताया कि समिति करीब 70 लोगों के नेत्रदान करवा चुकी है। इस प्रकार दोनों संस्थाएं 380 नेत्रहीनों की अंधेरी जिंदगी रोशन कर चुकी हैं। कालड़ा ने कहा कि विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के बाशिंदों को पड़ोसी मुल्क श्रीलंका से सबक लेना चाहिए जहां हर दूसरे घर में मरणोपरांत नेत्रदान की परंपरा है। कालड़ा व सचदेवा ने बताया कि 75 वर्ष से कम उम्र में बच्चे -बूढ़े हर किसी का नेत्रदान हो सकता है। सिर्फ आंखों का आपरेशन नहीं हुआ होना चाहिए या फिर कोई लाइलाज बीमारी नहीं होनी चाहिए।
Friday, December 31, 2010
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1 comment:
i want to donate my eyes. how should I donate my eyes????
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